Brahma Kumaris Murli Hindi 25 June 2023

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 June 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 June 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 June 2023


    25-06-23 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 19-01-95 मधुबन

    ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख आज्ञाकारी और सर्वन्श त्यागी बनो

    आज बेहद का बापदादा अपने बेहद के सेवा साथियों को देख रहे हैं। दो प्रकार के साथी हैं - एक हैं स्नेह सम्बन्ध का साथ निभाने वाले और दूसरे हैं स्नेह, सम्बन्ध और सेवा का साथ निभाने वाले। दोनों प्रकार के साथियों को देख रहे हैं। चाहे विश्व के लास्ट कोने में भी हैं लेकिन बापदादा के सामने हैं। बापदादा और बच्चों का वायदा है कि कहाँ भी रहेंगे, जहाँ भी हैं लेकिन सदा साथ हैं। ये ब्राह्मण जीवन आदि से अन्त तक बाप और बच्चों का अविनाशी साथ है। चाहे बच्चे साकार में हैं और बापदादा आकार निराकार हैं लेकिन अलग हैं क्या? नहीं है ना! तो दूर हो या समीप हो? ये दिल की समीपता साकार में भी समीपता अनुभव कराती है। चाहे किसी भी देश में हैं लेकिन दिल की समीपता साथ का अनुभव कराती है। अलग हो नहीं सकते, असम्भव है। परमात्म वायदा कभी टल नहीं सकता। परमात्म वायदा भावी बन जाता है तो भावी टाली नहीं टलेश् इसलिये सदा समीप हैं, सदा साथी हैं और साथी बन हाथ में हाथ, साथ लेते हुए कितने मौज से चल रहे हैं। मौज है कि मेहनत है? थोड़ी-थोड़ी मेहनत है? जब कोई बात आ जाती है तो बाप किनारे हो जाता है। कोई बात को नहीं लाओ तो बाप नहीं जायेगा। बात बाप को किनारे करती है। जैसे बीच में कोई पर्दा आ जाये, तो पर्दा आने से किनारा हो जाता है ना! तो ये बात रूपी पर्दा बीच-बीच में आ जाता है। लेकिन लाने वाला कौन? पर्दे का काम है आना और आपका काम क्या है? हटाना या थोड़ा-थोड़ा मजा लेना? बापदादा देखते हैं, बच्चे कभी-कभी बातों में बड़े मजे लेते हैं।

    जिससे प्यार होता है, प्यार की निशानी है साथ रहना। साथ रहने का मतलब यह नहीं है कि आबू में रहना। आबू में तो देखो अभी थोड़ी भी संख्या ज्यादा है तो पानी की मुश्किल हो गई है ना! तो साकार में साथ रहना नहीं लेकिन दिल से साथ निभाना। अगर दिल से साथ नहीं निभाते तो मधुबन में होते भी दूर हैं और लास्ट देश में रहते भी दिल से समीप हैं तो वो साथ हैं, इसीलिये बापदादा को दिलाराम कहते हैं, शरीर राम नहीं कहते। तो दिल बाप में है ना? बाप के दिल में आपका दिल है और आपके दिल में बाप का दिल है। तो दिल जाने इस रूहानी साथ को। अनुभवी हो ना? कि यहाँ से जायेंगे तो कहेंगे दूर हो गये? नहीं। सदा साथ निभाना - यह कोई भी आत्मा, आत्मा से नहीं निभा सकती। एक ही परम आत्मा आत्माओं से साथ निभा सकता है। और ये परमात्म साथ निभाने का भाग्य आप सभी बच्चों को ही है ना?

    (आज पूरे हॉल में सभी भाई-बहिनें पट पर बैठे हुए हैं) बहुत अच्छी सीन है। बापदादा को आज की सभा का दृश्य देख करके यादगार याद आ रहा है। यादगार में रूद्र माला दिखाते हैं, उसमें सिर्फ फेस दिखाई देते हैं, शरीर नहीं दिखाई देते। तो यहाँ से भी सिर्फ फेस ही दिखाई दे रहे हैं, बाकी कुछ नहीं दिखाई देता। तो रूद्र माला का यादगार दिखाई दे रहा है। एक के पीछे एक बैठे हैं ना तो शरीर छिप गये हैं, फेस दिखाई दे रहे हैं।

