Brahma Kumaris Murli Hindi 9 March 2023

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 9 March 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 9 March 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 9 March 2023

    09-03-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - तुम्हें बाप के आक्यूपेशन और गुणों सहित उसे याद करना है, याद से ही तुम विकर्माजीत बनेंगे, विकारों की मैल भस्म होगी''

    प्रश्नः-

    ज्ञान की धारणा किन बच्चों को बहुत सहज हो सकती है?

    उत्तर:-

    जिनमें कोई भी पुराने उल्टे सुल्टे संस्कार नहीं हैं, जिनकी बुद्धि याद से शुद्ध होती जाती है, उन्हें ज्ञान की बहुत अच्छी धारणा होती है। 2- पवित्र बुद्धि में ही अविनाशी ज्ञान रत्न ठहरेंगे। 3- भोजन बहुत शुद्ध हो - बाप को स्वीकार कराकर फिर खाने से भी ज्ञान की धारणा अच्छी होती है। ज्ञान को धारण करते-करते तुम मुरलीधर बन जाते हो।

    गीत:-

    तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है...

    ओम् शान्ति। 

    आत्मा परमात्मा को बुलाती है सिर्फ आत्मा कहें तो कहेंगे आत्मा तो वाणी से परे है इसलिए कहते हैं जीवात्मा, परमात्मा को बुलाती है। भक्तों की बुद्धि परमात्मा के बारे में कहाँ-कहाँ जाती है। कुछ भी मनुष्य समझते नहीं क्योंकि वह समझते हैं परमात्मा सर्व-व्यापी है तो बुद्धि कहाँ जायें। सर्वव्यापी समझने के कारण कहेंगे सब भगवान के रूप हैं। बुलाते हैं परन्तु बुद्धि में लक्ष्य नहीं है। परमपिता परमात्मा तरफ बुद्धि जाती नहीं है। किसी भी जीव आत्मा की बुद्धि में यह नहीं आता कि हम उस ज्योतिलिंगम् को याद क्यों करते हैं? वह हमको क्या देते हैं, जो हम उनको याद करते हैं? जो बहुत अच्छा देकर जाते हैं, उनको याद किया जाता है। उनकी याद जिन्दगी भर रहती है। कोई ने पाई पैसा दिया वह तो लेन-देन चलती ही है। परन्तु समझो कोई गरीब है, उनको कोई मकान बनाकर देवे या उनकी कन्या को शादी कराने में कोई मदद करता है तो सारी आयु उनकी याद रहेगी। उनके नाम रूप की याद रहेगी। फलाने ने हमको मकान बनाकर दिया। यहाँ भी तुम बच्चे समझते हो बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। मनुष्यों को तो न आत्मा का, न परमात्मा का ज्ञान है। आत्मा है सूक्ष्म ते सूक्ष्म, जिसका पता नहीं पड़ता। कब अन्दर प्रवेश करती है फिर निकल जाती है, बहुत महीन बातें हैं। उनका साक्षात्कार भी दिव्य दृष्टि से ही देख सकते हैं। वह ब्रह्म कहते हैं तो ब्रह्म का भी साक्षात्कार हो पड़ेगा। अखण्ड लाइट ही लाइट देखने में आयेगी। ब्रह्म तत्व तो जरूर बड़ी रोशनी देखने में आयेगी। परन्तु परमात्मा कोई वह चीज़ तो नहीं है ना, जो मनुष्य समझ बैठे हैं। तुम बच्चों की भी बुद्धि में आगे लिंग रूप रहता था। अभी तो बुद्धि में है कि वह स्टार है। आत्मा का वही रूप है, दूसरी कोई चीज़ हो नहीं सकती। परमात्मा भी वही बिन्दी रूप है। अब लक्ष्मी-नारायण की इतनी महिमा है, उनमें क्या ब्युटी है? आत्मा और शरीर दोनों सतोप्रधान पवित्र हैं। हर्षितमुख हैं, गोरे हैं। आत्मा तो बहुत सूक्ष्म चीज़ है ना। समझाया जाता है आत्मा मैली हो जाती है तो लाइट कम होती है। यह लाइट कम और जास्ती की भी बहुत महीन बात है। हम दीपक का मिसाल देते हैं, परन्तु आत्मा उनसे भी छोटा सा स्टार है। साक्षात्कार होता है देखा और गया। अब तुम बाप का सिमरण करते हो। बाप ने अपना रूप बताया है। तुम जानते हो शिवबाबा को याद करने से विकर्म विनाश होते हैं। भल और मनुष्य शिव को याद करते हैं परन्तु इस ज्ञान से याद नहीं करते। वह जानते ही नहीं। न जानने कारण विकर्म विनाश हो नहीं सकते। यह जानते ही नहीं कि हम योग लगाने से विकर्माजीत बनेंगे। अच्छा फिर क्या होगा? यह भी नहीं जानते। तुमको बाप समझाते हैं योग से तुम विकर्माजीत बनेंगे। 5विकारों की मैल भस्म होगी। समझानी मिलने के बाद उस खुशी से याद करेंगे। वह यह नहीं जानते कि बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। अभी बाप नॉलेज देते हैं। बाकी मनुष्य तो हैं अन्धश्रधा में, जिससे भक्ति मार्ग में अल्पकाल सुख मिलता है।

