Brahma Kumaris Murli Hindi 27 June 2023

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 27 June 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 27 June 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 27 June 2023

    27-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"'मधुबन

    “मीठे बच्चे - तुम सच्चे-सच्चे रूहानी ब्राह्मण नई दुनिया की स्थापना के निमित्त हो, तुम्हें अपना अश्व (शरीर) इस यज्ञ में स्वाहा करना है''

    प्रश्नः-

    अवस्था को स्थाई (एकरस) अचल बनाने का साधन क्या है?

    उत्तर:-

    अवस्था स्थाई तब बनेगी जब निरन्तर योग में रहेंगे। योग टूटता तब है जब किसी में ममत्व है इसलिए नष्टामोहा बनो। बुद्धि को पवित्र बनाओ। ज्ञान की धारणा भी पवित्र बुद्धि में ही होती है इसलिए बुद्धि रूपी बर्तन स्वच्छ हो, बाप से योग जुटा रहे।

    गीत:-

    यही बहार है........ 

    ओम् शान्ति। 

    निराकार शिव भगवानुवाच। आकार और साकार को भगवान् नहीं कहा जा सकता। अब तुम बच्चे जानते हो हम इस संगम पर बैठे हैं। बाप ने समझाया है - इस समय तुमको दैवी सम्प्रदाय नहीं कह सकते। इस समय तुम ब्राह्मण सम्प्रदाय हो। ब्राह्मण भी इस समय दो प्रकार के हैं। अब यह है सच्चे ब्राह्मणों का कुल। वह ब्राह्मण लोग यह नहीं जानते कि सच्चे ब्राह्मण मुख वंशावली ब्राह्मण भी हैं। तो उन्हों को भी परिचय देना पड़े। अगर कोई आये तो उनसे पूछना चाहिए। ऐसे बहुत हैं जो अपने को ब्राह्मण कहलाते हैं। उन ब्राह्मणों में बहुत प्रकार के होते हैं। यहाँ तुम एक ही ब्रह्मा के मुख वंशावली सच्चे ब्राह्मण हो। ब्रह्मा के बच्चे तुम ब्राह्मण-ब्राह्मणियां हो। विकार में जा नहीं सकते। छोटे-बड़े सब ब्राह्मण ठहरे। तो वह हैं जिस्मानी ब्राह्मण। तुम हो सच्चे रूहानी ब्राह्मण, ब्रह्मा के मुख वंशावली। तुम जानते हो हम सच्चे ब्राह्मण ब्रह्मा की औलाद हैं। परमपिता परमात्मा अपने पोत्रे-पोत्रियों को पढ़ाते हैं पुत्र द्वारा। पुत्र है प्रजापिता ब्रह्मा। भल शास्त्रों में दक्ष प्रजापिता का भी नाम है। अब दक्ष कोई हुआ नहीं है। इनका ही दक्ष प्रजापिता नाम रखा है। शास्त्रों में यह बात है कि अश्व (घोड़ों) को हवन करते थे। अभी अश्व तो तुम हो। उन्हों ने तो कहानी बैठ लिखी है। यथार्थ अर्थ को समझ नहीं सकते। कुछ न कुछ अक्षर आये हुए हैं। जैसे नाटक बनाते हैं। झांसी की रानी नाम तो है परन्तु वह एक्टर्स रीयल तो नहीं हैं। आर्टीफिशयल बैठ बनाते हैं। अपने आदमियों को लश्कर के सिपाही बनाते हैं। कुछ न कुछ है जिसके फिर नाटक बनते हैं। जो पास्ट हो गया है उनके ही फिर नये एक्टर्स बनाकर पार्ट बजवाते हैं। तुम तो पार्ट सीखे हुए ही हो। आटोमेटिकली आत्मा में जो पार्ट नूँधा हुआ है वह प्ले हो रहा है। तुम अपने पार्ट को समझ गये हो। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण-ब्राह्मणियां हैं। ऐसे नहीं, रचना है ही नहीं, उनको नया बनाते हैं। यह भी समझना है। मनुष्य समझते हैं महा-प्रलय हुई, फिर पीपल के पत्ते पर सागर में बच्चा आया। ऐसे तो हो नहीं सकता। बाकी हाँ, बाबा नई सृष्टि रचते हैं तो पहले-पहले बच्चे गर्भ महल में आते हैं। वह जैसे क्षीर-सागर में हैं। यहाँ है गर्भ जेल, विषय सागर। बहुत सजायें खाते हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। इसका नाम ही है सहज राजयोग। तुम हो ही देवी-देवता धर्म वाले। तुम पुरुषार्थ कर राजाओं का राजा बनेंगे। लक्ष्मी-नारायण भी वही होंगे। उनके 84 जन्म अब पूरे हुए। बाप समझाते हैं कल्प पहले भी तुम ही थे। कोई भी आते हैं तो बाप उनसे पूछते हैं - आगे कब मिले हो? कहते हैं - हाँ बाबा, 5 हजार वर्ष पहले भी मिले थे। कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे मिलते आये हैं। मिलते रहेंगे। एन्ड (अन्त) नहीं होती। यह बना-बनाया ड्रामा है। बाप कहते हैं मुझे भी पतित से पावन बनाने आना पड़ता है। बीच में आने का तो हमारा काम ही नहीं। मेरा नाम ही है पतित-पावन। कहते हैं फिर से भारत को वा सृष्टि को आकर पावन बनाओ। सृष्टि के आदि में भारत में देवी-देवताओं का राज्य था। लांग-लांग एगो...... कहते हैं ना। परन्तु कब? यह समझते नहीं। पुराने ते पुराने मनुष्य हुए देवी-देवतायें। स्वर्ग की चीजें महल माड़ियां आदि दिखाते हैं ना। पुराने ते पुराने देवी-देवतायें थे, जिनके सोने, हीरे, जवाहरों के महल थे। 5000 वर्ष की बात है। इससे पुरानी कोई चीज़ होती ही नहीं। पुराने ते पुराने लक्ष्मी-नारायण भी नहीं, राधे-कृष्ण हैं पुराने ते पुराने। लक्ष्मी-नारायण से भी पहले तो राधे-कृष्ण हैं ना। श्रीकृष्ण है स्वर्ग का पहला बच्चा। आत्मा भी प्योर, शरीर भी प्योर नम्बरवन। मुख्य प्रिन्स-प्रिन्सेज हैं ना। बाप कहते हैं मैं एक मुसाफिर हूँ। कहाँ का मुसाफिर? तुम जानते हो परमधाम अथवा निर्वाणधाम का मुसाफिर। मुसाफिर तो आत्मा ही है।

