Brahma Kumaris Murli Hindi 25 August 2023

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 August 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 August 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 August 2023


    25-08-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - यह संगमयुग है ब्राह्मणों की पुरी, इसमें तुम ब्रह्मा के बच्चे बने हो, तुम्हें बेहद के बाप का वर्सा लेना है और सभी को दिलाना है''

    प्रश्नः-

    इस ज्ञान को अच्छी रीति समझने के लिए किस प्रकार की बुद्धि चाहिए?

    उत्तर:-

    व्यापारी बुद्धि वाले ही इस ज्ञान को अच्छी रीति समझेंगे। यह है बेहद का व्यापार। बाप बच्चों को भिन्न-भिन्न कमाई की युक्तियां बताते रहते हैं। बच्चों का काम है मेहनत करना। ऐसी युक्ति निकालनी चाहिए जिससे स्वयं की भी कमाई जमा होती रहे और सर्व का भी कल्याण हो। बाप की याद और सेवा ही कमाई का साधन है।

    गीत:-

    रात के राही थक मत जाना........ 

    ओम् शान्ति। पारलौकिक बाप बच्चों के प्रति समझा रहे हैं, कहते हैं कि बच्चे मुझ अपने पारलौकिक परमपिता परमात्मा को भूलना नहीं है। गाया भी जाता है गीता का भगवान्। बाइबिल का भगवान् वा कुरान का भगवान् कभी कोई नहीं कहेंगे। कोई भी धर्म स्थापन करने वाले ऐसे नहीं कहेंगे कि हे बच्चे अब मुझ पारलौकिक बाप को याद करो। ऐसे कोई किसको कह नहीं सकते। बच्चा पैदा होता है, बाप को जानते हैं। बाप को ही याद करते रहेंगे क्योंकि वारिस है। अब पारलौकिक बाप कहते हैं - हे मेरे सिकीलधे बच्चे, अब तुमको मेरे पास आना है। मैं तुम बच्चों को परमधाम निर्वाणधाम ले चलने लिए आया हूँ। तुम भक्त मुझ भगवान् को याद करते थे। अब मैं कहता हूँ तुम मुझे निरन्तर याद करो। मैं तुमको सुखधाम ले चलता हूँ। अपने दिल अन्दर देखो - तुमने आधाकल्प कितना दु:ख उठाया है! पहले से ही इतना दु:ख नहीं मिलता है। पीछे दु:ख वृद्धि को पाता है। अब पारलौकिक बाप कहते हैं मुझे याद करो। सभी धर्म वालों को कहते हैं - हे मेरे बच्चे, तुम अपने को भाई-भाई समझते आये हो। अब तुम आत्माओं का जो पारलौकिक बाप है, जिसको सब जीव आत्मायें दु:ख में याद करती आई हैं - वह अब ब्रह्मा मुख कमल द्वारा तुम बच्चों को समझा रहे हैं। समझानी दी जाती है - ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों को। प्रजापिता ब्रह्मा को सिर्फ कुमारियां ही नहीं थी। कुमार-कुमारियां दोनों थे। भाई-बहिन थे - ब्रह्माकुमार-कुमारियां। एक ही बाप के बच्चे एक ही दादे के पोत्रे पोत्रियां ठहरे। तुम बच्चों को सम्मुख समझाया जाता है। तुम सम्मुख सुनते हो, समझते हो कि हम निराकार शिवबाबा के सब बच्चे हैं। बरोबर हम ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा से स्वर्ग की बादशाही पाने के लिए राजयोग सीख रहे हैं। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा मुख द्वारा जो तुमको समझाते हैं वह फिर औरों को समझाना है। जो लौकिक भाई-बहन हैं, उन्हों को समझाना है। तुम हो गये पारलौकिक। पारलौकिक बाप से तुम वर्सा लेते हो। तुम कहलायेंगे पारलौकिक भाई-बहन। वह हुए लौकिक भाई-बहन।

