Brahma Kumaris Murli Hindi 3 August 2023

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 3 August 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 3 August 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 3 August 2023

    03-08-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - याद की यात्रा में टाइम देते रहो तो विकर्म विनाश होते जायेंगे, सबसे ममत्व मिट जायेगा, बाप के गले का हार बन जायेंगे''

    प्रश्नः-

    गॉड फादर द्वारा तुम बच्चे किन दो शब्दों की पढ़ाई पढ़ते हो? उन दो शब्दों में कौन-सा राज़ समाया हुआ है?

    उत्तर:-

    गॉड फादर तुम्हें इतना ही पढ़ाता कि - हे आत्मायें, ‘शरीर का भान छोड़ो' और ‘मुझे याद करो' - यह दो शब्दों की पढ़ाई इसीलिए पढ़ाई जाती है क्योंकि अब तुम्हें इस पुरानी दुनिया में पुरानी खाल नहीं लेनी है। तुम्हें नई दुनिया में जाना है। मैं तुम्हें साथ ले चलने आया हूँ इसलिए देह सहित सब कुछ भूलते जाओ।

    गीत:-

    तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो.......

    ओम् शान्ति। 

    बच्चे सालिग्राम जानते हैं कि कोई मनुष्य द्वारा हम शास्त्र नहीं सुनते हैं। इसको सतसंग नहीं कहा जाता है, पढ़ाई कहा जाता है। अगर मनुष्यों से पूछा जाए तो कहेंगे कि हम सतसंग में जाते हैं वा कहेंगे कि हम कॉलेज में जाते हैं। यह तो जानते हो सतसंग में साधू, सन्त, विद्वान आदि सुनाने वाले होंगे। स्कूल में भी मनुष्य टीचर, प्रोफेसर आदि होंगे, यहाँ मनुष्य नहीं हैं। यह है बेहद का रूहानी बाप, जिसको कहा जाता है - त्वमेव माताश्च पिता..... यह महिमा देवताओं की भी नहीं, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की भी नहीं। यह महिमा है निराकार परमपिता परमात्मा की। अब बच्चे जानते हैं कि निराकार परमपिता परमात्मा यह शरीर धारण कर पार्ट बजा रहे हैं। सिवाए इस निराकार परमपिता परमात्मा के कोई भी ब्रह्माकुमार-कुमारियों को पढ़ा नहीं सकते। ब्रह्मा को भी ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। इसको प्रजापिता कहेंगे, ज्ञान सागर एक ही निराकार परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। वही पतितों को पावन बनाने वाला है क्योंकि ज्ञान सागर से ही सद्गति होती है। यह है नई बात। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डालने से खण्डन कर दिया है। अब मनुष्यों को कैसे पता पड़े कि नॉलेजफुल परमपिता परमात्मा आकर नॉलेज देते हैं। यह मनुष्य भूल जाते हैं। ऐसे नहीं कि शास्त्र आदि द्वापर के आदि में ही बनते हैं। नहीं, समझाया जाता है पहले बाप का चित्र, मन्दिर आदि बनते हैं, जिससे भक्ति शुरू होती है। भक्ति भी बहुत समय परमात्मा की होनी चाहिए क्योंकि ऊंच ते ऊंच वह है। उनकी पूजा पहले शुरू होती है। पूजा लायक है ही एक शिव। ऐसे नहीं कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर वा जगत अम्बा, जगत पिता पूजा के लिए लायक हैं। इन सबको पूज्य बनाने वाला एक ही बाप है। उनकी भक्ति भी जरूर अधिक होगी। यह (ब्रह्मा) तो कुछ नहीं। इनमें परमपिता परमात्मा न आये तो इनकी पूजा क्या होगी? सबका सद्गति दाता एक ही बाप है। यह विचार सागर मंथन करना होता है। भक्ति कैसे शुरू होगी? शिवबाबा तो विचार सागर मंथन नहीं करते। बच्चों को विचार सागर मंथन करना है। सरस्वती, जो ब्रह्मा की मुख वंशावली है, उनको भी विचार सागर मंथन करना है। ऊंच ते ऊंच है एक, अगर वह न आये तो दुनिया को पतित से पावन कौन बनाये? सब मनुष्य मात्र पतित हैं। अब शिवबाबा न आये तो स्वर्ग का वर्सा कौन देवे? निश्चयबुद्धि नहीं हैं तो विजय माला में पिरो न सकें। सपूत बच्चे सदैव गले का हार बनते हैं। बाप भी खुश होते हैं - यह बच्चा बड़ा सपूत आज्ञाकारी है। बहुत माँ-बाप होते हैं जिनको 12-14 बच्चे भी होते हैं, जिनमें कोई कपूत, कोई सपूत भी होते हैं। पतित-पावन बाप के सिवाए पतितों का उद्धार कोई कर नहीं सकते हैं। तुम जानते हो कि गंगा नदी पर भी गंगा का मन्दिर है। तो समझाना चाहिए कि यह गंगा फिर कौन है? क्या यह कोई शक्ति है, जिससे पतित से पावन बनते हैं वा पानी से पावन बनते हैं? बाप कहते हैं कि गंगा पतित-पावनी नहीं। सिवाए योग के कोई भी पावन बन नहीं सकते, इसलिए तुम्हें कोई गंगा स्नान नहीं करना है। योग का अर्थ है याद। बुद्धि का योग लगाना है। वह तो बहुत योग आसन आदि लगाते हैं। अनेक प्रकार के हठयोग करते हैं, उनको योग नहीं कहा जाता है। मातायें-अबलायें हठयोग को क्या जानें?

