Brahma Kumaris Murli Hindi 17 April 2023

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 17 April 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 17 April 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 17 April 2023

    17-04-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - माया के वश हो ईश्वरीय मत के विरूद्ध कोई कार्य नहीं करना, कभी भी बाप की निंदा नहीं कराना''

    प्रश्नः-

    माया भी बाप की मददगार है - कैसे?

    उत्तर:-

    जब देखती है कोई श्रीमत की अवज्ञा करते हैं, बाप का कहना नहीं मानते हैं, श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो वह कच्चा खा लेती है, थप्पड़ मार देती है। सयाना वह जो बाप की याद से माया को परख उसके वशीभूत न हो।

    गीत:-

    मुझको सहारा देने वाले... 

    ओम् शान्ति।

     बच्चों ने यह महिमा किसकी सुनी? परमपिता परमात्मा की। बच्चे जानते हैं कि ऐसे बाप को याद करके उनसे अब स्वर्ग का वर्सा लेना है। बाप का तो फरमान है निरन्तर मुझे याद करो और अपने को आत्मा रूप में बच्चे समझो। यही मंजिल है। बाप का निवास स्थान तो अब मधुबन ही है। अब बाप से वर्सा कैसे मिले? जितना जो बाप को याद करते हैं उतना उनके पाप कटते जाते हैं और जो बाप के वर्से को याद करते रहते उनके खाते में खजाना जमा होता रहता है। यह एक किस्म का व्यापार है जो बाप सिखाते हैं। ऐसे बाप को तो निरन्तर याद करना पड़े। अगर याद नहीं करते तो माया पत्थर मारती है। माया कोई कम नहीं है। भल कोई कितना भी कहे मैं बच्चा हूँ। भल स्थूल वा सूक्ष्म सर्विस भी करता रहे लेकिन बाप से योग लगाना नहीं जानते तो उसे सपूत बच्चा नहीं कहेंगे। बाप तो कभी किसी पर गुस्सा नहीं करते, कभी और दृष्टि से नहीं देखते परन्तु चलन ऐसी देखते हैं तो समझते हैं यह आसुरी मत का है। माया एक ही घूसे से एकदम खत्म कर देती है। फिर कितना विघ्न डालते हैं। उनका जितना बड़ा पाप बनता है उतना अज्ञानी मनुष्य का नहीं बनता। कई नज़दीक रहते हुए जरा भी पहचानते नहीं। बाप कहते यह भी ड्रामा में नूँध है, जो सुनते हुए जैसेकि सुनते ही नहीं। तो बाबा क्या करें। आजकल मनुष्यों के ऊपर कितना भी आशीर्वाद करो, प्यार करो परन्तु बैठे-बैठे अपने को भस्मासुर बना देते हैं। वास्तव में ईश्वरीय सम्प्रदाय और आसुरी सम्प्रदाय में रात-दिन का फर्क है। इस दुनिया में किसी का बाप के साथ योग नहीं है। ऐसे को फिर बाप आकर ईश्वरीय सम्प्रदाय का बनाते हैं। तुम्हारे में भी कोई तो ईश्वर के बन उनकी श्रीमत पर चलते हैं और जो नहीं चलते हैं वह भस्मासुर बन जल मरते हैं। तुम ईश्वरीय मत से स्वर्ग का मालिक देवता बनते हो और कोई स्वर्ग जाने बदले काम चिता पर बैठ भस्मीभूत हो जाते हैं।

