Brahma Kumaris Murli Hindi 1 June 2023

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 1 June 2023 

    Brahma Kumaris Murli Hindi 1 June 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 1 June 2023

    01-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - प्रतिज्ञा करो हम पास विद ऑनर बनकर दिखायेंगे, कभी भी माँ-बाप में संशयबुद्धि नहीं बनेंगे, सदा सपूत बन श्रीमत पर चलेंगे''

    प्रश्नः-

    माया की बॉक्सिंग में तुम बच्चों को किस बात की बहुत सम्भाल करनी है?

    उत्तर:-

    बॉक्सिंग करते कभी भी मात-पिता में संशय न आ जाये, इसकी बहुत सम्भाल करना। अशुद्ध अहंकार वा अशुद्ध लोभ व मोह आया तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। तुम्हें बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने का शुद्ध लोभ और एक बाप में ही पूरा मोह रखना है। जीते जी मरना है। बस, हम एक बाप के हैं, बाप से ही वर्सा लेंगे, कुछ भी हो जाये - अपने आपसे प्रतिज्ञा करो। मातेले बनो तो बेहद की प्राप्ति होगी। संशय आया तो पद गँवा देंगे।

    गीत:-

    तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है........

    ओम् शान्ति। 

    ओम् का अर्थ तो बिल्कुल ही सहज है - आई एम आत्मा, आई एम साइलेन्स। जरूर आत्मा तो इमार्टल है। यह कौन समझाते हैं? बेहद का बाप। बच्चे तो बहुत हैं। उनमें से भी कोटों में कोई, कोई में भी कोई समझते हैं। बच्चे जानते हैं कि बेहद का बाप, बेहद सुख का वर्सा देने हमको लायक बना रहे हैं। हम सो पूज्य देवी-देवता, लायक विश्व के मालिक थे। भारत सोने की चिड़िया था। उस समय का भारत राइटियस, लॉ-फुल 100 प्रतिशत सालवेन्ट था - यह बाप समझाते हैं। बरोबर हम कितने लायक थे। विश्व के मालिक थे। अब फिर बाप सारे विश्व पर राज्य करने का अधिकारी बनाते हैं। माया ने इतना तो कंगाल बना दिया है जो कौड़ी की भी कीमत नहीं रही है, अनराइटियस काम ही करते हैं। राइटियस सिखलाने वाला एक बाप है, जिसको ट्रूथ भी कहते हैं। जिसके लिए तुम गाते थे - तुम मात पिता......... उनके सम्मुख तुम बैठे हो और बेहद का वर्सा पाने का पुरुषार्थ कर रहे हो। तुम जानते हो हम उनके बने हैं। बाप भी कहते हैं - तुम हमारे बने हो। इस समय कोई भी मुझ बाप को नहीं जानते। कभी तो कहते हैं नाम-रूप से न्यारा है। कभी फिर सभी नाम रूपों में ले आते कि पत्थर-भित्तर सबमें परमात्मा है। अनेक धर्म, अनेक मतें हो गई हैं इसलिए बाबा कहते हैं - इन सब देह के धर्मों को छोड़ो। आत्मा कहती है - मैं क्रिश्चियन हूँ, मुसलमान हूँ, इन देह के धर्मों को भूल जाना है। अब बाप कहते हैं - लाडले बच्चे। जब मम्मा-बाबा कहा जाता है तो मम्मा-बाबा को कभी कोई भूल नहीं सकते। यहाँ यह वन्डर है जो बच्चे ऐसे माँ-बाप, जिससे 21 जन्म का वर्सा मिलता है, उनको भूल जाते हैं। लौकिक माँ-बाप को तो जन्म बाई जन्म याद किया। अभी यह है तुम्हारा अन्तिम जन्म। तुम निश्चय करते हो - बरोबर वही बाप कल्प-कल्प आकर हमको देवता बनाते हैं। फिर भी ऐसे बाप को भूल क्यों जाते हो? बच्चे कहते हैं ड्रामा अनुसार कल्प पहले भी भूले थे। बाप के बन फिर छोड़ देते हैं। आश्चर्यवत् ईश्वर का बनन्ती, ज्ञान सुनन्ती, सुनावन्ती........ फिर भी अहो मम् माया भागन्ती हो जाते हैं। लौकिक बाप से माया नहीं छुड़ाती है। हाँ, कोई-कोई बच्चे होते हैं जो बाप को फारकती दे देते हैं। पारलौकिक बाप तो तुम्हें स्वर्ग के लिए लायक बनाकर कितना भारी वर्सा देते हैं। वह हैं हद के मात-पिता, यह है बेहद का मात-पिता, जो तुमको स्वर्ग की बादशाही देते हैं। निश्चय होते हुए भी ऐसे बाप को फारकती क्यों देते हो? अच्छे-अच्छे बच्चे 5-10 वर्ष रहकर अच्छे-अच्छे पार्ट बजाते हैं, फिर हार खा लेते हैं। यह है युद्ध स्थल। बाप की याद तो कभी भी नहीं छोड़नी चाहिए। याद कम होने से बड़ा भारी नुकसान हो जाता है। बहुत बच्चों को माया ने जीत लिया। एकदम कच्चा खा गई। अजगर ने जैसे हप कर लिया। तुम महारथी बनते हो फिर माया गिराकर एकदम हप कर लेती है। अच्छे-अच्छे फर्स्ट क्लास ध्यान में जाने वाले, जिनके डायरेक्शन पर माँ-बाप भी पार्ट बजाते थे, आज वह हैं नहीं। क्या हुआ? कोई बात में संशय आ गया।

