Brahma Kumaris Murli Hindi 12 April 2023

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 April 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 April 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 April 2023

    12-05-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - ऊंची मत एक बाप की है, उसी पर सदा चलते रहो, मातेले बन बाप से पूरा-पूरा वर्सा लो''

    प्रश्नः-

    सौतेले बच्चों को किस बात का निश्चय न होने के कारण बाप के पूरे मददगार नहीं बन सकते हैं?

    उत्तर:-

    सौतेले बच्चों को यह निश्चय ही नहीं होता कि अभी पवित्र बनने से ही पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। बिना पवित्र बनें पवित्र दुनिया स्थापन नहीं हो सकती। यह निश्चय हो तो पूरे-पूरे मददगार बनें। मातेले बच्चे बाप को पूरा पहचान लायक बनने का पुरुषार्थ करते हैं। बाप की श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनते हैं।

    गीत:-

    तकदीर जगाकर आई हूँ.... 

    ओम् शान्ति।

    बच्चों ने गीत सुना। यह बच्चों का कहना है कि हम पाठशाला में आये हुए हैं। इनको कामॅन सतसंग नहीं कहेंगे। सत के साथ संग तुम्हारा ही है। सत कहा जाता है एक परमपिता परमात्मा को। अब तुम बच्चे उस सत अर्थात् बेहद बाप के संग में बैठे हो। बाप हैं वास्तव में दो। हद का बाप और बेहद का बाप। एक है सभी आत्माओं का निराकारी बाप, दूसरा है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम बच्चों को अब दोनों बाप मिले हैं। बेहद का बाप, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है, वह एक ही सब भक्तों का भगवान है। भक्त तो अथाह हैं। भगवान है एक। वह है निराकार बेहद का बाप। दूसरा है प्रजापिता ब्रह्मा बेहद का बाप और तीसरा है लौकिक बाप। शरीर तो विकार से जन्म लेने वाला है। उनको कुख वंशावली कहा जाता है। इस कलियुगी दुनिया को पाप आत्माओं की दुनिया कहा जाता है। दूसरी है पुण्य आत्माओं की दुनिया - वाइसलेस वर्ल्ड, नई दुनिया। दुनिया एक ही है, दो नहीं हैं। घर एक ही होता है, दो नहीं। शुरू में उसको नया घर कहा जाता है, फिर पुराना हो जाता है। भारत नया था तो उसको सतयुग कहा जाता है। अब पुराना है, तो उनको कलियुग कहा जाता है। इनको दु:ख देने वाली विकारी दुनिया कहा जाता है। जब विश्व नई थी तो भारत भी नया था। अब सृष्टि पुरानी है तो भारत भी पुराना हो गया है। नये भारत में सिवाए देवी-देवताओं के और कोई धर्म नहीं था। एक ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था और कोई खण्ड नहीं था, 5 हज़ार वर्ष की बात है। भारत को स्वर्ग कहा जाता था। दो कला कम हुई तो त्रेता में राम-सीता का राज्य हुआ। देवता, क्षत्रिय धर्म में आ गये। सतयुग त्रेता दोनों को मिलाकर सुखधाम कहा जाता है। जब दु:खधाम द्वापर से शुरू होता है तो भक्ति मार्ग शुरू होता है। भारत जो सद्गति में था सो दुर्गति में आ जाता है। पहले 16 कला सद्गति फिर 14 कला सद्गति फिर जब द्वापर से वाम मार्ग शुरू हुआ तो भारतवासी दु:खी होने शुरू हुए। दु:खी बनाया है रावण ने। अब सब रावण मत पर चल रहे हैं। ईश्वर को कोई जानते नहीं। ऊंचे ते ऊंची मत उनकी गाई हुई है। अब तुम आये हो नई दुनिया के लिए तकदीर जगाने। मनुष्य तो सब पुरानी दुनिया के लिए मेहनत करते हैं।