    अब उनको यहां बुलाते हैं, तुम जानते हो बुलाने की तो दरकार ही नहीं। जबकि परमात्मा को जानते ही नहीं तो फिर बुलाते कैसे? जिसको याद किया जाता है, उनके महत्व को, आक्यूपेशन को, गुणों को जानना चाहिए। परमात्मा की पहचान कोई के पास भी है नहीं इसलिए जन्म जन्मान्तर क्या-क्या करते आये हैं, कुछ भी समझ नहीं। अब बाप बैठ समझाते हैं। गीत में भी कहते हैं बाबा आप आकर ज्ञान सुनाओ तो हम सुनकर फिर औरों को सुनायेंगे। जैसे शास्त्रों में आटे में नमक है वैसे इन भक्ति मार्ग के गीतों में भी थोड़ा बहुत है। यह गीत बाप की महिमा में है बाप को बुलाते हैं कि आप आकर हमको सुनाओ तो हम फिर औरों को सुनायेंगे। आकर हमको राजयोग सिखलाओ फिर हम मुरलीधर बनेंगे। मुरलीधर को ही ज्ञानी तू आत्मा कहा जाता है। तुम बच्चे जानते हो बाप तो है निराकार। फिर वह आये कैसे? अभी तो समझा है कि आत्मा परमधाम से आती है। पहले-पहले गर्भ में जाना पड़ता है। जीव की आत्मायें सब बाप को याद करती हैं, परन्तु उनके आक्यूपेशन का कुछ भी पता नहीं है। ऐसे ही सिर्फ बुलाते रहते हैं। वह आता ही नहीं। बाप कहते हैं मैं अपने पूरे टाइम पर आता हूँ जबकि संगमयुग शुरू होता है। संगमयुग कब आता है? जब रात पूरी हो दिन होना होता है। संगमयुग आया और बाप भी साथ आया। संगमयुग पर ही बाप बैठ पढ़ाते हैं। यह सब बातें तुम ब्राह्मण बच्चे ही जानते हो। बाप बैठ समझाते हैं मैं निराकार आऊं कैसे। यह तो कभी कोई ने ख्याल नहीं किया है। अगर कलियुग के अन्त में आया होगा तो फिर से आयेगा ना। कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर आते हैं। जरूर कुछ कार्य करने के लिए आते हैं। जरूर सृष्टि को पावन करने आयेंगे, तब कहते हैं कि अब आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करने आते हैं। कैसे आते हैं, यह भी कोई नहीं जानते हैं। बाप को आकर प्रजा रचनी है वा राजयोग सिखाना है तो किसको सिखायेंगे? सतयुग आदि में तो है देवता वर्ण। इसके पहले है ब्राह्मण वर्ण। तो जरूर ब्रह्मा तन में आकर ब्राह्मण वर्ण रचना पड़े। ब्रह्मा को कहा ही जाता है प्रजापिता। अब वह ब्रह्मा आये कहाँ से। क्या सूक्ष्मवतन से उतर आये? जैसे दिखाते हैं विष्णु अवतरण, ऊपर से गरूड पर सवार हो आते हैं। अब विष्णु को तो यहाँ आना नहीं है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण जो हैं उन्होंने भी यहाँ इस पढ़ाई से यह पद पाया है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण ही पालना करते हैं। परन्तु ऐसे कोई गरूड पर उतरते नहीं हैं और फिर वहाँ लक्ष्मी-नारायण की आत्मा कोई इक्ट्ठी नहीं आती है। पहले नारायण की आत्मा आयेगी फिर लक्ष्मी की आयेगी। स्वयंवर करेंगे तब विष्णु युगल रूप कहलायेंगे। राधे कृष्ण बरोबर विष्णु के दो रूप हैं। छोटापन भी दिखाना पड़े ना। यह बातें और कोई नहीं जानते हैं। बाप बैठ समझाते हैं जब यह पहला नम्बर 84 जन्म पूरे करते हैं तो हमको इनमें ही आकर फिर इनको पहला नम्बर बनाना पड़े। 84जन्म भोग जरूर वृद्ध अवस्था को पाया होगा तो उनका नाम रखा है ब्रह्मा। इनमें प्रवेश किया है।