    बाबा बच्चों को कितना युक्ति से उठाते हैं। परन्तु माया ऐसी है जो ऐसा वार करती है जो निंदा कराने के निमित्त बन पड़ते हैं, जो सयाने बच्चे हैं वह तो कदम-कदम बाप की श्रीमत पर चलते हैं। बाप की पहली-पहली आज्ञा है मुझ पारलौकिक बाप को याद करो तो सुधार हो। जो बाप से योग नहीं लगाते, श्रीमत पर नहीं चलते तो माया बेटी उन्हें खा लेती है। माया को बेटी कहते हैं क्योंकि मदद करती है। बाप तो परमधाम से आये हैं बच्चों को पढ़ाकर नर से नारायण बनाने फिर भी ऐसे बाप के नाफरमानबर-दार बन जाते हैं। बाहर निकलने से ही माया का थप्पड़ लग जाता है फिर तरस पड़ता है। कहाँ-कहाँ बिचारी कन्याओं, माताओं पर बँधन आ जाते हैं। काम का हल्का नशा भी हुआ तो गिर पड़ते हैं, फिर अबलाओं पर कितने अत्याचार होने लगते हैं! कितनी बिचारी बाँध हो जाती हैं! इतने सबका पाप उन पर पड़ता है। बड़ी कड़ी सजा खाते हैं। बात मत पूछो। माया जानती है कल्प पहले वाले कौन-कौन हैं जिन्होंने मुझे जीत बाबा का तरफ लिया है। वह भी सयानी है। देखती है यह बाबा की अवज्ञा करते हैं तो ताला बन्द कर देती है। बाप जानते हैं यह अबलायें, कन्यायें भारत का कल्याण करती हैं। बाप को माताओं का बहुत फुरना रहता है। तुम बच्चों को भी माताओं का फुरना होना चाहिए। अपना अहंकार नहीं रहना चाहिए। बाप खुद कहते हैं वन्दे मातरम्। बड़ी सम्भाल करनी है। कोई ऐसी डर्टी चलन नहीं चलनी है। अपने आपसे पूछना है कि हम कोई उल्टा धंधा तो नहीं करते हैं। बाप कहते हैं तुम बाप से वर्सा लो। तुम देवता बनने आये हो। धर्म की स्थापना में अनेक विघ्न तो पड़ने ही हैं। क्राइस्ट के समय में भी ऐसे कई निकले जिन्होंने निंदा आदि की। आसुरी सम्प्रदाय ने मार डाला, पहचाना नहीं। अब उनके कितने चर्च आदि बनते हैं, परन्तु इससे कुछ फ़ायदा नहीं। माया के बन तमोप्रधान बन जाते हैं। जहाँ भी जाते हैं वहाँ से मिलता कुछ भी नहीं है। दिन-प्रतिदिन और ही दु:खी तमोप्रधान होते जाते हैं। समझो गुरूनानक के पास जाते हैं, उनसे क्या मिलेगा? वह सिर्फ कहते तुमको पवित्र बनना वा रहना चाहिए। परन्तु अपवित्र ही रहते हैं। सिर्फ उनका भजन गाते रहते हैं, तो मिलेगा कुछ भी नहीं। अब देखो सब कब्रदाखिल हो गये हैं। ज्ञान का जरा भी पता नहीं है। क्रोध भी बहुत कड़ा है जिससे अपने को भस्मासुर बना देते हैं। फिर जमा होने के बदले घाटा हो जाता है। आते हैं तकदीर बनाने। कहते हैं बाबा से स्वर्ग का वर्सा लेने आया हूँ। अच्छा बाप को पूरा याद करना पड़ेगा। उनकी श्रीमत पर चलना है। नहीं चलेंगे तो फिर जैसे का वैसा बन जायेंगे। फिर कल्प-कल्प गिरते ही रहेंगे। फिर कभी उठ नहीं सकेंगे। अभी पुरुषार्थ किया तो ऊंच ते ऊंच बन सकते हैं।

    बाप कितना समझाते हैं, बोर्ड पर भी लिखा हुआ है - ईश्वरीय विश्व-विद्यालय परमपिता परमात्मा ने स्थापन किया है। उनसे स्वर्ग की राजाई का वर्सा पाना है। अगर यहाँ आकर और फिर चले जायें तो सब कहेंगे शायद ईश्वर नहीं है, जो ऐसे छोड़कर निकलते हैं। कितने संशयबुद्धि बन पड़ेंगे। उन पर सबका पाप चढ़ जाता है। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो श्रेष्ठ कैसे बनेंगे? श्रीमत पर चलने से तुम्हारा कोई नुकसान नहीं हो सकता है। वह बाप भी है, धर्मराज भी है। धर्मराज देखते हैं क्या-क्या पाप करते हैं? मेरी ग्लानि करते हैं। बड़े कायदे हैं। परन्तु बच्चे समझते नहीं। हाथ उठाते हैं - हम लक्ष्मी-नारायण को वरेंगे और काम ऐसे करते हैं जो बात मत पूछो। आगे चलकर यह किला ऐसा बन जायेगा जो कोई पतित अन्दर आ नहीं सकेगा। अभी तो माया बहुतों को नाक से पकड़ लेती है। वह निराकार बाप इन ऑखों का लोन ले आये हैं तो देखते हैं यह फर्स्टक्लास बच्चा है, यह काँटा है। बाप समझाते हैं बच्चे तुमको तो स्वर्ग का मालिक बनना चाहिए। तुम ऐसा पुरुषार्थ क्यों नहीं करते। बाबा सर्वशक्तिमान् है। माया पर जीत पहनाने आते हैं। कहते हैं - मीठे बच्चे, कुछ सजाओं से भी डरो। श्रीमत पर आज्ञाकारी बनो। अपने पर रहम करो। माया के वश कुछ भी करेंगे तो भूत बन जायेंगे। भवानी माता कहा जाता है, कोई तो भवानी का वारिस बन जाते हैं, कोई भूत बन जाते हैं। तुम सब भवानी मातायें हो जो ज्ञान अमृत पिलाती हो। व़फादार बच्चों पर मात-पिता की आशीर्वाद रहती है। व़फादार नहीं तो शान्ति से जाकर कहाँ दूर रहे तो अच्छा। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    रात्रि क्लास - 17-6-68

