Brahma Kumaris Murli Hindi 30 March 2023

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 March 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 March 2023

    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 March 2023

    30-03-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - संगदोष संशयबुद्धि बनाता इसलिए संगदोष में फंसकर कभी पढ़ाई नहीं छोड़ना, कहा जाता - संग तारे कुसंग बोरे''

    प्रश्नः-

    बाप की कौन सी श्रीमत तुम्हें कौड़ी से हीरे जैसा बना देती है?

    उत्तर:-

    बाप की श्रीमत है बच्चे घर गृहस्थ में रहते हुए कमल फूल समान रहो। जैसे कमल फूल को कीचड़ और पानी टच नहीं करता, ऐसे विकारी दुनिया में रहते हुए विकार टच न करें। यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, निर्विकारी दुनिया में चलना है इसलिए पवित्र बनो। इसी एक श्रीमत से तुम कौड़ी से हीरे जैसा बन जायेंगे। स्वर्ग का मालिक बन जायेंगे।

    गीत:-

    मुझको सहारा देने वाले...

    ओम् शान्ति। 

    बाप ने समझाया है कि भगवान एक ही है जिसने भगवती को रचा। बरोबर भगवानुवाच है। जैसे बैरिस्टर-वाच, सर्जन-वाच.. यह फिर है भगवानुवाच। भगवान कहते हैं मैं तुम्हें स्वर्ग का मालिक राजाओं का राजा बनाऊंगा। यह है गीता। परन्तु मनुष्य भूल गये हैं कि गीता का भगवान कौन था। श्रीकृष्ण तो था स्वर्ग का नम्बरवन प्रिन्स। इतनी ऊंच प्रालब्ध किसने प्राप्त कराई? ऊंच ते ऊंच प्रालब्ध है राधे-कृष्ण अथवा लक्ष्मी-नारायण की। यह बात कोई भी समझ नहीं सकते हैं। राधे-कृष्ण स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। उन्हों को यह ऊंच पद किसने दिया? श्रीकृष्ण कौन था, श्रीनारायण कौन था? यह बातें तुम ही जानों। श्रीकृष्ण को प्यार तो बहुत करते हैं, जयन्ती भी मनाते हैं फिर जिससे श्रीकृष्ण का स्वयंवर हुआ उनकी भी तो महिमा होगी। राधे-कृष्ण को तो इक्ट्ठा ही दिखाते हैं। उन्हों को ऐसा किसने बनाया? रचयिता एक निराकार को ही कहा जाता है। साकार को कभी क्रियेटर नहीं मानेंगे। इनकारपोरियल गॉड फादर कहते हैं। लक्ष्मी-नारायण सतयुग आदि में थे। अभी तो है कलियुग। यहाँ मनुष्य दु:खी कंगाल हैं। राजा रानी तो हैं नहीं। स्वर्ग की तो बहुत महिमा है। कोई मरता है तो कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ। स्वर्ग याद आता है तो जरूर स्वर्ग कोई अच्छी चीज़ थी। नर्क में जो मरते हैं, उनको पुनर्जन्म जरूर नर्क में ही लेना पड़े। जैसा कर्म करते हैं उस अनुसार यहाँ जन्म लेना पड़ता है। अब भगवान है निराकार ज्ञान का सागर, जिसको सभी मानते हैं। उनका यादगार मन्दिर भी शिव का है। ब्रह्मा विष्णु शंकर का चित्र देंगे तो कहेंगे यह ब्रह्मा है, यह विष्णु है। भगवान ब्रह्मा वा भगवान विष्णु नहीं कहेंगे। भगवान एक निराकार को कहेंगे। वह शिव ही है।

