Brahma Kumaris Murli Hindi 7 May 2023

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Posted by: BK Prerana

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     Brahma Kumaris Murli Hindi 7 May 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 7 May 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 7 May 2023

    07-05-23 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 26-11-94 मधुबन

    परमात्म पालना और परिवर्तन शक्ति का प्रत्यक्ष स्वरूप - सहजयोगी जीवन

    आज बापदादा हर एक बच्चों के मस्तक पर विशेष श्रेष्ठ भाग्य की तीन लकीरें देख रहे हैं। सर्व बच्चों का भाग्य तो सदा सर्वश्रेष्ठ है ही लेकिन आज विशेष तीन लकीर चमक रही हैं। एक है परमात्म पालना के भाग्य की लकीर और दूसरी है बेहद के ऊंचे ते ऊंचे पढ़ाई के भाग्य की लकीर। तीसरी है श्रेष्ठ मत प्राप्त होने के भाग्य की लकीर। चाहे लौकिक, चाहे अलौकिक, हर एक को इस जीवन में ये तीन प्राप्तियाँ होती ही हैं। पालना भी मिलती, पढ़ाई भी मिलती और मत भी मिलती है। इन तीनों द्वारा ही हर आत्मा अपना वर्तमान और भविष्य बनाने के निमित्त बनती हैं। आप सभी श्रेष्ठ आत्माओं को किसकी पालना मिल रही है? परमात्म पालना के अन्दर हर सेकेण्ड पल रहे हो। जैसे परम आत्मा ऊंचे ते ऊंचे हैं तो परमात्म पालना भी कितनी श्रेष्ठ है! और इस परमात्म पालना के पात्र कौन बने हैं और कितने बने हैं? सारे विश्व की आत्मायें ‘बाप' कहती हैं लेकिन पालना और पढ़ाई के पात्र नहीं बनती हैं। और आप कितनी थोड़ी-सी आत्मायें इस भाग्य के पात्र बनती हो! सारे कल्प में यही थोड़ा-सा समय परमात्म पालना मिलती है। दैवी पालना, मानव पालना ये तो अनेक जन्म मिलती है लेकिन ये श्रेष्ठ पालना अब नहीं तो कब नहीं। ऐसे श्रेष्ठ भाग्य की श्रेष्ठ लकीर सदा अपने मस्तक में चमकते हुए अनुभव करते हो? कोई भी प्राप्ति सदा करना चाहते हो या कभी-कभी करना चाहते हो? तो प्राप्ति का पुरुषार्थ भी सदा चाहिये या कभी-कभी चाहिये? और सदा तीव्र चाहिये या कभी साधारण, कभी तीव्र? प्रैक्टिकल क्या है? चाहना और प्रैक्टिकल में अन्तर हो जाता है ना! सोचते तो बहुत हो लेकिन स्मृति में कम रखते हो। सोचना स्वरूप बनना है या स्मृति स्वरूप बनना है? स्मृति स्वरूप बनने वाले हो ना! तो एक बात भी स्मृति में रखो कि अमृतवेले आपको उठाने वाला कौन? बाप का प्यार उठाता है। दिन का आरम्भ कितना श्रेष्ठ है! और बाप स्वयं मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रुहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! तो हर दिन का आदि कितना श्रेष्ठ है! बाप की मोहब्बत से उठते हो कि कभी-कभी मज़बूरी से भी उठते हो? यथार्थ तो मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं। अमृतवेले से बाप कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं - मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ...। तो जिसका आदि इतना श्रेष्ठ है तो मध्य और अन्त क्या होगा? श्रेष्ठ होगा ना!