    मीठे-मीठे बच्चे जब यहाँ आते हैं तो समझते हैं हम बाबा के पास जाते हैं। बाबा से सुनते हैं। जब अपने अपने सेन्टर पर जाते हैं तो सामने बापदादा नहीं बैठते हैं। कहाँ-कहाँ गोप भी चलाते हैं। मुरली तो सहज है। कोई भी धारण कर क्लास करा सकते हैं। ब्राह्मणियाँ बैठी तो हैं। बाबा पूछते हैं कोई मुरली पढ़ कर, फिर मुरली का सार सुनाते हैं? कोई मुरली पढ़कर सुनाते हैं। जो मुरली हाथ में उठाकर सुनाते हैं वह हाथ उठावे। मुरली हाथ में नहीं उठाकर बिगर मुरली ऐसे ही सुनाते हैं वह भी हाथ उठावें। मुरली हाथ में तो होनी चाहिए ना! पढ़े हुए हैं फिर सार बैठ सुनाते हैं। कोई मुरली पढ़कर सुनाते हैं, नम्बरवार तो हैं ना। महारथी, घोड़ेसवार और प्यादे। सभी तो एक्युरेट नहीं पढ़ते हैं। कोई तो पढ़ते भी रहते हैं, एडीशन कर रहस्य भी सुनाते रहते हैं, रसीले नमूने। सभी ऐसे नहीं समझा सकते। यहाँ तो बाप बैठे हैं। बाप बच्चों को कहते हैं कोई बात में संशय होना नहीं चाहिए। एक बाप ही सभी कुछ सुनाते हैं। उन स्कूलों में तो अनेक पढ़ाने वाले हैं। अलग अलग पढ़ाते। यहाँ तो एक ही पढ़ाते हैं। एक ही एम आब्जेक्ट है। इसमें प्रश्न पूछने का रहता नहीं। सुबह को यहाँ बैठ बच्चों को याद की यात्रा में मदद करता हूँ। ऐसे नहीं सिर्फ तुमको याद करता हूँ। सारे बेहद के बच्चे याद रहते हैं। तुमको इस याद से सारे विश्व को पावन बनाना है। अंगुली तुम किसमें देते हो? पवित्र तो सारी दुनिया को बनाना होता है ना। तो बाप सभी बच्चों पर नज़र रखते हैं। सभी शान्ति में चले जावें। सभी को अटेन्शन खिंचवाते हैं। जिनका योग है वह उठाते हैं। बाप तो बेहद में ही बैठेंगे। मैं आया हूँ सारी दुनिया को पावन बनाने। सारी दुनिया को करेन्ट दे रहा हूँ तो पवित्र हो जायें। जिनका योग होगा समझेंगे, बाबा अभी बैठ याद की यात्रा सिखला रहे हैं, जिससे विश्व में शान्ति होती है। बच्चों को भी याद किया जाता है। वह भी याद में रहते हैं तो मदद मिलती है। अच्छी रीति याद करते हैं वह थोड़े हैं। मददगार बच्चे भी चाहिए ना। खुदाई खिदमतगार। निश्चयबुद्धि से याद करेंगे ना। तुम्हारी पहली सबजेक्ट है यह पावन बनने की। गोया तुम बच्चे निमित्त बनते हो बाप के साथ। बाप को बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ। अभी वह अकेला क्या करेगा? खिदमतगार चाहिए ना? तुम जानते हो विश्व को शान्त बनाकर उस पर राज्य करेंगे। ऐसी बुद्धि होगी तब नशा चढ़ा हुआ होगा। तुम बच्चों को भारत को हेविन बनाना है। तुम जानते हो बाप की श्रीमत से, हम अपने योगबल से अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। नशा रहना चाहिए, इसमें कोई स्थूल बात तो है नहीं। यह है रूहानी। बच्चे समझते हैं हर कल्प बाप इस रूहानी बल से हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। यह भी समझते हैं शिवबाबा ही आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। दुनिया को यह भी पता नहीं है परमपिता परमात्मा नई दुनिया की स्थापना करते हैं; कब, कैसे, बिल्कुल ही नहीं जानते हैं। गीता में भी आटे में लून है। बाकी तो सभी झूठ ही झूठ है। बाप आकर सत्य बताते हैं। भारत का योगबल तो नामीग्रामी है। बाप कहते हैं हठयोगी राजयोग सिखला न सकें, परन्तु आजकल तो झूठ बहुत हैं ना। सच के आगे इमीटेशन बहुत होती है इसलिए सच को कोई मुश्किल जान सकते हैं। यह तो बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं कल्प-कल्प ऐसे ही होता है। अभी तुम नास्तिक से आस्तिक बन गये हो। प्राचीन ऋषि-मुनि ही नहीं जानते तो औरों के पास कहाँ से आया? गीता के ज्ञान