    तुम जानते हो अभी इस पुरानी दुनिया के विनाश के लिए महाभारत लड़ाई है। परन्तु विनाश होने के पहले नई सृष्टि भी चाहिए। अब बाप नई सृष्टि रच रहे हैं। तुम सब हो ईश्वर की सन्तान। पहले आसुरी सन्तान थे। अभी सदा पावन की सन्तान बने हो - सुखधाम का वर्सा पाने अर्थात् देवता पद पाने। तुम बेहद के बाप से तकदीर बनाने आये हो। बाप तुम बच्चों को बेहद का सुख देने फिर से आया है। भारतवासी बिल्कुल कौड़ी तुल्य बन पड़े हैं। अब राजा कोई नहीं, प्रजा का प्रजा पर राज्य है। देवी-देवता जो पवित्र थे, अब पतित बन पड़े हैं। गाते हैं पतित-पावन आओ। रावण को जलाते हैं परन्तु रावण जलता नहीं। सतयुग में थोड़ेही जलायेंगे। सतयुग में वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी देवी-देवताओं का राज्य था। इस समय सब नर्कवासी बन पड़े हैं। अब इस पार से उस पार जाना है। खिवैया एक ही है, वह आकर विषय सागर से क्षीरसागर में ले जाते हैं। यहाँ के साहूकार लोग समझते हैं हम तो स्वर्ग में हैं। जो गरीब हैं वह नर्क में हैं। उनको मालूम नहीं स्वर्ग किसको कहा जाता है। तुम जानते हो सतयुग में था पारसनाथ और पारसनाथियों का राज्य। बेहद के बाप को तुम पहचान कर बाप कहते हो तो जरूर वर्सा मिलना चाहिए। तुमको यह याद रखना है कि हम शान्तिधाम के वासी हैं। परमधाम से यहाँ आये हैं पार्ट बजाने। 84 जन्म कैसे लेते हो - यह बाप बैठ सारा हिसाब समझाते हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, अब कलियुग का अन्त है। यहाँ तुम बाप से सहज योग सीख रहे हो। तुम कहते हो - बाबा, हम सूर्यवंशी घराने में जरूर आयेंगे। यह एम ऑब्जेक्ट है। यह पाठशाला है भगवान की। भगवानुवाच - बच्चे, मैं तुमको मनुष्य से देवता बनाने आया हूँ। तुम राजाओं का राजा बनो। मातेले बन पूरा वर्सा लो। श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनेंगे। बाप है ऊंचे ते ऊंचा। निराकार भगवान, न साकारी, न आकारी। आकारी है ब्रह्मा-विष्णु-शंकर देवतायें। उनको भगवान नहीं कहा जाता है। भगवान है एक, भक्त हैं अनेक। भक्ति मार्ग वाले भक्त कितने धक्के खा रहे हैं। कोई कहाँ, कोई कहाँ। तुम सब ड्रामा के एक्टर्स हो तो ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर का मालूम होना चाहिए। परन्तु कुछ भी नहीं जानते। सतयुग में सूर्यवंशी देवतायें थे उन्हों की महिमा गाते हैं। हैं तो दोनों मनुष्य फिर उन्हों की महिमा क्यों गाते हैं? क्योंकि उन्हों को ईश्वर ने ऐसा बनाया है। तुमको भी बाप मनुष्य से देवता बना रहे हैं। फिर तुम देवता से क्षत्रिय... आदि बनेंगे। नई दुनिया में रहने वाले देवतायें फिर पुरानी दुनिया में तमोप्रधान पतित बन जाते हैं। बाबा आकर फिर लायक बनाते हैं। कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं। तुम्हारे में कोई अच्छी रीति पहचानते हैं कोई सेमी। सेमी को सौतेला कहा जाता है। निश्चय नहीं करते कि बाबा हम जरूर पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। मददगार नहीं बनते। पहले तो मात-पिता का बनना पड़े। बाबा हम आपके थे फिर आधा कल्प बाप को भूल माया के वश हो गये। अब फिर आपके बने हैं। इस पतित दुनिया में पतितों का ही मान है। स्वर्ग में ऐसी कोई बात नहीं होती।

    बाबा ने समझाया है स्वर्ग में शरीर छोड़ने के पहले साक्षात्कार होता है। अभी हम यह शरीर छोड़ जाए बालक बनेंगे। शरीर की आयु पूरी हुई है। अकाले मृत्यु होता नहीं। पुराना शरीर छोड़ नया ले लेते हैं। सर्प का मिसाल, भ्रमरी का मिसाल... भ्रमरी में भी अक्ल है। आज के मनुष्य में यह अक्ल नहीं रहा है। तुम सच्ची-सच्ची भ्रमरियाँ हो। वैरायटी कीड़ों को भूँ-भूँ करके मनुष्य से देवता बनाती हो। तुमको बाप सुखी बनाने आया है। सहज योग सिखलाने आया है। बाप ने राजयोग कब सिखलाया था, यह कोई नहीं जानते इसलिए बाप कहते हैं - बच्चे, तुम मेरी मत पर चलकर श्रेष्ठ बनो। इस समय सबकी आसुरी मत है। सर्वव्यापी के ज्ञान ने भारत को बिल्कुल कौड़ी मिसल बनाया है। कर्जा लेते रहते हैं। भगवान कौन है, कहाँ रहते हैं - मनुष्य कुछ भी नहीं जानते। वह तो निराकार है फिर यहाँ कैसे ढूँढते हो। भगवान कहते हैं तुम कहते हो हम शिवानंद के फालोअर्स हैं फिर उनको फालो कहाँ करते हो। आजकल उन्हों का कितना मान है। परन्तु श्रीमत तो एक ही परमपिता परमात्मा की गाई हुई है। अब तुम आये हो ईश्वर की मत पर चल ईश्वर से वर्सा लेने के लिए। बाप कहते हैं जो धक्के खाते हैं वह मुझे नहीं जानते हैं। उनको पता ही नहीं कि बाप पढ़ाकर वर्सा दे विश्व का मालिक बनाते हैं। तुम अभी धक्का खाने से छूट गये हो। भगवानुवाच - तुम्हें देवता बनाने आया हूँ। तुम बी.के.जानते हो भगवान आकर बच्चों को विश्व के मालिकपने का वर्सा देते हैं। तुम पुरुषार्थ से विश्व के मालिक बनते हो। बाप है विश्व का रचता। अब तुमको धक्का नहीं खाना है। धक्के खाने वाले को भगवान नहीं मिलता है। तुम तो बाप से सुख का वर्सा लेते हो। बाकी सबको शान्तिधाम का वर्सा मिल जायेगा। अब दु:ख का खाता खलास कर सुख का जमा करते हो। बाकी सब सजा खाकर अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे।