    तो बाप समझाते हैं - बच्चे, हूबहू 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक तुम बुद्धि का योग लगाओ तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। पाप भस्म हो जायेंगे। बाप की याद को ही योग-अग्नि कहा जाता है। इस सर्वशक्तिमान बाप की याद में रहने से तुमको शक्ति मिलेगी। वह एक ही निराकार बाप है, इस ब्रह्मा मुख से सुनाते हैं। जरूर रथ तो चाहिए ना, जिस रथ के ऊपर उनकी सवारी हो। यह रथ है, इसमें परमपिता परमात्मा सवार हो बच्चों को यह सिखलाते हैं। इस सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की समझानी देते हैं, जिससे तुम भविष्य में चक्रवर्ती राजा-रानी बन जायेंगे और निरन्तर याद करने से विकर्माजीत बन जायेंगे, पावन पुण्य आत्मायें बन जायेंगे। बाबा जो स्वर्ग स्थापन करते हैं उस स्वर्ग के तुम चक्रवर्ती महाराजा-महारानी बनेंगे। सो भी 21 जन्मों के लिए और भारत में जो भी उत्सव होते हैं - शिव जयन्ती, होली, राखी, जन्माष्टमी, दीवाली आदि इन सब उत्सवों का महत्व और हरेक की बायोग्राफी हम आपको सुनाते हैं। आओ बहनों-भाइयों, हम आपको पारलौकिक बाप का परिचय देवें। परिचय ले सहज राजयोग सीख तुम विश्व के मालिक बनेंगे। वर्ल्ड ऑलमाइटी, पवित्रता-सुख-शान्तिमय अटल-अखण्ड राज्य करेंगे। यह किसको भी समझाना बहुत सहज है। इस रीति लिखना भी है। बाप के समझाये हुए यह राज़ हम तुमको समझायेंगे। बाप के बच्चे बनेंगे तब तो वर्सा मिलेगा ना। तुम भी बेहद के बाप से बेहद का वर्सा आकर लो। जन्म-जन्म तो हद का वर्सा लेते आये हो। वह है दु:ख का वर्सा क्योंकि यह है ही रावण राज्य। राम के राज्य में सदा सुख था। फिर माया रावण के राज्य में तुम दु:खी हुए हो। यह तो तुम कोई को भी समझा सकते हो। पब्लिक भाषण में भी तुम समझा सकते हो। ऊंच ते ऊंच है भगवान्। फिर हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, फिर उन्हों की महिमा। गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। तो जरूर वह स्थूलवतन में होगा। ब्राह्मण हैं ब्रह्मा की सन्तान। उनको ही प्रजापिता ब्रह्मा कहा जाता है। पहले-पहले ब्राह्मण वर्ण चाहिए। ऊंच ते ऊंच है ब्राह्मण वर्ण। कौन स्थापन करते हैं? परमपिता परमात्मा। पिता के सब बच्चे ठहरे। ब्रह्मा द्वारा इन ब्रह्माकुमार-कुमारियों को बैठ पढ़ाते हैं। यह संगमयुग है ब्राह्मणों की पुरी। फिर रुद्र पुरी में जाकर विष्णुपुरी में आते हैं। पहले-पहले रुद्र माला में वह आयेंगे जो निरन्तर याद करेंगे। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजायें बनते हैं ना। तो इस समय परमपिता परमात्मा द्वारा राजयोग सीखने से राजाई पद पाते हैं। बाप कहते हैं कि निरन्तर मुझ बाप को याद करो, बुद्धि का योग मेरे साथ लगाओ। यह है रूहानी यात्रा। जन्म-जन्म से तो जिस्मानी यात्रायें करते आये, अब बाप आकर रूहानी यात्रा सिखलाते हैं। कहते हैं मुझ बाप को और स्वीट होम को याद करो, जहाँ से तुम आये हो पार्ट बजाने। तुम गोरे थे, विश्व पर राज्य करते थे फिर तुम काम चिता पर बैठ काले हो गये हो, सुन्दर से श्याम बन गये हो। भारत बड़ा सुन्दर था। नाम ही था स्वर्ग, अब तो नर्क है ना। तुम ही पूज्य से फिर पुजारी बनते हो तो ऊंच ते ऊंच भगवान् शिव फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, इन द्वारा बाप कार्य करवाते हैं। इन्हों को निमित्त बनाया है। करनकरावनहार है ना। ब्रह्मा द्वारा भारत को स्वर्ग बनाने के लिए राजयोग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं कि यह राजयोग सिखलाकर पूरा करुँगा तो फिर विनाश होगा। फिर जो नई दुनिया स्थापन करते हैं उनमें जाकर राज्य करेंगे फिर जितना जो पुरुषार्थ करे। सारा पुरुषार्थ पर मदार है। कहते हैं गंगा पतित-पावनी फिर परमात्मा को पुकारते क्यों हो - हे पतित पावन आओ? तो पुजारी भक्तों को भक्ति का फल मिलना चाहिए ना। स्वर्ग में तुमको जीवन्मुक्ति का फल मिलता है और सबको शान्ति का फल मिल जाता है। स्वर्ग में सुख-शान्ति दोनों ही थे, सब सुखी थे - जिन्होंने राजयोग सीखा। विकर्म विनाश तो करना ही है, हिसाब-किताब चुक्तू तो होना ही है। फिर नयेसिर पार्ट बजाना है। सबका हिसाब-किताब चुक्तू कराए पावन बनाए बाप साथ में ले जाते हैं। यह सब राज़ समझने के हैं।