    मनुष्य स्कूल में पढ़ते हैं, उसमें धक्के खाने की कोई बात नहीं रहती है। कोई न कोई इम्तहान पास करते हैं। जानते हैं यह इम्तहान पास करके यह बनेंगे। यहाँ भी तुम जानते हो - यह भी इम्तहान है, गॉड फादर पढ़ाते हैं। वह है पतित-पावन। तुम्हारी है गॉड फादरली स्टूडेन्ट लाइफ। बाप पतित से पावन कैसे बनाते हैं? कहते हैं - हे आत्मायें, इस शरीर का भान छोड़ो। इस पुराने शरीर को छोड़ना है। पहले-पहले तुम्हारा शरीर गोरा था, अब आइरन एजड हो गया है। अभी तुमको नई खाल तो यहाँ लेनी नहीं है क्योंकि यहाँ तो 5 तत्व ही तमोप्रधान हैं। अभी मैं तुम बच्चों को अपने साथ ले जाऊंगा। कल्प पहले भी ले गया था। मैं कालों का काल हूँ। सबको वापिस ले जाऊंगा। फिर तुमको अमरपुरी में भेज दूँगा। यह है मृत्युलोक, छी-छी दुनिया, इसलिए संगमयुग को 100 वर्ष चाहिए। और तो हर एक युग 1250 साल का होता है। इस पिछाड़ी के संगमयुग की आयु बहुत छोटी है। जैसे ब्राह्मणों की चोटी छोटी होती है वैसे संगमयुग की आयु भी छोटी है। फिर यह दुनिया ख़त्म हो जायेगी, तो नये मकान आदि बनाने शुरू करेंगे। उसमें पहले श्रीकृष्ण आता है। वह शौकीन है महल आदि बनवाने का। कोई तो बहुत शौकीन था ना जिसने सोमनाथ का मन्दिर बनवाया। बिरला भी शौकीन है, कैसा अच्छा मन्दिर बनाया है! नम्बरवन में पूज्य है शिवबाबा, फिर भक्ति मार्ग में भी पहले सोमनाथ का मन्दिर बनता है। सो भी कुछ समय बाद में बनता होगा। फिर पूजा शुरू होगी। अभी तो है घोर अन्धियारा। रात पूरी हो फिर दिन आता है।