    बापदादा देख रहे थे कि कितना पालना का भाग्य वर्तमान समय बच्चों को प्राप्त है! जितना प्राप्त है उतना फायदा उठाते हो? स्वप्न में भी संकल्प मात्र नहीं था कि इतने भाग्य के पात्र बनेंगे! सोचने से बाहर था लेकिन मिला कितना सहज! बाप के प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप ही है ‘सहज योगी जीवन'। जिससे प्यार होता है उसके लिये मुश्किल परिस्थिति या मुश्किल कोई भी बात देखी-सुनी नहीं जाती। तो बाप ने भी मुश्किल को सहज बनाया है ना! सदा सहज है। तो सदा ही पुरुषार्थ की गति तीव्र हो। आज बहुत अच्छा पुरुषार्थ है और कल थोड़ी परसेन्टेज़ कम हो गई तो क्या सदा सहज कहेंगे? सदा मुश्किल कौन बनाते हैं? स्वयं ही बनाते हो ना? कारण क्या? सोचने की तो आदत है लेकिन स्मृति स्वरूप के संस्कार कभी इमर्ज रखते हो, कभी मर्ज हो जाते हैं क्योंकि स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। सोचना, यह समर्थी स्वरूप नहीं है। स्मृति समर्थी है। विस्मृति में क्यों आ जाते हो? आदत से मजबूर हो जाते हो। अगर मजबूत नहीं तो मजबूर हो जायेंगे। जहाँ मजबूत हैं वहाँ मजबूरी नहीं है। जब ओरीजनल आदत विस्मृति की नहीं है। आदि में स्मृति स्वरूप प्रालब्ध प्राप्त करने वाली देवात्मायें हो, योग लगाने का पुरुषार्थ नहीं करते लेकिन स्मृति स्वरूप की प्रालब्ध प्राप्त करते हो। तो आदि में भी स्मृति स्वरूप का प्रत्यक्ष जीवन है और अनादि आत्मा, जब आप परमधाम से आई तो आप विशेष आत्माओं के संस्कार स्वत: ही स्मृति स्वरूप हैं। और अन्त में संगम पर भी स्मृति स्वरूप बनते हो ना! तो अनादि, आदि और अन्त - तीनों ही काल स्मृति स्वरूप हैं। विस्मृति तो बीच में आई। तो आदि, अनादि स्वरूप सहज होना चाहिये या मध्य का स्वरूप? सोचते हो कि हाँ, मैं आत्मा हूँ लेकिन स्मृति स्वरूप हो चलना, बोलना, देखना उसमें अन्तर पड़ जाता है। तो यह स्मृति में रखो कि हम परमात्म पालना की अधिकारी आत्मायें हैं।

    बापदादा चार्ट चेक करते हैं तो लकीर कभी ऊंची, कभी नीची होती है, कभी कोई दाग होता है, कभी जीवन के काग़ज में कोई दाग नहीं भी होता है और कोई समय दाग ही दाग, एक पीछे दूसरा, दूसरे के पीछे तीसरा दाग ही नज़र आते हैं। क्यों? एक तो गलती हो जाती है लेकिन गलती होने के बाद भी उसी गलती को सोचते रहते हो। क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं, वैसे.... कई रूप से बात को छोड़ते नहीं हो। बात आपको छोड़ कर चली जाती है लेकिन आप बात को नहीं छोड़ते हो। जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो, यथार्थ स्मृति स्वरूप नहीं बनते हो, तो दाग के ऊपर दाग लगते जाते हैं। पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार होने के कारण पेपर का टाइम बढ़ा देते हो। सेकेण्ड पूरा हुआ और निर्विकल्प स्थिति बन जाये यह संस्कार इमर्ज करो। निर्विकल्प बनना आता है ना? अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में लाकर सदा हर्षित रहो। अपने परमात्म पालना को सदा बार-बार स्मृति में लाओ। सुनना भी आता है, सोचना भी आता है लेकिन फर्क क्या पड़ जाता है? बापदादा बच्चों का खेल देखते रहते हैं। सारे दिन में क्या-क्या खेल करते हो - ये रात्रि को चेक करते हो ना? माया के खिलौने बड़े आकर्षण वाले हैं। तो उन खिलौनों से खेलने लग जाते हो। पहले तो बहुत प्यार से माया खेल कराती है और खेल कराते-कराते जब हार खिलाती है तब होश में आते हैं। मैजारिटी में एक विशेष शक्ति की कमी रह जाती है। कभी बहुत अच्छे चलते हो, कभी चलते हो, कभी उड़ते हो, आगे बढ़ते हो लेकिन फिर नीचे क्यों आ जाते हो? इसका विशेष कारण क्या? परिवर्तन शक्ति की कमजोरी है। समझते भी हो कि ये यथार्थ नहीं है लेकिन परिवर्तित होने की कमी हो जाती है। ब्राह्मण जीवन में परिवर्तन में आ गये, अब कोई कहेंगे कि मैं ब्राह्मण नहीं हूँ? सभी अपने को बी.के. लिखते हो ना! हम ब्राह्मण हैं, यह समझते हो ना? ब्राह्मण जीवन में जो परीक्षायें आती हैं उसमें परिवर्तन करने की शक्ति आवश्यक होती है। जब व्यर्थ संकल्प चलते हैं तो समझते भी हो कि ये व्यर्थ हैं। लेकिन व्यर्थ संकल्पों का बहाव इतना तेज़ होता है जो अपने तरफ खींचता जाता है। जैसे नदी का वा सागर का बहुत फोर्स होता है तो कितना भी अपने को रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर भी बहते जाते हैं। समझते भी हो, सोचते भी हो कि ये ठीक नहीं है, इससे नुकसान है फिर भी बहाव में बह जाते हो इसका कारण क्या? परिवर्तन शक्ति की कमी। पहला विशेष परिवर्तन है स्वरूप का परिवर्तन। मैं शरीर नहीं, लेकिन आत्मा हूँ, यह स्वरूप का परिवर्तन है। यह आदि परिवर्तन है। इसमें भी चेक करो तो जब देहभान का फोर्स होता है तो आत्म अभिमान के स्वरूप में टिक सकते हो या बह जाते हो? अगर सेकेण्ड में परिवर्तन शक्ति काम में आ जाये तो समय, संकल्प कितने बच जाते हैं। वेस्ट से बेस्ट में जमा हो जाते हैं।