    ये है स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप - ब्रह्मा बाप से सभी का स्नेह है तब तो आये हो ना! और कहलाते भी सभी ब्रह्माकुमार और ब्रह्मा-कुमारी हो, शिवकुमार, शिवकुमारी नहीं कहते। तो ब्रह्मा बाप से ज्यादा प्यार है ना! और ब्रह्मा बाप का भी सदा बच्चों से प्यार है। तभी तो अव्यक्त होते भी अव्यक्त पालना कर रहे हैं। अव्यक्त पालना मिल रही है ना? या आप कहेंगे कि हमने ब्रह्मा बाबा का अनुभव नहीं किया है? ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी कहलाते हो तो क्या बिना बाप की पालना के पैदा हो गये! अगर ब्रह्मा बाप की पालना नहीं होती तो आज सिर्फ निराकार बाप की पालना से यज्ञ की रचना और यज्ञ की वृद्धि नहीं होती। डबल फॉरेनर्स को ब्रह्मा बाप की पालना मिलती है ना? (हाँ जी) देखो, फॉरेन में बाप जाता है, तो इण्डिया में नहीं करता है क्या! तो उलहना तो नहीं देते कि बाबा हमने देखा ही नहीं! सदा मिलते, सदा देखते, सदा साथ रहते हैं। साकार शरीर में, साकार रूप में तो सदा साथ नहीं दे सकते लेकिन अव्यक्त रूप में सभी को साथ दे सकते हैं। जब चाहो मिलन के दरवाजे खुले हुए हैं। अव्यक्त वतन में नहीं कहेंगे कि अभी जगह नहीं है, अभी टाइम नहीं है, नहीं। देह में देह के बंधन हैं और अव्यक्त में न देह का बंधन है, न देह की दुनिया के कायदों का बंधन है। यहाँ तो कायदे रखने पड़ते हैं ना - आगे बैठो, पीछे बैठो। अभी भी समय प्रमाण बहुत-बहुत-बहुत भाग्यवान हो! फिर भी बैठने की जगह तो मिली है ना! फिर तो खड़े रहने की भी जगह मुश्किल होगी क्योंकि आप सभी को औरों को चांस देना पड़ेगा। अभी तो आप लोगों को चांस मिला है। जैसे अभी देखो मधुबन वालों को चांस देना पड़ा ना! (सभी मधुबन निवासी तथा आबू निवासी पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) ये भी परिवार का प्यार है।

    ब्रह्मा बाप से प्यार अर्थात् बाप समान बनना। निराकार के समान बनना, वो थोड़े समय का अनुभव करते हो। लेकिन ब्राह्मण अर्थात् सदा ब्रह्मा समान ब्रह्माचारी। जो ब्रह्मा बाप का आचरण वो ही सर्व ब्राह्मणों का आचरण अर्थात् कर्म। उच्चारण भी ब्रह्मा बाप समान है, आचरण भी ब्रह्मा बाप समान है, जिसको कहते हो फॉलो फादर। तो ब्रह्मा बाप के हर कदम पर कदम रखना इसको कहा जाता है फॉलो फादर। तो ब्रह्मा बाप ने बाप के श्रीमत पर पहला कदम क्या उठाया?