    अभी तुम बच्चे जानते हो हम फिर से लक्ष्मी-नारायण, भगवान भगवती बन रहे हैं। किस द्वारा? भगवान द्वारा। क्रियेटर बाप है वह स्वर्ग का रचयिता है। जरूर उसने प्रालब्ध दी जो यह स्वर्ग का मालिक बनें। चित्र तो तुम बच्चों के पास हैं। यह भी मनुष्य समझते हैं लक्ष्मी-नारायण सतयुग के मालिक थे। सिर्फ यह भूल गये हैं कि लक्ष्मी-नारायण छोटेपन में राधे-कृष्ण थे। सतयुग में महाराजा महारानी थे तो जरूर उन्हों का बचपन भी होगा। उन्हों की यह प्रालब्ध जरूर स्वर्ग के रचयिता ने बनाई होगी। वह कब आया - किसको भी यह पता नहीं। शिव का लिंग तो है। यह शिव का बड़ा रूप करके रखा है। वास्तव में कोई इतना बड़ा तो नहीं है ना। वह तो स्टार है, उनका कोई चित्र तो समझ न सके। यह सिर्फ पूजा के लिए बड़ा चित्र बनाया है। तो यह देवी-देवता धर्म किसने स्थापन किया? नाम चाहिए। क्रिश्चियन, बौद्धी आदि सबको मालूम है कि हमारा धर्म फलाने ने स्थापन किया। उनका धर्म शास्त्र यह है। पहले-पहले मुख्य बात ही यह है इसलिए बाबा चित्र बनवाते हैं। समझाने के लिए ही बनवाते हैं। आगे वाले चित्रों में कोई लिखत थोड़ेही थी। यह तो समझाया है स्वर्ग का रचयिता है परमपिता परमात्मा। स्वर्ग में है सदा सुख। क्या इतने सब मनुष्य वहाँ होंगे? झाड़ पहले छोटा होता है फिर बढ़ता जाता है। स्वर्ग में बहुत थोड़े होंगे। नर्क में बहुत हैं। स्वर्ग में सिर्फ देवी-देवताओं की राजधानी थी। यह और कोई नहीं जानते। पूछना चाहिए यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है? 5 हजार वर्ष पहले बरोबर यहाँ लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, उसको स्वर्ग कहा जाता था। वह पास्ट हो गया। नई दुनिया जो थी, वह अब पुरानी नर्क हो गई है। अच्छा फिर क्या होगा? फिर स्वर्ग आयेगा। भक्त याद करते हैं स्वर्ग वा मुक्तिधाम को। क्यों याद करते हैं? क्योंकि यहाँ दु:खी हैं। स्वर्ग में तो सदैव सुख होता है। बाप थोड़ेही बच्चों को रचकर दु:खी बनायेंगे। यह तो हो नहीं सकता। तुम जानते हो सतयुग से त्रेता, द्वापर, कलियुग होना है। सतयुग का अन्त, त्रेता के आदि का संगम कोई कल्याणकारी नहीं है क्योंकि सतयुग में जो 16 कला सम्पूर्ण हैं, वही देवी-देवता फिर 14 कला बन जाते हैं। तो वह कल्याणकारी युग थोड़ेही हुआ। फिर त्रेता के अन्त, द्वापर युग के आदि का भी संगम हुआ परन्तु उसमें भी कलायें कम होती हैं। सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में गिरते हैं। तमोप्रधान बनना ही है। तो इस समय सारी दुनिया दु:खी है। इसको कहा जाता है आरफन्स की दुनिया। कोई धनी धोणी नहीं। घर में माँ-बाप नहीं होते हैं तो सभी आपस में लड़ने लग पड़ते हैं। तो कहा जाता है तुम तो निधन के हो। वह है हद की बात। अभी यह है बेहद की बात। सारी दुनिया का कोई धनी धोणी नहीं है। मनुष्य, मनुष्य में लड़ते हैं। जानवर भी लड़ते हैं। कोई धनी धोणी नहीं है। धनी है बाप रचयिता। उनके आने से ही सब बच्चे धणके बन जाते हैं। बाप बच्चों को शान्तिधाम और फिर सुखधाम ले जाते हैं। पहले सतोप्रधान फिर सतो, रजो, तमो। हर एक चीज़ ऐसे ही होती है। छोटे बच्चे भी सतोप्रधान हैं इसलिए प्रिय लगते हैं। वही बच्चे अगर शिक्षा नहीं मिलती है तो माँ बाप को तंग करने लग पड़ते हैं। तंग तो होते हैं ना। लड़ते-झगड़ते बीमार हो पड़ते हैं। कोई को नुकसान पड़ता है तो यह भी दु:ख होता है ना। सतयुग में कोई भी दु:खी नहीं होता। वह है ही सुखधाम। बाप बच्चों के लिए स्वर्ग रचते हैं, वहाँ सदैव सुख है।