को ही नहीं जानते हैं। यह दादा भी बहुत पढ़ते हैं। अभी समझ मिली है। जानते हो दुनिया तमोप्रधान है। बिल्कुल बेसमझ। भारत समझदार था। भारत का ही खेल है। दूसरे धर्म कब आते हैं यह भी बच्चे समझते हैं। मूलवतन सूक्ष्मवतन को भी तुम समझ गये हो। सिर्फ तुम ब्राह्मण ही यह नॉलेज पाते हो। देवताओं को तो यह दरकार ही नहीं। तुमको सारे विश्व की अब नॉलेज है। तुम पहले शूद्र वर्ण के थे। फिर ब्रह्माकुमार बने तो यह नॉलेज देते हैं जिससे तुम्हारी डीटी डिनायस्टी स्थापन हो रही है। बाप आकर ब्राह्मण कुल, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी डिनायस्टी स्थापन करते हैं। वह भी इस संगम पर स्थापना करते हैं। और धर्म वाले फट से डिनायस्टी नहीं स्थापन करते हैं। उनको गुरू नहीं कहा जाता। बाप ही आकर धर्म की स्थापना करते हैं। बाप कहते हैं अभी सिर पर फुरना है बाप की याद का। जिसमें घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। पुरुषार्थ कर धंधा आदि भी करते रहे। और याद भी करते रहे हेल्दी बनने के लिये। बाप कमाई बड़ी जोर से कराते हैं। इसमें सभी कुछ भुलाना पड़ता है। हम आत्मा जा रही हैं, प्रैक्टिस कराई जाती है। खाते हो तो क्या बाप को याद नहीं कर सकते हो? कपड़ा सिलाई करते हैं, बुद्धियोग बाप की याद में रहे। किचड़ा तो निकालना है। बाबा कहते हैं शरीर निर्वाह लिये भल करो। है बहुत सहज। समझ गये हो 84 का चक्र पूरा हुआ। अब बाप राजयोग सिखाने आये हैं। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जाग्राफी इस समय रिपीट होती है। कल्प पहले जैसे ही रिपीट हो रही है। रिपीटेशन का राज़ भी बाप ही समझाते हैं। कहते भी हैं वर्ल्ड रिपीट। वन गाड, वन रिलीजन कहते हैं ना। वहाँ ही शान्ति होगी। वह है अद्वैत राज्य। द्वैत माना आसुरी रावण राज्य। वह है देवता, यह है दैत्य। आसुरी राज्य और दैवी राज्य का भारत पर ही खेल बना हुआ है। भारत का आदि सनातन धर्म था। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। फिर बाप आकर पवित्र प्रवृत्ति मार्ग बनाते हैं। हम सो देवता थे, फिर कला कम होती गई। हम सो शूद्र डिनायस्टी में आये। बाप पढ़ाते ऐसे हैं जैसे टीचर लोग पढ़ाते हैं, स्टूडेन्ट सुनते हैं। अच्छे स्टूडेन्ट पूरा ध्यान देते हैं, मिस नहीं करते हैं। यह पढ़ाई रेग्युलर पढ़नी चाहिए। ऐसी गॉडली युनिवर्सिटी में अपसेन्ट होनी नहीं चाहिए। बाबा गुह्य-गुह्य बातें सुनाते रहते हैं। अच्छा-गुडनाईट। रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) बाप का आज्ञाकारी, व़फादार बनकर आशीर्वाद लेने के पात्र बनना है। कोई भी अवज्ञा नहीं करनी है।

    2) कभी कोई उल्टी चलन चलकर अपनी तकदीर को लकीर नहीं लगानी है। भस्मासुर नहीं बनना है। धर्मराज की सजाओं का डर रखना है।

    वरदान:-

    दिल में एक दिलाराम बसाकर सहजयोगी बनने वाले सर्व आकर्षण मूर्त भव

    दिलाराम को दिल देना अर्थात् दिल में बसाना - इसी को ही सहजयोग कहा जाता है। जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमाग भी चलेगा। जब दिल और दिमाग अर्थात् स्मृति, संकल्प, शक्ति सब बाप को दे दी, मन-वाणी और कर्म से बाप के हो गये तो और कोई भी संकल्प वा किसी भी प्रकार की आकर्षण आने की मार्जिन ही नहीं। स्वप्न भी इसी आधार पर आते हैं। जब सब कुछ तेरा कहा तो दूसरी आकर्षण आ ही नहीं सकती। सहज ही सर्व आकर्षण मूर्त बन जायेंगे।

    स्लोगन:-

    बाप से और ईश्वरीय परिवार से जिगरी प्यार हो तो सफलता मिलती रहेगी।

    ***OM SHANTI***
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