    मैं आत्मा एवर प्योर हूँ। फिर तुम हो मेरी सजनियां। तुम काली हो गई हो। अब हम तुम्हारी आत्मा को गोरा बनाते हैं। खाद निकालते हैं। एक मुसाफिर तुम सबको हसीन बनाते हैं। कैसा मोस्ट बील्वेड मुसाफिर है। स्वर्ग में तो नैचुरल शोभा रहती है। कितने खूबसूरत देवतायें हैं। अभी तुम ब्राह्मणों का यह पुराना शरीर है। तुम हसीन से काली बन जाती हो, मैं मुसाफिर तुमको गोरा बनाता हूँ। मैं इस पुरानी काली सजनी में प्रवेश करता हूँ। इसमें आकर इनको और तुम सभी को गोरा बनाता हूँ। एक मुसाफिर आकर कितने को हसीन बनाते हैं। मुसाफिर का अर्थ भी तुम समझते हो। जब तुम श्रीमत पर चलते रहेंगे तब ही हसीन बनेंगे। तुम आत्मा में खाद पड़ने से काले बन गये हो। अब खाद कैसे निकले? मेरे साथ योग लगाने से। उसी योग अग्नि से खाद भस्म हो जायेगी। यथार्थ बातें तुम समझते हो। बाप तुम्हें समझाते बहुत हैं परन्तु तुम भूल जाते हो क्योंकि योग ठीक नहीं है। नष्टोमोहा नहीं बने हो। बाप तो एवर प्योर अथवा पवित्रता का सागर है। तुम जानते हो हम आत्मा ही आइरन एजेड बनी हैं तो जेवर भी झूठा मिला है इसलिए पहले आत्मा की खाद को निकालना चाहिए। बाप को याद करो। इसको योग अग्नि कहा जाता है। शिवबाबा कहते हैं मैं तो एवर प्योर हूँ। मैं नहीं होता तो तुमको प्योर कौन बनाये? अपने को आत्मा पक्का निश्चय करो। हमारी आत्मा में 84 जन्मों में खाद पड़ी है। अभी हम बाबा के साथ योग लगाने से पवित्र हो जायेंगे। कोई विकार नहीं रहेगा। अगर कोई रह गया तो सजा खानी पड़ेगी। तो हम क्यों न निरन्तर पुरुषार्थ करें, मेहनत से अवस्था ऐसी हो जो कभी भी माया का तूफान हिला न सके। अचल घर बन जाओ। आत्मा जो इसके अन्दर है, वह बाप की याद में परिपक्व अवस्था में आ जाए तो फिर कर्मातीत अवस्था आ जायेगी। कोई विकर्म नहीं होगा। आत्मा पवित्र हो जायेगी। मेहनत है ना। परमपिता परमात्मा का भी पार्ट है। हम उनको याद करते हैं। वह कैसे आकर पढ़ाते हैं। सो तो प्रैक्टिकल में होगा ना। भगवान् ने पढ़ाया था 5 हजार वर्ष पहले। बरोबर प्राचीन भारत का राजयोग सिखाया था। बच्चे जानते हैं यह वही प्राचीन राजयोग है। बाप कहते हैं मुझे याद करो इसमें ही मेहनत है। सारी याद की बात है। बाप फ़रमान करते हैं मुझे याद करो। परन्तु माया फ़रमान पर चलने नहीं देती। विघ्न डाल देती है। बाप कहते हैं मुझे याद करने से तुम मेरे जैसे पवित्र बन जायेंगे और फिर नॉलेजफुल, ब्लिसफुल बनते हो। तुम ब्लिस कर रहे हो। तुमको यहाँ तीन पैर पृथ्वी के नहीं मिलते और बाप तुमको सारे विश्व की बादशाही देते हैं इसलिए सब बाप को याद करते हैं। वाणी से परे जाने लिए मनुष्य वानप्रस्थ लेते हैं अर्थात् मुक्तिधाम