    तुम जानते हो यह बेहद की दुनिया नई थी, अब पुरानी है। देहली पुरानी और नई है ना। पुरानी अलग है, नई अलग है। नई देहली कितनी अच्छी देखने में आती है! ऐसे नहीं कि पुराने को कोई उड़ा देंगे, फिर रहेंगे कहाँ? यहाँ नई-पुरानी दोनों हैं फिर यह पुरानी टूट करके नई बनेगी जिसको ही स्वर्ग कहा जाता है। देहली को ही परिस्तान कहते हैं। इस समय है कब्रिस्तान। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। देहली परिस्तान थी, स्वर्ग थी। अब नर्क है। बाप खुद स्वर्ग का मालिक नहीं बनते हैं, बच्चों को बनाते हैं। तुम कहते हो बाबा हमको फिर से स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं। इतने सब निश्चयबुद्धि हैं तो देखकर निश्चयबुद्धि बनना चाहिए। कोई लण्डन देखकर आवे और वर्णन करे तो ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि हम जब देखें तब मानें। यहाँ तो इतने सब बच्चे कहते हैं हमको भगवान पढ़ाते हैं तो झूठ तो नहीं बोल सकते। परन्तु भाग्य में नहीं होगा तो बुद्धि में बैठेगा नहीं।