    बच्चों ने गीत सुना। नई दुनिया के लिए नई तकदीर बनाने आये हैं। वही तकदीर फिर 21 जन्म पूरा होने से पुरानी बनती है। अब पुरुषार्थ करना है - चाहे सूर्यवंशी राज्य लो, चाहे साहूकार प्रजा बनो, चाहे गरीब प्रजा बनो। प्रजा भी बहुत साहूकार होती है जो कई राजे लोग भी उन्हों से कर्जा लेते हैं। अभी भी प्रजा साहूकार है। सतयुग में ऐसे नहीं होता। जो पिछाड़ी में राजा-रानी बनते हैं उनसे प्रजा में बहुत साहूकार होते हैं। बड़े-बड़े महलों में रहते हैं। अब जो चाहे बनो। अभी सब दु:खी हैं, बाबा आये हैं तुमको स्वर्ग में सदा सुखी अथवा स्वर्गवासी बनाने। इस समय नर्क के वासी फिर भी जन्म नर्क में ही लेंगे। तुम स्वर्गवासी बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो। बाबा के शरीर का कोई नाम नहीं है। मनुष्यों को 84 जन्म में 84 नाम मिलते हैं। भिन्न नाम, रूप, देश, काल। शिवबाबा को न आकारी, न साकारी शरीर मिलता है। कहते हैं मैं लोन लेता हूँ। आता तब हूँ जब इनकी वानप्रस्थ अवस्था होती है। यह ड्रामा सेकेण्ड बाई सेकेण्ड शूट होता जाता है। हम तुम कल्प पहले मिले थे, अब मिले हैं, फिर मिलेंगे। जो सेकेण्ड बीता सो ड्रामा। बाप भी ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ है। बाप कहते हैं तुम बच्चों को आकर हीरे जैसा बनाता हूँ। मैं तुम्हारा मोस्ट ओबिडियेन्ट, मोस्ट बील्वेड फादर, टीचर और सतगुरू भी बनता हूँ। मेरा कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं। सबका बाप मैं स्वयं हूँ। नॉलेजफुल हूँ। मेरा कोई गुरू नहीं। स्वयं सबका सद्गति दाता हूँ। अच्छा।

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) भ्रमरी की तरह भूँ-भूँ कर मनुष्य को देवता बनाने की सेवा करनी है। बाप की श्रीमत पर सदा सुखी बनना और बनाना है।

    2) ऊंच तकदीर बनाने के लिए पावन जरूर बनना है। सबको विषय सागर से क्षीरसागर में ले चलने के लिए बाप समान खिवैया बनना है।

    वरदान:-

    ट्रस्टी पन की स्मृति से हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले न्यारे प्यारे भव

    जब स्वयं को ट्रस्टी समझकर रहेंगे तो हर परिस्थिति में स्थिति एकरस रहेगी क्योंकि ट्रस्टी अर्थात् न्यारे और प्यारे। गृहस्थी हैं तो अनेक रस हैं, मेरा-मेरा बहुत हो जाता है। कभी मेरा घर, कभी मेरा परिवार। गृहस्थीपन अर्थात् अनेक रसों में भटकना। ट्रस्टीपन अर्थात् एकरस। ट्रस्टी सदा हल्का और सदा चढ़ती कला में जायेगा। उसमें मेरेपन की ममता नहीं होगी, दु:ख की लहर भी नहीं आयेगी।

    स्लोगन:-

    सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन रखना ही श्रेष्ठ आत्मा की निशानी है।

    ***OM SHANTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 April 2023

    No comments

    Note: Only a member of this blog may post a comment.