    अब तुम बच्चे समझते हो मनुष्य सृष्टि कैसे और कब रचते हैं। इस बात का और कोई मनुष्य को ज्ञान हो न सके। मनुष्य जब कोई अच्छी नई चीज़ की इन्वेन्शन निकालते हैं तो गवर्मेन्ट के पास जाते हैं फिर वह उसको वृद्धि में लाने में मदद करती है। यह भी ज्ञान ऐसे है। पहले-पहले बाप आया इसमें प्रवेश हुआ, इनमें बैठ ज्ञान दिया। पहले थोड़ा-थोड़ा था अब वृद्धि को पाता जाता है। कितनी गुह्य ते गुह्य बातें तुम सुन रहे हो। पहले हल्का ज्ञान था अब गहरा मिलता जाता है। परन्तु आत्मा में पुराने उल्टे सुल्टे भक्ति के संस्कार जो हैं वह जब निकलें तब ज्ञान की धारणा हो। योग हो तब विकर्म विनाश होते जायें और बुद्धि शुद्ध होती जाये। पहले थोड़ा भी ज्ञान सुनने से कितना नशा चढ़ा और भागे। फिर कितने टूट भी पड़े। माया भी हैरान कर देती है। अब ब्रह्मा के बच्चे वह हो गये ब्रह्माकुमार और कुमारियां। यह पूरी रीति समझाना है। नहीं तो मनुष्य डरते हैं। अब बाप को तो जरूर ब्रह्मा का शरीर लेना पड़े। सो भी बड़ा चाहिए। छोटे बच्चे में प्रवेश करेंगे क्या? कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म के अन्त में आता हूँ। इसने बहुत शास्त्र पढ़े हैं, गुरू किये हैं। तो अनुभवी होगा ना। बाप कहते हैं मैं वानप्रस्थ अवस्था में आता हूँ। शास्त्र आदि पढ़े हैं तब तो समझा सकते हैं। अब तुम बच्चे जानते हो कैसे बाबा आता है और आकर मनुष्य से देवता बनाते हैं अर्थात् पुरानी दुनिया को नया बनाते हैं। तुम को अभी नया बना रहे हैं। इस पुराने तन में राजयोग सीख फिर सतयुगी नया शरीर जाकर लेंगे। फिर देवी-देवता कहलायेंगे। वहाँ माया होती नहीं। यह तुम समझा सकते हो कि हम ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। ब्रह्मा को प्रजापिता कहा जाता है। यह तो सब मानेंगे कि भगवान ने आदम-बीबी (ब्रह्मा सरस्वती) द्वारा रचना रची है। गीता में कहते हैं मैं राजाओं का राजा बनाता हूँ। शूद्र से ब्राह्मण बनाकर ज्ञान अमृत पिलाए असुर से देवता बनाते हैं। भल यह लिखा हुआ है परन्तु पहले शूद्र वर्ण से ब्राह्मण वर्ण में लाते हैं तो तुम समझा सकते हो हम ब्रह्माकुमार कुमारी हैं। ब्रह्मा है प्रजापिता। वास्तव में ब्रह्मा की सन्तान तुम भी हो, ब्राह्मणों की शुरूआत संगम पर ही होती है। ब्रह्मा द्वारा हम ब्राह्मण पढ़ते हैं। रूद्र ज्ञान यज्ञ की सम्भाल करते हैं। हम अपने विकारों की आहुति देते हैं। यज्ञ में सब कुछ स्वाहा किया जाता है ना। तो हम रूद्र ज्ञान यज्ञ में और कोई किचड़ा नहीं डालते, अपने पापों को स्वाहा करते हैं। कोई आग आदि तो जलाई नहीं जाती। न कोई आवाज आदि ही करते हैं। वह तो कितना आवाज करते हैं - स्वाहा, स्वाहा.... हम तो योग में रहते हैं, कोई आवाज नहीं। चुप। योग अग्नि से पाप भस्म हो जाते हैं। इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में योग अग्नि से हम अपने 5विकारों को स्वाहा करते हैं तो पाप भस्म हो जाते हैं। ब्रह्मा की बेटी सरस्वती भी गाई हुई है जिसको जगदम्बा कहते हैं, उनसे सब कामनायें पूरी होती हैं। वह अम्बा फिर लक्ष्मी बनती है।