    पहली परिवर्तन शक्ति है स्वरूप का परिवर्तन और स्वभाव का परिवर्तन। पुराना स्वभाव पुरुषार्थी जीवन में धोखा देता है। समझते भी हो कि यह मेरा स्वभाव यथार्थ नहीं है और यह स्वभाव समय प्रति समय धोखा भी देता है - यह भी समझते हो, लेकिन फिर भी स्वभाव के वश हो जाते हो। फिर अपने बचाव के लिये कहते हो कि मेरा भाव नहीं था, मेरा स्वभाव ऐसा है, मैं चाहता या चाहती नहीं हूँ लेकिन मेरा स्वभाव है। ब्राह्मण बन गये तो जन्म बदल गया, सम्बन्ध बदल गया, माँ-बाप बदल गये, परिवार बदल गया लेकिन स्वभाव नहीं बदला। फिर रॉयल शब्द कहते कि मेरी नेचर है। तो पहली कमजोरी स्वरूप का परिवर्तन, दूसरा स्वभाव का परिवर्तन, तीसरा संकल्प का परिवर्तन। सेकेण्ड में व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करो। कई समझते हैं बस आधा घण्टे का तूफान था, आधा घण्टा, 15 मिनट चला, लेकिन आधा घण्टा वा 15 मिनट की कमजोरी संस्कार बना देती है ना? जैसे शरीर में अगर कोई बार-बार कमजोर होता रहे तो सदा के लिये कमजोर बन जाते हैं। तो 15 मिनट कोई कम नहीं हैं। संगमयुग का एक-एक सेकेण्ड वर्षों के समान है। तो ऐसे अलबेले नहीं बनो। भल थोड़ा ही चला लेकिन गँवाया कितना? जब कदम में पदम कहते हो तो 15 मिनट में कितने कदम उठेंगे और कितने पदम गँवाये? जमा में तो हिसाब अच्छा रखते हो कि कदम में पदम जमा हो गया लेकिन गँवाने का भी तो हिसाब रखो। तो न चाहते हुए भी संस्कार खींचते हैं। जो भी बात बार-बार होती वो संस्कार रूप में भर जाती है। तो संकल्प परिवर्तन करो। सिर्फ सोचते नहीं रहो - करना नहीं चाहिये, हो गया, क्या करुँ? नहीं, सोचो और करके दिखाओ। कहते हो बीती को बिन्दी लगाओ, एक-दो को ज्ञान देते हो ना - कोई आकर बात करेंगे तो कहेंगे ठीक है, बिन्दी लगा दो, लेकिन स्वयं बिन्दी लगाते हो? बिन्दी लगाने लिये कौन-सी शक्ति चाहिए? परिवर्तन शक्ति। परिवर्तन शक्ति वाला सदा ही निर्मल और निर्मान रहता है। जैसे पहले भी बापदादा ने सुनाया है कि मोल्ड होने वाला ही रीयल गोल्ड है। रीयल गोल्ड की निशानी है वो मोल्ड हो जायेगा। तो चेक करो कि परिवर्तन शक्ति समय पर काम आती है या समय बीत जाने के बाद सोचते ही रहते हैं? तो परिवर्तन शक्ति को बढ़ाना है। जिसमें परिवर्तन शक्ति है वो सबका प्यारा बनता है। विचारों में भी सहज रहेगा, आगे बढ़ते सेवा में रहते हो ना? सेवा में भी विघ्न रूप क्या होता है? मेरा विचार, मेरा प्लैन, मेरी सेवा इतनी अच्छी होते हुए भी मेरा क्यों नहीं माना गया? तो उसको रीयल गोल्ड कहेंगे? मेरापन आ गया, मेरा-पन आना अर्थात् अलाय मिक्स होना। जब रीयल गोल्ड में अलाए मिक्स हो जाता है तो वो रीयल रहता है? उसका मूल्य रहता है? कितना फर्क पड़ जाता है! तो समय और वायुमण्डल को परखकर अपने को परिवर्तन करना, इसकी आवश्यकता है। मोटी-मोटी बातों में परिवर्तन करना तो सहज है लेकिन हर परिस्थिति में, हर सम्बन्ध, सम्पर्क में समय और वायुमण्डल को समझ स्वयं को परिवर्तन करना, यही नम्बरवन बनना है। ये नहीं सोचो कि फलाना भी समझे ना, ये भी तो परिवर्तन करे ना, सिर्फ मैं ही परिवर्तन करुँ क्या? जो ओटे सो अर्जुन, इसमें अगर आपने अपने को परिवर्तन किया तो ये परिवर्तन ही विजयी बनने की निशानी है। समझा। अच्छा।