में जाना चाहते हैं। मुक्ति-जीवन्मुक्ति तो बाप के सिवाए कोई दे नहीं सकते। बाप द्वारा तुम पहले शूद्र से ब्राह्मण बनते हो। तकलीफ की कोई बात नहीं, उठते-बैठते चलते-फिरते अपना पुरुषार्थ करते रहो। तुम समझते हो याद करेंगे तो गोरे बन जायेंगे। तुम्हारी आत्मा पवित्र हो जायेगी। पावन बाप आकर पावन होने की युक्तियां बतलाते हैं। मोस्ट बील्वेड बाप को याद करते रहना है। मनुष्य बीमार पड़ते हैं तो उनको कहते हैं फलाने को याद करो। परन्तु ऐसे थोड़ेही वह याद ठहरेगी। इसमें बड़ा अभ्यास चाहिए, तब ही अन्त मती सो गति होगी। तुमको बाप की याद में रहना है। कर्मातीत बनना ही है। योग से विकर्मों को भस्म करेंगे तो वह सजायें नहीं खायेंगे। योग में नहीं रहेंगे तो सजा खाकर मुक्तिधाम में जायेंगे, इसमें भी नम्बरवार हुआ। तो गोरा मुसाफिर एक बाबा है। मुसाफिर तो सभी आत्मायें भी हैं। कितना दूर से आती हैं पार्ट बजाने। जैसे वह एक्टर्स घर से आते हैं पार्ट बजाने। यह रावण का पराया देश है ना। रावण ने पतित बनाया है। मैं फिर पतित को पावन बनाए साथ ले जाऊंगा। कोई गुरू को अथाह फालोअर्स होते हैं। लेकिन वह तो साथ ले नहीं जाते हैं और न खुद ही जाते हैं। रास्ता ही नहीं जानते। ज्योति ज्योत में तो कोई समाते नहीं। आत्मा इमार्टल है। टुकड़ा-टुकड़ा नहीं होती है। शरीर मरता है, जलता है। आपघात भी करते हैं। एक-दो में कुछ हुआ, आश पूरी न हुई तो दोनों मिलकर डूब मरते हैं, उनको जीव-घाती महापापी कहा जाता है। आत्मघाती नहीं, शरीर का विनाश होता है। तो जितना बाप को याद करेंगे उतना धारणा होगी। भल कोई कितनी भी अच्छी मुरली चलाने वाला हो, माया ऐसी है जो एक थप्पड़ से खलास कर देती है। उनकी बॉक्सिंग चलती रहती है। यह युद्ध-स्थल है ना। युद्ध का मैदान है। शास्त्रों में तो क्या-क्या बैठ दिखाया है, रात-दिन का फ़र्क है। इस समय के लिए कहा जाता है ज्ञान प्राय: लोप हो गया है। देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो गया है। बाकी जड़ चित्र रहे हैं। तुम शिव के मन्दिर में जायेंगे तो झट कहेंगे यह शिवबाबा का मन्दिर हैं। ब्रह्मा के मन्दिर में जायेंगे तो कहेंगे यह दादा का है। यह जगत अम्बा मम्मा का मन्दिर है। नीचे राजयोग की तपस्या कर रहे हैं और ऊपर वैकुण्ठ का यादगार है। नहीं तो भला कहाँ दिखावें। कोई मरता है तो कहते हैं यह तो वैकुण्ठ गया। तो उन्होंने वैकुण्ठ ऊपर में बना दिया है। यादगार ड्रामा अनुसार पूरा है। बाबा और मम्मा - कामधेनु बैठी है। उन्हों ने फिर गऊ समझ लिया है। गऊ को फ़कीर लोग लेकर निकलते हैं तो यह है कामधेनु और कपिल देव। कपिल देव पास कामधेनु रहती थी। कहानियां तो बहुत हैं।