    बाप कहते हैं इसमें छोड़ना कुछ भी नहीं है। यह है अन्तिम जन्म। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है। यह है मृत्युलोक, वह है अमरलोक। गाया जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। वहाँ विकार होता नहीं। तो मानना चाहिए ना। बरोबर देवताओं की महिमा भी करते हैं सर्वगुण सम्पन्न.. वह था ही वाइसलेस वर्ल्ड। अच्छा, बच्चे तो पैदा होते होंगे! जरूर कोई युक्ति होगी? विकार से नहीं होते। वहाँ यह प्वाइज़न होता नहीं। यहाँ हैं सम्पूर्ण विकारी, वहाँ हैं सम्पूर्ण पावन। यथा राजा रानी तथा प्रजा। इसमें तुमको संशय क्यों पड़ता है? वहाँ की जो रसम-रिवाज होगी उसी अनुसार बच्चे पैदा होंगे। वहाँ विकार होता नहीं। यह नेचर इस मृत्युलोक का है। वहाँ तो कोई दु:ख देते नहीं। जानवर भी एक दो को दु:ख नहीं देते। वह भी ऐसे ही पैदा होंगे। अब तुमको चाहिए क्या? शान्ति चाहिए तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो मेरे पास चले आयेंगे। जो स्वर्ग में आने वाले होंगे वह कहेंगे हम तो ज्ञान जरूर लेंगे, सुख जरूर लेंगे। बाप से स्वर्ग का वर्सा लेना है। तुम जानते हो हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं। बाप की श्रीमत पर चल रहे हैं। चलते-चलते फिर कहाँ उल्टा-सुल्टा तूफान आता है तो निश्चय टूट पड़ता है। माया से हार खा लेते हैं। बाप कहते हैं कल्प पहले भी ऐसे वर्सा लेते-लेते हार खा ली थी। विकार में फंस गया था। गाया भी हुआ है संग तारे कुसंग बोरे। यह है सत का संग। उनकी श्रीमत पर चलने से हम नई दुनिया में आ जायेंगे। निश्चय में संशय आ जाता है तो वर्सा मिल न सके। ऐसे बहुतों को निश्चय होते-होते फिर संशय बुद्धि हो जाते हैं। तुम मात-पिता कहते हो फिर उनको छोड़ देते, यह भी ड्रामा में नूंध है। शिवबाबा के बने फिर ऐसे बाप को फारकती देवन्ती हो जाते। तुम्हें ईश्वर का बनना है या रावण का? लड़ाई है ना। कोई तो माया पर जीत प्राप्त कर समझते हैं बाबा से वर्सा जरूर लेना है। श्रीमत पर चलते रहते हैं। एलबम भी तुम्हारे पास है, जिन सभी बच्चों ने प्रतिज्ञा की है कि हमको गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है। कमल फूल को पानी टच नहीं करता है। तुमको विकारी दुनिया में रहते हुए विकार में नहीं जाना है। यह है तुम्हारा अन्तिम जन्म। अपने को निर्विकारी बनाने से तुम निर्विकारी दुनिया में चले जायेंगे। पवित्र बनना तो बहुत अच्छा है। बाप कहते हैं कि मेरे द्वारा तुम पवित्र बनेंगे तो स्वर्ग पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे। पतित दुनिया अब विनाश होनी है। कितना सहज समझाते हैं - ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना। सो तो हो रही है। बाकी सब हिसाब-किताब चुक्तू कर मुक्तिधाम चले जायेंगे। सतयुग में तुमको सच्चा सुख मिलता है। वैकुण्ठ का नाम तो मशहूर है। बरोबर लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। मनुष्यों को तो कुछ भी पता नहीं है। संन्यासी खुद निर्विकारी बनते हैं तो विकारी लोग उनकी पूजा करते हैं। विकारी आत्मा बनती है, परमात्मा नहीं। वह समझते हैं हम निर्विकारी बन परमात्मा बन जाते हैं। तो भी दो चीज़ तो हैं ना। आत्मा और परमात्मा। विकारी को तो परमात्मा नहीं कहा जाता। वह समझते हैं हम निर्विकारी बन परमात्मा बन जायेंगे। बाप कहते हैं ऐसे तो हो नहीं सकता। कोई भी मिल नहीं सकता। मैं आकर सबको वापिस ले जाऊंगा। निशानी भी है महाभारी लड़ाई। बच्चों को राजयोग सिखा रहा हूँ। महाभारी लड़ाई है तो भगवान भी जरूर होना चाहिए, जो सभी झंझटों को हटाये, सभी के झगड़े खत्म कर दे। सर्वशक्तिमान तो बाप है ना। कहते हैं अगर तुम मेरी मत पर चलेंगे तो मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाऊंगा। कल्प-कल्प तुम मेरी श्रीमत से ऐसे श्रेष्ठ बनते हो। आधाकल्प बाद जब मेरी मत पूरी हो आसुरी मत शुरू होती है तो तुम कंगाल कौड़ी जैसे बन पड़ते हो। अब फिर तुमको कौड़ी से हीरे जैसा बनाता हूँ, तो श्रीमत पर चलना चाहिए ना। बाबा कितना सहज समझाते हैं। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) किसी भी तूफान के कारण निश्चय में कमी न आये - इसके लिए संगदोष से अपनी सम्भाल करनी है। श्रीमत पर पूरा-पूरा चलना है।

    2) इस अन्तिम जन्म में श्रीमत पर सम्पूर्ण निर्विकारी जरूर बनना है। विकारी दुनिया में रहते हुए विकार टच न करें, यह सम्भाल करनी है।

    वरदान:-

    अपने हर कर्म द्वारा दिव्यता की अनुभूति कराने वाले दिव्य जीवनधारी भव

    बापदादा ने हर एक बच्चे को दिव्य जीवन अर्थात् दिव्य संकल्प, दिव्य बोल, दिव्य कर्म करने वाली दिव्य मूर्तियां बनाया है। दिव्यता संगमयुगी ब्राह्मणों का श्रेष्ठ श्रृंगार है। दिव्य-जीवनधारी आत्मा किसी भी आत्मा को अपने हर कर्म द्वारा साधारणता से परे दिव्यता की अनुभूतियां करायेगी। दिव्य जन्मधारी ब्राह्मण तन से साधारण कर्म और मन से साधारण संकल्प कर नहीं सकते। वे धन को भी साधारण रीति से कार्य में नहीं लगा सकते।

    स्लोगन:-

    दिल से सदा यही गाते रहो कि पाना था सो पा लिया...तो चेहरा खुशनुम: रहेगा।

    ***OM SHANTI***
    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 March 2023

    No comments

    Note: Only a member of this blog may post a comment.