    बाप कहते हैं मैं रात और दिन के बीच में आता हूँ। महाभारी लड़ाई भी है। लिखा हुआ है कि यादवों के पेट से वह चीजें निकली जिससे सारे कुल का विनाश हुआ। तुम देख रहे हो बरोबर विनाश के लिए तैयारी कर रहे हैं। समझते हैं कोई प्रेरक हैं। दोनों ने विनाश के लिए बाम्ब्स बनाकर रखे हैं। आ़फतें भी आनी हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में देख रहे हो - स्थापना भी हो रही है, विनाश भी सामने खड़ा है। समझो, कोई ने विनाश नहीं देखा है, अच्छा, वैकुण्ठ तो देखते हैं ना। अच्छी तरह पढ़कर बाप से पूरा बेहद का वर्सा लेना है। तुमको साकार नहीं पढ़ाते हैं। शास्त्रों आदि की बात नहीं है। यह तो ज्ञान सागर स्वयं पढ़ाते हैं। तुम अपने को देही समझ बाप को याद करते हो। भगवानुवाच - अपने बच्चों प्रति कहते हैं मैं तुम बच्चों के सम्मुख होता हूँ। जो मेरे बच्चे बनते हैं उनमें से कोई सौतेले हैं, कोई मातेले हैं। मातेले बच्चों को ही वर्से का हक है। संशय बुद्धि को सौतेला कहा जाता है। उनको वर्सा नहीं मिल सकता। वह फिर पुरुषार्थ अनुसार प्रजा में चले जाते हैं। मातेले राजाई में आ जाते हैं। वह बाप को प्यार करते हैं, बाप उनको प्यार करते हैं। गाते भी हैं ना तुम पर बलिहार जाऊंगा, वारी जाऊंगा। बाप कहते हैं मुझे याद करेंगे तो मैं तुमको मदद दूँगा। हिम्मते मर्दा, मददे खुदा। और सबसे बुद्धियोग तोड़ एक से जोड़ना है। तुम कहते हो हम बाबा के हैं। यह सब कुछ बाबा का है। बाबा को हम कखपन देते हैं और बदले में स्वर्ग के बेहद की बादशाही का वर्सा लेते हैं। इस पुरानी देह से हमारा ममत्व नहीं है। यह तो तमोप्रधान रोगी शरीर है। हमारे पास और क्या है? मनुष्य मरते हैं, सब कुछ छूट जाता है। फिर उनका सब कुछ करनीघोर को दिया जाता है। हम सब कुछ आपको देते हैं। ममत्व मिटाने के लिए हम निरन्तर बाबा को याद करने का पुरुषार्थ करते हैं। माया फिर विघ्न डालती है इसलिए धीरे-धीरे जितना मेरी याद में टाइम देते रहेंगे तो विकर्म विनाश होंगे। वही मेरे गले का हार बनेंगे। कितना सहज समझाते हैं। बाप समझाते हैं यह रथ भी ड्रामा अनुसार मेरा मुकरर किया हुआ है। और किसी में मैं आ भी नहीं सकता हूँ। तुम भी कहते हो - बाबा, कल्प पहले भी हम आपसे इस ही मकान में, इसी ड्रेस में मिले थे और आपसे वर्सा लिया था। तो कितना सहज है।