    बाबा समझाते हैं निश्चयबुद्धि विजयन्ती, संशय बुद्धि विनशयन्ति। ऐसे फिर कितनी अधम-गति को पायेंगे। तुम यहाँ आते हो बाप से पूरा-पूरा वर्सा प्रिन्स-प्रिन्सेज का लेने। अगर आश्चर्यवत् भागन्ती हो गये तो फिर क्या पद रहेगा। प्रजा में भी जाकर कम पद पायेंगे। सजायें भी बहुत खानी होंगी। जैसे उस गवर्मेन्ट में भी चीफ जज आदि होते हैं ना। यहाँ तो सब एक ही हैं। बाप कहते हैं हम आते हैं तुमको पतित से पावन बनाने। अगर पूरा न बनें तो फिर पतित से भी पतित बन पड़ेंगे। सर्वशक्तिमान बाप का डिस-रिगॉर्ड किया तो धर्मराज की फिर बहुत कड़ी सजा हो जायेगी। यह समझने की बातें हैं ना। तुम मात-पिता........ कह फिर उनकी मत पर चलना है। श्री श्री की मत पर चलते योग में पूरा रहना है। तुम श्रेष्ठ थे। श्रेष्ठ सूर्यवंशी चन्द्रवंशी 21 जन्मों लिए महाराजा-महारानी बन जायेंगे। श्रेष्ठ बनने लिए श्री श्री की मत चाहिए। श्री श्री एक को ही कहा जाता है। देवताओं को भी सिर्फ श्री कहते हैं। इस समय तो आसुरी सम्प्रदाय हैं अर्थात् असुर 5 विकारों की मत पर चलने वाले। अब तुम बच्चों को मिलती है श्री श्री की मत, जिससे तुम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण बनते हो। यह टाइटिल मिलते हैं। तुमको राज्य-भाग्य मिलता है ना। सतयुग-त्रेता में पवित्रता का ताज और रत्न जड़ित ताज रहता है। सूर्यवंशी चन्द्रवंशी को भी ताज दिखाते हैं। महाराजा-महारानी को ही ताज दिखाते हैं। प्रजा को तो नहीं दिखायेंगे। फिर द्वापर में जब पतित बनते हैं तो लाइट का ताज नहीं दिखायेंगे। पतित राजा-रानी पावन रानी-राजा की पूजा करते हैं। अभी तो दोनों ताज नहीं रहे हैं। ताज-लेस बन गये हैं। यह है प्रजा का प्रजा पर राज्य, जिसको पंचायती राज्य कहा जाता है। तुम पाण्डव हो, तुम्हें भी कोई ताज नहीं है। तुम कितना बुद्धिवान बन गये हो। मूल वतन, सूक्ष्म वतन, स्थूल वतन तथा सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को तुम जान गये हो। तुम जानते हो हम फिर से डबल सिरताज बन रहे हैं। हेल्थ-वेल्थ - दोनों मिल जाती हैं। बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं तो तुम हो गये पाण्डव गवर्मेन्ट के स्टूडेन्ट। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। गीता में सिर्फ नाम बदल लिया है। संगम होने कारण यह भूल कर दी है।