    शिवबाबा कहते हैं - हम मुसाफिर हैं। यह ब्रह्मा (दादा) ऐसे नहीं कहेंगे। शिवबाबा कहते हैं हम मुसाफिर एवर प्योर हैं। यह है अपवित्र विकारी दुनिया। वह है निर्विकारी दुनिया। यह बना-बनाया ड्रामा है। बाप बैठ समझाते हैं। दुनिया में कोई नहीं जानते। आत्मायें हैं निराकारी दुनिया में रहने वाली। यहाँ आती हैं पार्ट बजाने। कर्मक्षेत्र है। परमधाम को कर्मक्षेत्र नहीं कहेंगे। इसको नाटक कहते हैं। भारत हीरे तुल्य और कौड़ी तुल्य बनता है। भारत के ही वर्ण हैं। ब्राह्मण वर्ण, देवता वर्ण, क्षत्रिय वर्ण, वैश्य, शूद्र वर्ण... इनमें ही 84 जन्म पूरे होते हैं। सब धर्मों के 84 जन्म नहीं होते हैं। कितनी बातें मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को समझाते हैं। बच्चे जानते हैं कल्प-कल्प पढ़ते आये। पुरुषार्थ अनुसार ही ट्रान्सफर होंगे। जैसे स्कूलों में ट्रान्सफर होते हैं ना। तुम भी नम्बरवार जाकर राजाई करते हो। सिर्फ बाप का बन बाप को याद करो। बाप को तो घड़ी-घड़ी याद करो। नहीं तो विकर्म विनाश कैसे होंगे। घड़ी-घड़ी अपने से बातें करनी है। हम आत्मा तो इमार्टल हैं। बाबा ने फरमान किया है मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश नहीं होंगे। पद भी ऊंच नहीं मिलेगा। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) योग अग्नि से विकर्मों की खाद भस्म कर गोरा बनना है। पवित्र बन सभी पर पवित्रता की ब्लिस करनी है।

    2) स्वयं को ऐसा अचलघर बनाना है जो कोई भी विकर्म न हो। याद की मेहनत से अपनी अवस्था परिपक्व बनानी है।

    वरदान:-

    स्वयं को अवतरित हुए अवतार समझ सदा ऊंची स्थिति में रहने वाले अर्श निवासी फरिश्ता भव

    जैसे बाप अवतरित हुए हैं ऐसे आप श्रेष्ठ आत्मायें भी ऊपर से नीचे मैसेज देने के लिए अवतरित हुए हो, रहने वाले सूक्ष्मवतन वा मूलवतन के हो। देह-भान रूपी मिट्टी अथवा पृथ्वी पर आपके बुद्धि रूपी पांव नहीं पड़ सकते इसलिए फरिश्तों के पांव सदा फर्श से ऊपर दिखाते हैं। तो आप सब ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाले अर्श निवासी अवतरित हुए अवतार हो, इसी स्मृति से उड़ती कला में उड़ते रहो।

    स्लोगन:-

    स्व-परिवर्तन के तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को ही बाप के दुआओं की मुबारक मिलती है।

    ***OM SHANTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 27 June 2023

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