    मनुष्य भगवान् को याद करते हैं तो जरूर भगवान् को सृष्टि पर आना पड़े। कहते हैं कि सृष्टि पर आकर भक्तों को भक्ति का फल देता हूँ। मुक्ति वा जीवनमुक्ति, शान्ति वा सुख देता हूँ। दुनिया में सुख, शान्ति वा सम्पत्ति ही मांगते हैं। मनुष्य तो सम्पत्ति के लिए ही पुरुषार्थ करते हैं कि धनवान बनें। समझते हैं सम्पत्ति में ही सुख होगा। परन्तु भल किसको कितनी भी सम्पत्ति है, राज्य तो फिर भी माया का है ना। पतित दुनिया है ना, तो पाप जरूर होंगे। सम्पत्ति के लिए बहुत पाप करते हैं। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। इसमें कोई भी पुण्य आत्मा होती नहीं। पुण्य आत्माओं की दुनिया में फिर कोई पाप आत्मा नहीं होती। यथा राजा रानी तथा प्रजा पुण्य आत्मा होते हैं। इन पावन देवी-देवताओं को पतित दुनिया में राजा लोग भी पूजते हैं क्योंकि समझते हैं - यह सर्वगुण सम्पन्न हैं। हमारे में कोई गुण नाहीं, आपेही तरस परोई. . . . . . . . फिर यह कहते हम ही भगवान् हैं। पतितों को पावन बनाने वाला तो एक ही बाप है। पतित-पावन कहने से बुद्धि चली जानी चाहिए निराकार भगवान् की तरफ। निराकार उपासी भी होते हैं ना। तो वह निराकार बाप है ऊंच ते ऊंच, जब तक उनका पूरा परिचय नहीं तो उपासना क्या करेंगे? भल कहते हैं परमपिता परमात्मा शिव है। निराकार उपासी हैं ना। निराकार को याद करने वाले। परन्तु वह है कौन? पूरा परिचय चाहिए ना। निराकार को क्यों याद करते हैं, उससे क्या मिलेगा? क्या निराकारी दुनिया में जायेंगे? आत्माओं को तो निराकारी दुनिया में जाने के रास्ते का पता नहीं है। भल सब याद करते हैं परन्तु बिगर परिचय। इस प्रकार याद करने से तो कोई पावन नहीं बनेंगे। यहाँ तो निराकार खुद साकार में आते हैं। मनुष्य तो निराकारी दुनिया में जाने के लिए कितने शास्त्र आदि पढ़ते हैं! परन्तु कोई जा नहीं सकते। रास्ते का भी पता नहीं है। जिस्मानी यात्रा के पण्डे लोग रास्ता जानते हैं तब तो ले जाते हैं ना। यहाँ इस रास्ते को कोई जानता नहीं, जो समझाये। इसके लिए कहते - बेअन्त है, तो फिर याद कैसे करें? कुछ भी समझते नहीं। कोई ने कहा बेअन्त है, फिर कोई ने कहा निराकार है, तो फिर निराकार उपासी बने। आजकल तो फिर कह देते कि हम वही हैं। दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान मत होती जाती है। जो आता वह कहते रहते हैं। बाप समझाते हैं ऊंच ते ऊंच बाप गाया जाता है। सर्वव्यापी कहने से तो सब ऊंच ते ऊंच हो जाते हैं। इतने पतित-दु:खी वह फिर ऊंच ते ऊंच कैसे होंगे। एक तरफ कहते नाम रूप से न्यारा है फिर उनको पत्थर भित्तर में लगाना इसको ही धर्म ग्लानी कहा जाता है। अभी फिर कहते हम ही परमात्मा हैं। अभी जो कुछ पास्ट हुआ, सब ड्रामा है। वह फिर भी होगा। भूल पिछाड़ी भूल, ग्लानी पिछाड़ी ग्लानि करते-करते भारत ऐसा पतित हो गया है। बाप का परिचय तो सबको मिलना है। तुम्हारा प्रभाव निकलेगा इतने ढेर ब्रह्माकुमार कुमारियों द्वारा ज्ञान मिलता है। यह तो बरोबर परमपिता परमात्मा की ही बात है। सबसे ऊंच ते ऊंच है परमपिता परमात्मा, उनकी महिमा बहुत है, पारावार नहीं। अब बाप बैठ अपना परिचय देते हैं - मैं क्या करता हूँ? मैं आकर सभी पाप आत्माओं को पुण्य आत्मा बनाता हूँ, राजयोग सिखलाता हूँ। गाया भी जाता है ईश्वर की गत-मत न्यारी। सो तो जरूर जब यहाँ आयेंगे तब तो मत देंगे ना। क्राइस्ट की सोल आई, क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने। बाप की मत तो सबसे न्यारी है। यह बाप तो है सबसे ऊंच। भारत में मनुष्य मात्र में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ देवी-देवतायें ही डबल सिरताज बने हैं। बाप की है श्रीमत। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ जो और कोई सिखला न सके। लिखा हुआ है भगवानुवाच। वह है ही हेविनली गॉड फादर जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं, स्वर्ग के लिए तुम ब्राह्मणों को राजयोग सिखलाते हैं। ब्राह्मण वर्ण सबसे ऊंच हो गया। बाप सर्विस की युक्तियां बहुत बतलाते हैं। भल कोई गालियां भी दे, तुम चित्र रख दो, उनमें लिखा होगा कि इन वर्णों में भारत ही आता है। अब है कलियुग, शूद्र वर्ण। फिर तुम बाप द्वारा ब्राह्मण बने हो। तुम्हारा नाम है - ब्रह्माकुमार-कुमारी। तुम्हारे चित्र ऐसे होने चाहिए जो मनुष्यों को वन्डर लगे कि ऐसे चित्र तो कहीं नहीं देखे। यह ज्ञान व्यापारी बुद्धि वाले अच्छी रीति समझ सकते हैं। यह व्यापार भी अच्छा है। तो श्रीमत देने वाला भी सर्वोत्तम है। परन्तु बहुत बच्चे मेहनत नहीं करते। घर में सोये पड़े रहते तो बाबा खड़ा करते हैं। तुम एक चित्र बनायेंगे, इससे हजारों का कल्याण होगा, सब तुम्हारी वाह-वाह करेंगे। वन्दे मातरम् कहेंगे। अच्छा!

    मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) रुद्र माला में पहला नम्बर आने के लिए निरन्तर बाप की याद में रहना है। बाप और स्वीट होम की याद से स्वयं को पावन बनाना है।

    2) रूहानी पण्डा बन सबको सच्ची यात्रा करानी है। एक बाप की श्रीमत से स्वयं को डबल सिरताज बनाना है।

    वरदान:-

    स्व-स्थिति की शक्ति से किसी भी परिस्थिति का सामना करने वाले मास्टर नॉलेजफुल भव

    स्व-स्थिति अर्थात् आत्मिक स्थिति। पर-स्थिति व्यक्ति वा प्रकृति द्वारा आती है लेकिन अगर स्व-स्थिति शक्तिशाली है तो उसके आगे पर-स्थिति कुछ भी नहीं है। स्व-स्थिति वाला किसी भी प्रकार की परिस्थिति से घबरा नहीं सकता क्योंकि नॉलेजफुल आत्मा हो गई। उसे तीनों कालों की, सर्व आत्माओं की नॉलेज है। वह जानते हैं कि यह परवश है इसलिए शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा उसकी सेवा करेंगे, घबरायेंगे नहीं, सदा मुस्कराते रहेंगे।

    स्लोगन:-

    भाग्यवान वह है जो सदा भाग्य के गुण गाये, कमजोरियों के नहीं।

    ***OM SHANTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 August 2023

    No comments

    Note: Only a member of this blog may post a comment.