    अभी तुमको बेहद के बाप से वर्सा मिलता है। सतयुग-त्रेता में तुम सुख पाते हो फिर तुम्हारे यादगार द्वापर से लेकर बनने शुरू होते हैं। यहाँ जो मरते हैं तो उनका यहाँ मृत्युलोक में ही यादगार बनाते हैं। जैसे नेहरू गया तो उनका यहाँ ही यादगार बनाते हैं। तुम्हारा यादगार अमरलोक में नहीं रहेगा। तुम्हारा यादगार पीछे द्वापर में चाहिए। तो द्वापर से यह सब बनने शुरू होते हैं जो तुम देखते हो। जगत अम्बा आदि देवी कौन है - कोई भी नहीं जानते। मालूम तो होना चाहिए ना। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का मनुष्यों को पता होना चाहिए ना। लक्ष्मी-नारायण को भी पता नहीं रहता। बाप है नॉलेजफुल, हम उनके बच्चे मास्टर नॉलेजफुल बने हैं। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बाप पवित्रता का सागर है, हम भी बनते हैं। आत्मा जो अपवित्र बन पड़ी है, सो पवित्र बनती हैं। बाकी गंगा स्नान से कोई पवित्र नहीं बन सकते। पतित-पावन एक ही बाप को कहा जाता है। तुम उनके सम्मुख बैठे हो। एक बार निश्चय हुआ सो हुआ। बाप को बच्चे थोड़ेही भूलते हैं। मर जाते हैं तो भी उनकी आत्मा को बुलाते हैं। फिर वह आकर बोलती है। यह ड्रामा अनुसार पार्ट होता है तो वह आकर बातचीत भी करती है। ड्रामा में जो पास्ट हुआ वह नूँध है। ड्रामा को राइट-वे में जानना चाहिए। ऐसे नहीं, तकदीर में होगा तो पुरुषार्थ कर लेंगे। हम बैठे हैं तो पानी आपेही मुख में आकर पड़ेगा, नहीं। हर एक बात में पुरुषार्थ फर्स्ट है। ऐसे ही तो कोई बैठ न सके। चुप हो बैठ जाए तो मर जाए। संन्यासियों का कर्म संन्यास है परन्तु जब तक कर्मेन्द्रियां हैं तब तक कर्म का संन्यास नहीं कर सकते। उठेंगे-बैठेंगे कैसे? आत्मा शरीर को चलाने वाली है। आत्मा में संस्कार रहते हैं। रात को अशरीरी बन जाती है। आत्मा कहती है मैं कर्म करते-करते थक जाती हूँ इसलिए रात को रेस्ट लेते अशरीरी बन जाती हूँ। आत्मा ही खाती-पीती है। आत्मा इन आरगन्स से कहती है मैं - बैरिस्टर हूँ, फलाना हूँ। आत्मा बाप को बुलाती है। याद करती है - ओ गॉड फादर रहम करो। वह नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है। उनके पास फुल नॉलेज है। यहाँ तो तुमको अधूरी नॉलेज है। ब्रह्माण्ड, सूक्ष्मवतन क्या है, ड्रामा कैसे रिपीट होता है, कहाँ जाते हैं, कैसे पुनर्जन्म लेते हैं, कितने जन्म लेते हैं - यह कोई नहीं जानते। तुम बच्चे पुरुषार्थ अनुसार जानते जाते हो। औरों को भी इस ज्ञान चिता पर बिठाकर वैकुण्ठ का रास्ता बताना है। और तो कोई जानते नहीं हैं। बाप समझाते हैं - बच्चे, बाप का हाथ नहीं छोड़ना। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। बाप को बच्चों को याद नहीं करना है। वह तो जानते हैं सब मेरे बच्चे हैं। सब मुझे याद करते हैं। निर्वाण-धाम में मेरे साथ रहने वाले हैं, इसलिए भूले चूके भी बाप को भूलना नहीं है। कोई संशय नहीं लाना चाहिए।