    पहला कदम आज्ञाकारी बने। जो आज्ञा मिली उसी आज्ञा को प्रत्यक्ष स्वरूप में लाया। तो चेक करो कि आज्ञाकारी के पहले कदम में फॉलो फादर हैं? अमृतवेले से लेकर रात तक मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध, सम्पर्क में जो आज्ञा मिली हुई है उसी आज्ञा प्रमाण चलते हैं? कि कोई आज्ञा पालन होती है और कोई नहीं होती है? संकल्प भी आज्ञा प्रमाण है कि मिक्स है? अगर मिक्स है तो फुल आज्ञाकारी हैं या अधूरे आज्ञाकारी? हर समय के संकल्प की आज्ञा स्पष्ट मिली हुई है। अमृतवेले क्या संकल्प करना है ये भी स्पष्ट है ना! तो फॉलो करते हो कि कभी परमधाम में चले जाते हो और कभी निद्रालोक में चले जाते हो? हर कर्म में, हर समय कदम पर कदम है? बाप का कदम एक और बच्चे का कदम दूसरा हो तो उसे आज्ञाकारी नहीं कहेंगे ना! चाहे परमार्थ में, चाहे व्यवहार में, दोनों में जो जैसी आज्ञा है वैसे आज्ञा को पालन करना - इसकी परसेन्टेज़ चेक करो। चेक करना आता है? तो पहला कदम आज्ञाकारी बने, इसलिये आज्ञाकारी को सदा बाप की दुआएं स्वत: मिलती हैं और साथ-साथ ब्राह्मण परिवार की भी दुआएं हैं। तो चेक करो कि जो भी संकल्प किया, चाहे स्व प्रति, चाहे सेवा के प्रति, चाहे स्थूल कर्म के प्रति या अन्य आत्माओं के प्रति उसमें सबकी दुआयें मिली? क्योंकि आज्ञाकारी बनने से सर्व की दुआयें मिलती हैं और यदि दुआयें मिल रही हैं तो उसकी निशानी है कि दुआओं के प्रभाव से दिल सदा सन्तुष्ट रहेगी, मन सन्तुष्ट रहेगा। बाहर की सन्तुष्टता नहीं लेकिन मन की सन्तुष्टता। और मन की सन्तुष्टता यथार्थ है वा मियाँ मिट्ठू हैं - इसकी निशानी, अगर यथार्थ रीति से यथार्थ आज्ञाकारी हैं, दुआएं हैं तो सदा स्वयं और सर्व डबल लाइट रहेंगे। अगर डबल लाइट नहीं रहते तो समझो मन की सन्तुष्टता नहीं। बाप की वा परिवार की दुआएं भी नहीं मिल रही हैं। परिवार की भी दुआएं आवश्यक हैं। ऐसे नहीं समझो कि बाप से हमारा कनेक्शन है, बाप की तो दुआएं हैं, परिवार से नहीं बनता कोई हर्जा नहीं। पहले भी सुनाया कि माला में सिर्फ युगल दाना नहीं है, उससे माला नहीं बनती। तो माला में आना है इसलिए पूरा लक्ष्य रखो कि हरेक आत्मा मुझे देखकर खुश रहे, देख करके हल्के हो जायें, बोझ खत्म हो जाए। तो दिल की सन्तुष्टता वा आज्ञाकारी की दुआएं स्वयं को भी लाइट और दूसरे को भी लाइट बनायेंगी। इससे समझो कि आज्ञाकारी कहाँ तक हैं? जैसे ब्रह्मा बाप को देखा हर एक छोटा-बड़ा सन्तुष्ट होकर खुशी में नाचता। नाचने के टाइम तो हल्के होंगे ना तभी तो नाचेंगे ना। चाहे कोई मोटा है लेकिन मन से हल्का है तो भी नाचता है और पतला है लेकिन भारी है तो नहीं नाचेगा। तो बोल ऐसे हों जो स्वयं भी अपने आपसे सन्तुष्ट हो और दूसरे भी सन्तुष्ट रहें। ऐसे नहीं, हमारा तो भाव नहीं था, हमारी तो भावना नहीं थी, लेकिन भाव और भावना पहुँचती क्यों नहीं? अगर सही है तो दूसरे तक वायब्रेशन्स क्यों नहीं जाता है? कोई तो कारण होगा ना? तो चेक करो दुआओं के पात्र कहाँ तक बने हैं?