    चारों ओर के सर्व सदा स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा सेकेण्ड में परिवर्तन शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा सहज योगी अनुभव करने वाले अनुभवी आत्माओं को, सदा बाप के समीप और समान बनने के उमंग-उत्साह में रहने वाली सर्व आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

    टीचर्स:- सभी टीचर्स तो सदा ही ज्ञान स्वरूप, स्मृति स्वरूप हैं ही क्योंकि जैसे बाप शिक्षक बनकर आते हैं तो बाप समान निमित्त शिक्षक हो। बाप जैसे नहीं हो, लेकिन निमित्त शिक्षक हो। तो टीचर्स की विशेषता निमित्त भाव और निर्मान भाव। सफल टीचर वही बनती है जिसका निर्मल स्वभाव हो। अभी निर्मल स्वभाव के ऊपर विशेष अण्डरलाइन करो। कुछ भी हो जाए लेकिन अपना स्वभाव सदा निर्मल रहे। यही निर्मल स्वभाव निर्मानता की निशानी है। तो अण्डरलाइन करो ‘निर्मल स्वभाव'। बिल्कुल शीतल। शीतलता का गायन शीतला देवी है। तो निर्मल स्वभाव अर्थात् शीतल स्वभाव। बात जोश दिलाने की हो लेकिन आप निर्मल हो तब कहेंगे सफल टीचर। तो बाप-दादा फिर भी अण्डरलाइन करा रहा है किस पर? निर्मल स्वभाव। समझा? अच्छा!

    प्रश्न:-

    सबसे बड़ा खज़ाना कौन सा है? जिससे ही ज्ञान और योग की परख होती है?

    उत्तर:- 

    सबसे बड़ा खज़ाना है खुशी। चाहे कितना भी ज्ञान हो, योग हो लेकिन खुशी की प्राप्ति नहीं तो ज्ञान ठीक नहीं। कोई भी परिस्थिति आ जाए खुशी गायब नहीं हो सकती। अविनाशी बाप का अविनाशी खज़ाना मिला है इसलिए खुशी कभी गायब नहीं हो सकती। योग लगाते लेकिन खुशी नहीं तो योग ठीक नहीं। आपकी खुशी देख दूसरे आपसे पूछें कि क्या आपको मिला है, यही ज्ञान और योग की प्रत्यक्षता का साधन है।

    प्रश्न:- 

    किस लगन के आधार पर विघ्नों की समाप्ति स्वत: हो जाती है?

    उत्तर:- 

    एक बाप दूसरा न कोई, इसी लगन में मगन रहो तो विघ्न टिक नहीं सकता। विघ्न है तो लगन नहीं। विघ्न भल आयें लेकिन उसका प्रभाव न पड़े। जब स्वयं प्रभावशाली आत्मा बन जाते तो किसी का प्रभाव नहीं पड़ सकता। जैसे सूर्य को कोई कितना भी छिपाये तो छिप नहीं सकता! सदा चमकता रहता है। ऐसे ही प्रभावशाली आत्माओं को कोई भी प्रभाव अपने तरफ खींच नहीं सकता। तो सदा एक बाप दूसरा न कोई, इसी लगन में मगन रहने वाले, यही विशेष संगमयुग का अनुभव है।

    वरदान:-

    स्नेह की लिफ्ट द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले अविनाशी स्नेही भव

    मेहनत से मुक्त होने के लिए बाप के स्नेही बनो। यह अविनाशी स्नेह ही अविनाशी लिफ्ट बन उड़ती कला का अनुभव कराता है। लेकिन यदि स्नेह में अलबेलापन है तो बाप से करेन्ट नहीं मिलती और लिफ्ट काम नहीं करती। जैसे लाइट बन्द होने से, कनेक्शन खत्म होने से लिफ्ट द्वारा सुख की अनुभूति नहीं कर सकते, ऐसे स्नेह कम है तो मेहनत का अनुभव होता है, इसलिए अविनाशी स्नेही बनो।

    स्लोगन:-

    शुभ संकल्प और दिव्य बुद्धि के यंत्र द्वारा तीव्रगति की उड़ान भरते रहो।

    ***OM SHANTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 7 May 2023

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