    अब तो बाप फरमान करते हैं - मामेकम् याद करो और वर्से को याद करो। कोई भी खिटपिट हो तो भी बाप को नहीं भूलना है। बाप को भूले तो बेड़ा गर्क हो जायेगा। दुश्मन भी तुम्हारे बहुत हैं क्योंकि तुम खुद कहते हो कि इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्वलित हुई है। तुम तो साफ समझाते हो इस लड़ाई के बाद ही मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट्स खुले थे। बहुत आत्मायें मुक्तिधाम में जाती हैं फिर आती हैं जीवनमुक्ति में। पहले-पहले देवी-देवता धर्म वाले आते हैं और सभी अपना-अपना एक धर्म स्थापन करते हैं। बाप कहते हैं मैं पहले छोटा ब्राह्मण धर्म स्थापन करता हूँ। फिर साथ-साथ ब्राह्मणों को देवी-देवता बनाता हूँ। शूद्र जब तक ब्राह्मण न बनें तो दादे से वर्सा कैसे ले सकते। वर्णों में आना जरूर है। समझा जायेगा यह देवी-देवता कुल का दिखाई पड़ता है। जो इस कुल के हैं उनसे ही सैपलिंग लग रही है। तो बाप समझाते हैं - ऐसे मीठे बापदादा को कभी भूलना नहीं, जिसके लिए कहते हो तुम मात-पिता........ तुम्हारी शिक्षा से हम बेहद 21 जन्म का सुख लेंगे। पुरुषार्थ कर ऊंच ते ऊंच पद पाना है। सपूत बच्चे प्रतिज्ञा करते हैं - बाबा हम पास विद आनर होकर दिखायेंगे। हम सूर्यवंशी राज्य-भाग्य जरूर लेंगे। बाप कहते हैं - अच्छी रीति सम्भालना। माया भी कम नहीं है। हर एक इतना पुरुषार्थ करो, जो स्वर्ग में सूर्यवंशी पद पाओ। अब पुरुषार्थ करेंगे तो कल्प-कल्प तुम्हारा ऐसा पुरुषार्थ चलेगा। तो बाबा कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चे, जरा सम्भाल करो। संशय-बुद्धि कभी नहीं होना। लौकिक संबंध में भी बच्चा कभी माँ-बाप में संशय ला नहीं सकता। इम्पासिबुल है। यहाँ भी बाबा बुद्धि में याद रहना चाहिए। यह है बेहद का सुख देने वाला बाबा। फिर भी माया तुम बच्चों को बॉक्सिंग में हरा देती है। बाप कहते हैं कभी अशुद्ध अहंकार में वा अशुद्ध लोभ में नहीं आना है। वास्तव में तुम बहुत लोभी हो। परन्तु शुद्ध लोभ है कि बेहद के बाप से हम स्वर्ग का वर्सा लेंगे। मोह भी शुद्ध है। एक बाप में पूरा मोह रखो। जीते जी मरना है। बस, हम तो एक बाप के हैं, बाप से ही वर्सा लेंगे, कुछ भी हो जाये - अपने से प्रतिज्ञा की जाती है। बेहद की प्राप्ति है। और जगह तो कुछ भी प्राप्ति होती नहीं। तो इसमें संशय नहीं आना चाहिए और बातों में संशय भले पड़ जाये परन्तु बाप के तो हो ना। बाप में संशय नहीं आना चाहिए। मातेला उसे कहा जाता है जो पूरा पवित्र है। पतित को सौतेला कहेंगे। आगे चलकर तुम समझते जायेंगे - यह अगर इस समय शरीर छोड़े तो क्या पद पायेंगे। अच्छा!

    मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) ड्रामा को अच्छी रीति समझकर चलना है। पुरुषार्थ करके प्रालब्ध बनानी है। ड्रामा कहकर बैठ नहीं जाना है।

    2) कभी भी बाप का डिसरिगॉर्ड नहीं करना है। कदम-कदम उनकी श्रीमत पर चलना है। बाप में कभी संशय नहीं लाना है।

    वरदान:-

    सन्तुष्ट रहने और सर्व को सन्तुष्ट करने वाले शुभ भावना, शुभ कामना सम्पन्न भव

    ब्राह्मण अर्थात् सदा सन्तुष्ट रहने और सर्व को सन्तुष्ट करने वाले इसलिए कुछ भी हो जाए, कोई कितना भी हिलाने की कोशिश करे लेकिन सन्तुष्ट रहना है और करना है - यह स्मृति रहे तो कभी गुस्सा नहीं आयेगा। यदि कोई बार-बार गलती करता है तो उसे परिवर्तन करने के लिए गुस्सा नहीं करो, बल्कि रहमदिल बनकर शुभ भावना, शुभ कामना की दृष्टि रखो तो वह सहज परिवर्तन हो जायेंगे।

    स्लोगन:-

    परमात्म प्यार के अनुभवी बनो तो कोई भी रुकावट रोक नहीं सकती।

    ***OM SHNTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 1 June 2023

    इस मास की सभी मुरलियाँ (ईश्वरीय महावाक्य) निराकार परमात्मा शिव ने ब्रह्मा मुखकमल से अपने ब्रह्मावत्सों अर्थात् ब्रह्माकुमार एवं ब्रह्माकुमारियों के सम्मुख 18-1-1969 से पहले उच्चारण की थी। यह केवल ब्रह्माकुमारीज़ की अधिकृत टीचर बहनों द्वारा नियमित बीके विद्यार्थियों को सुनाने के लिए हैं।

    No comments

    Note: Only a member of this blog may post a comment.