    जितना अभी बाप और ब्राह्मण आत्माओं की दुआओं के पात्र बनेंगे उतना ही राज्य के पात्र बनेंगे। अगर अभी ब्राह्मण परिवार को सन्तुष्ट नहीं कर सकते, तो राज्य क्या चलायेंगे! राज्य को क्या सन्तुष्ट करेंगे! क्योंकि ब्राह्मण आत्मायें आपकी रॉयल फैमिली बनेंगे तो जो फैमिली को सन्तुष्ट नहीं कर सकते वो प्रजा को क्या करेंगे? संस्कार तो यहाँ भरना है ना! कि वहाँ योग करके भरेंगे! यहाँ ही भरना है। अगर वर्तमान ब्राह्मण परिवार में कारण का निवारण नहीं कर सकते, कारण-कारण ही कहते रहते हैं, तो जहाँ कारण है वहाँ निवारण शक्ति नहीं है। अगर परिवार में निवारण शक्ति नहीं तो विश्व के राज्य को क्या निवारण करेंगे! क्योंकि आपके राज्य में हर आत्मा सदा निवारण स्वरूप है। वहाँ कारण होंगे क्या? जैसे अभी राज्य सभा में कारण बताते हैं - ये कारण है, ये कारण है, ये कारण है... वहाँ ऐसे राज्य दरबार होगी क्या? वहाँ तो सिर्फ खुश ख़ैऱाफत पूछेंगे। सिर्फ दरबार नहीं है लेकिन बहुत अच्छा मिलन है। तो कारण कहकर अपने को दुआओं से वंचित नहीं करो। ब्रह्मा बाप ने कारण को निवारण किया इसीलिये नम्बरवन हुआ। बापदादा के पास सभी के कारणों के फाइल ही इकट्ठे होते हैं। सभी के फाइल हैं - किसका छोटा, किसका बड़ा फाइल है। तो अभी भी फाइलें रखनी है, फाइल बढ़ाते रहना है या रिफाइन होना है? तो आज से फाइल सब खत्म कर दें? फिर दूसरा नया फाइल तो नहीं रखना पड़ेगा। अगर नया फाइल रखा तो फाइन पड़ेगा। सोच लो! बोलो - खत्म करें कि थोड़ा दिन रखें? शिव रात्रि तक रखें! जो समझते हैं शिवरात्रि तक थोड़ी मार्जिन मिलनी चाहिये, तब तक पुरुषार्थ करके रिफाइन हो जायेंगे, वो हाथ उठाओ। अच्छा है, हिम्मत रखना भी अच्छी बात है। लेकिन सिर्फ अभी हिम्मत नहीं रखना। ऐसे तो नहीं बापदादा के सामने थे तो हिम्मत थी, नीचे उतरे तो थोड़ी हिम्मत कम हो गई और अपने देशों में गये तो और कम हो गई। कोई बात आई तो और कम हो गई। ऐसे तो नहीं करेंगे? देखो जब कोई भी कारण सामने आता है और कारण के कारण हिम्मत कम होती है, कमजोरी आती है और जब वो बात समाप्त हो जाती है तो अपने ऊपर शर्म आती है ना! अपने ऊपर ही संकोच होता है कि ये अच्छा नहीं किया, ये अच्छा नहीं हुआ। करके और फिर पश्चाताप् करे... ये तो आपकी प्रजा का काम है या आपका है? पश्चाताप् वाले क्या राजा बनेंगे? तो सोचो साक्षी स्थिति के सिंहासन पर बैठ जाओ और अपने आपको ही जज करो। अपना जज बनना, दूसरे का जज नहीं बनना। दूसरे का जज बनना सभी को आता है, दूसरे का जज बहुत जल्दी बन जाते हैं और अपना वकील बन जाते हैं। तो साक्षीपन के सिंहासन पर अपने आपका निर्णय बहुत अच्छा होगा। सिंहासन के नीचे रहकर जज करते हो तो निर्णय अच्छा नहीं होता। सेकेण्ड में तख्तनशीन बन जाओ। ये स्थिति आपका तख्त है। यथार्थ सहज निर्णय का तख्त ये साक्षीपन की स्थिति है। साक्षी नहीं होते हैं तो दूसरे की बात, दूसरे की चलन वो ज्यादा सामने आती है, अपनी नहीं आती। अगर साक्षी होकर देखेंगे तो अपनी भी नज़र आयेगी, दूसरे की भी नज़र आयेगी। फिर जजमेन्ट जो होगी वो यथार्थ होगी, नहीं तो यथार्थ नहीं होती।

    बापदादा ने पहले भी सुनाया था कि ड्रामा में जो भी बातें आती हैं, उन बातों में बहुत अच्छा अक्ल है लेकिन कभी-कभी ब्राह्मण बच्चों में अक्ल थोड़ा कम हो जाता है। बात आती है और चली जाती है, लेकिन ब्राह्मण बच्चे बात को पकड़कर बैठते हैं। बात रूकती नहीं, चली जाती है लेकिन स्वयं बात को नहीं छोड़ते। तो बातों में अक्ल ज्यादा हुआ या ब्राह्मणों में? बातें अक्ल वाली हुई ना! कई बच्चे कहते हैं दो दिन से ये बात चल रही है, दो घण्टे ये बात चली और दो घण्टे में गँवाया कितना? दो दिन में गँवाया कितना? तो अक्ल वाले बनो। अच्छा।

    चारों ओर के सर्व बापदादा के स्नेह को प्रत्यक्ष करने वाले, फॉलो फादर करने वाले श्रेष्ठ आत्मायें, सदा बापदादा के कदम पर कदम रखने वाले आज्ञाकारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा ब्रह्मा बाप समान सर्वंश त्यागी विशेष आत्मायें, सदा सपूत बन हर समय सबूत देने वाले सुपात्र आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

    वरदान:-

    ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख हद को बेहद में समाने वाले बेहद के बादशाह भव

    फालो फादर करना अर्थात् मेरे को तेरे में समाना, हद को बेहद में समाना, अभी इस कदम पर कदम रखने की आवश्यकता है। सबके संकल्प, बोल, सेवा की विधि बेहद की अनुभव हो। स्व-परिवर्तन के लिए हद को सर्व वंश सहित समाप्त करो, जिसको भी देखो वा जो भी आपको देखे - बेहद के बादशाह का नशा अनुभव हो। सेवा भी हो, सेन्टर्स भी हों लेकिन हद का नाम निशान न हो तब विश्व के राज्य का तख्त प्राप्त होगा।

    स्लोगन:-

    अपने ख्यालात आलीशान बना लो तो छोटी-छोटी बातों में टाइम वेस्ट नहीं जायेगा।

    ***OM SHANTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 24 June 2023

    No comments

    Note: Only a member of this blog may post a comment.