    बच्चों को प्वाइंटस तो बहुत समझाई जाती हैं, धारणा भी हो ना। धारणा तब हो जब योग में रहें फिर विकर्म भी विनाश हो, बुद्धि पवित्र नहीं होगी तो अविनाशी ज्ञान रत्न ठहरेंगे नहीं। बच्चों को समझाया है कि पहले भोग लगाकर फिर खाया जाता है क्योंकि उनका ही सब दिया हुआ है। तो फिर पहले उनको याद कर भोग लगाते हैं, आह्वान किया जाता है। फिर जैसेकि साथ में मिलकर खाते हैं। बाबा तो है सम्पूर्ण पवित्र। हम हैं जैसे भीलनियां। हम याद करते हैं तो क्या बाबा हमारे साथ बैठ खा सकता है। हम अपने को सम्पूर्ण पवित्र तो कह नहीं सकते। तो हम भीलनियों के साथ वह खायेंगे? फिर वासना ले लेते हैं। वासना लेना कोई खाना तो नहीं हुआ ना। खुशबू ले लेते हैं। हाँ कोई 75 परसेन्ट धारणा करने वाले अच्छे बच्चे भोजन बनाकर बाबा को खिलायें तो वासना लायक भी हो क्योंकि बाबा है बिल्कुल शुद्ध। वह हम पतित के साथ खाये यह लॉ नहीं कहता। वह वासना ले सकता होगा? बाबा कहते हैं मैं वासना भी क्यों लूँ, मैं तो निष्कामी हूँ। वासना लेने की भी मेरे पास कामना नहीं है। मैं 100 परसेन्ट निष्कामी हूँ। भोग ऊपर जाता है, बहुरूपी बैठ देवताओं को खिलाते हैं। देवतायें चाहते हैं हम ब्रह्मा भोजन खायें तो बाबा मम्मा और फिर ऊपर से देवताओं की आत्मा आती है, वह बैठ खाती है। फिर भी रूचि से तब खायेगी जब पकाने वाले योगी हों। देवतायें भी ब्रह्मा भोजन की महिमा करते हैं। बाप तो कहते हैं मैं आया हुआ हूँ तुम्हारी सर्विस करने। हम तो तुम्हारा पूरा निष्कामी सर्वेन्ट हूँ। तुम भल 36 प्रकार के तो क्या 108 प्रकार का भोग लगाओ, भक्तों ने ही भोग लगाया और भक्तों ने ही बांट कर खाया। भगवान निष्कामी है तो भी आफर करना चाहिए। बड़े राजायें आदि कभी हाथ में नहीं लेते हैं। उनमें भी किसम-किसम के होते हैं। कोई ले भी लेते हैं। बाबा का राजाओं आदि से कनेक्शन रहा है ना। तो हम बाबा को भोग लगाते हैं, कामना है कि हम बाबा से विश्व का मालिक बनने राजाई लेवें। वह तो है ही दाता। यह सारी सूक्ष्म बातें हैं। भोग कहाँ ले नहीं जाते हैं। यहाँ ही बैठ वैकुण्ठ का साक्षात्कार करते हैं। यहाँ से जैसेकि गुम हैं। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) बाप भल निष्कामी है लेकिन भोजन का भोग जरूर लगाना है। बहुत शुद्धि से भोजन बनाकर बाबा के साथ बैठकर खाना है।

    2) इस रूद्र यज्ञ में योगबल से अपने पाप स्वाहा करने हैं। आवाज में नहीं आना है, चुप रहना है। बुद्धि को योगबल से पवित्र बनाना है।

    वरदान:-

    न्यारे और प्यारे पन की विशेषता द्वारा बाप के प्रिय बनने वाले निरन्तर योगी भव

    मैं बाप का कितना प्यारा हूँ - इसका हिसाब न्यारेपन से लगा सकते हो। अगर थोड़ा न्यारे हैं, बाकी फंस जाते हैं तो प्यारे भी इतने होंगे। जो सदा बाप के प्यारे हैं उसकी निशानी है स्वत: याद। प्यारी चीज़ स्वत: और निरन्तर याद रहती है। तो यह कल्प-कल्प की प्रिय चीज़ है। ऐसी प्रिय वस्तु भूल कैसे सकते! भूलते तब हो जब बाप से भी अधिक कोई व्यक्ति या वस्तु को प्रिय समझने लगते हो। अगर सदा बाप को प्रिय समझो तो निरन्तर योगी बन जायेंगे।

    स्लोगन:-

    जो अपने नाम-मान और शान का त्याग कर बेहद सेवा में रहते हैं वही परोपकारी हैं।

    ***OM SHANTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 9 March 2023

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