    बाप कहते हैं कि सिर्फ मुझे याद करो और कोई भी तरफ बुद्धि न जाये। याद रखना - अन्तकाल जो पुत्र सिमरे, अगर किसी को भी याद किया तो फिर वहाँ जन्म लेना पड़ेगा। कहाँ भी ममत्व नहीं रहना चाहिए। अन्तकाल जो स्त्री सिमरे..... बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने, उनकी कितनी महिमा करते हैं। एकोअंकार..... उनका एक ही नाम है। उनको दूसरा शरीर मिलता ही नहीं है, जो नाम बदली हो। तुम तो 84 जन्म लेते हो तो नाम भी 84 पड़ते हैं। बाप की महिमा में गाते हैं निर्भय, निर्वैर, अकालमूर्त...... वही कालों का काल है, उन्हें काल खा नहीं सकता। मैं सभी को मुक्तिधाम में ले जाऊंगा। निर्वैर, मेरा कोई से वैर नहीं है। अकालमूर्त, अजोनि, मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। उनकी कितनी महिमा गाते हैं। गाया भी जाता है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता..... कलियुग के दु:ख हरते हैं। सतयुग के सुख देते हैं। बच्चे जानते हैं भारत में सतयुग में जीवन-मुक्ति थी। बाकी सभी आत्मायें शान्तिधाम में थी, याद पड़ता है ना। तो जरूर बाप जब संगम पर आये, तब सभी को शान्तिधाम ले जाये और तुमको फिर सुखधाम भेज दे। कितनी सहज बात है। परन्तु माया ऐसी है जो यहाँ से बाहर गया तो भूल जायेंगे। जैसे गर्भ जेल में धर्मराज के द्वारा तुमको सजा दिलाता हूँ, त्राहि-त्राहि करते हो कि हम म़ाफी मांगते हैं फिर ऐसे पाप नहीं करेंगे। बाहर निकलने से फिर भी पाप करने लग पड़ते हैं। यह है ही माया का राज्य। सतयुग-त्रेता में माया होती नहीं। वहाँ तो सुख ही सुख रहता है। अभी तुम पढ़ रहे हो। इसमें घरबार छोड़ने की बात नहीं। बाप कहते हैं - देह सहित सब कुछ भूल जाओ। तुम्हारा यह बेहद का संन्यास है। उन संन्यासियों का है हद का संन्यास। जंगल में जाकर फिर लौट आते हैं शहर में। नाम कितने बड़े-बड़े रखवाते हैं। बाप कहते हैं मैं कितना सहज समझाता हूँ। बुढ़ियायें कितनी हैं, कहती हैं हमको धारणा नहीं होती। अच्छा, यह तो जानती हो कि परमात्मा पढ़ाते हैं? वह कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। इसमें तो कोई तकल़ीफ नहीं है। अभी हमने 84 का चक्र पूरा किया है। यह हुआ स्वदर्शन चक्र। आत्मा को चक्र का दर्शन होता है। यहाँ ही निरोगी काया बनती है। चक्र को जानने से तुम ऊंच पद पायेंगे इसलिए बाबा कहते हैं कि स्वदर्शन चक्रधारी बनो। कितना सहज समझाते हैं! सहज याद, सहज सृष्टि चक्र, कोई तकल़ीफ नहीं। यह है सच्ची कमाई। बाकी धन माल तो सब ख़त्म हो जाना है, सब छूट जाता है। सागर को उथल खानी है। नैचुरल कैलेमिटीज भी आनी है। भारत सचखण्ड था, और कोई भी खण्ड नहीं था। भारत है शिवबाबा की जन्म भूमि। बड़े ते बड़ा तीर्थ है। भारत में ही सोमनाथ का मन्दिर कितना अच्छा बना हुआ है! अभी तो ढेर के ढेर बनाते हैं।

    बाबा कहते हैं कि इस समय की शादी पूरी बरबादी है। शिवबाबा से सगाई पूरी आबादी है। शिवबाबा साजन भी है, स्वर्ग में भेज देते हैं। तुम यहाँ आये हो, जानते हो हम यहाँ बरोबर नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। ऐसे नहीं कि पुरुष जाकर पुरुष ही बनेंगे। बदलते रहते हैं। कोई चोला पुरुष का, कोई स्त्री का। फिर सतयुग से त्रेता कैसे बनता है - वह भी समझाया गया है। अभी तुम बच्चों को नॉलेजफुल गॉड फादर पढ़ाते हैं। मनुष्य तो फादर, टीचर, सतगुरू हो न सकें। फादर और टीचर हो सकते हैं, गुरू हो नहीं सकते हैं। सो भी वह जिस्मानी विद्या। यह बाबा तो एकदम स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। कोई भी बात न समझो तो हजार बार पूछो। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) सपूत आज्ञाकारी बन विजय माला में पिरोना है। बाप को अपना कखपन दे, बलिहार हो, सबसे ममत्व मिटा देना है।

    2) अंतकाल में एक बाप ही याद रहे उसके लिए और सबसे बुद्धियोग तोड़ निरन्तर बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करना है।

    वरदान:-

    सर्व खजानों को स्वयं में समाकर, दिलशिकस्त-पन वा ईर्ष्या से मुक्त रहने वाले सदा प्रसन्नचित भव

    बापदादा ने सभी बच्चों को समान रूप से सब खजाने दिये हैं लेकिन कोई उन प्राप्तियों को स्वयं में समा नहीं सकते व समय पर कार्य में लगाना नहीं आता तो सफलता दिखाई नहीं देती फिर स्वयं से दिलशिकस्त हो जाते हैं, सोचते हैं शायद मेरा भाग्य ही ऐसा है। उन्हें फिर दूसरों की विशेषता वा भाग्य को देख ईर्ष्या उत्पन्न होती है। ऐसे दिलशिकस्त होने वा ईर्ष्या करने वाले कभी प्रसन्न नहीं रह सकते। सदा प्रसन्न रहना है तो इन दोनों बातों से मुक्त रहो।

    स्लोगन:-

    स्वार्थ के बिना सच्चे दिल से सेवा करने वाले ही स्वच्छ आत्मा हैं।

    ***OM SHANTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 3 August 2023

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