Brahma Kumaris Murli Hindi 3 September 2022

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 3 September 2022

    Brahma Kumaris Murli Hindi 3 September 2022

    Brahma Kumaris Murli Hindi 3 September 2022

    03-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"'मधुबन

    “मीठे बच्चे - शरीर पर कोई भरोसा नहीं, इसलिए जो शुभ कार्य करना है वह आज कर लो, कल पर नहीं छोड़ो''

    प्रश्नः-

    अपना खाना आबाद करने अर्थात् मालामाल होने की युक्ति क्या है?

    उत्तर:-

    शिवबाबा को अपना वारिस (बच्चा) बना दो तो वह तुम्हें 21 जन्मों के लिए मालामाल कर देंगे। यह एक ही है जो सबका बच्चा बन सबका खाना आबाद कर देते हैं। परन्तु कई डरते हैं, समझते हैं शायद सब कुछ देना पड़ेगा। बाबा कहते डरने की बात नहीं। तुम अपने बच्चों आदि को सम्भालो। उनकी पालना करो परन्तु याद इस बच्चे को करो तो तुमको लाल कर देगा। अगर इस बच्चे पर बलि चढ़े तो तुम्हारी बहुत सेवा करेगा।

    ओम् शान्ति। 

    इस समय सब सेन्टर्स पर जो भी बच्चे बैठे हैं वह जरूर समझते होंगे कि हम शिवबाबा के महावाक्य सुनते हैं। और कोई ऐसी संस्था नहीं होगी क्योंकि शाखायें तो बहुतों की हैं ना। भल वह टेप आदि भी भरते होंगे जहाँ उन्हों की हेड आफिस होगी, जहाँ उन्हों का गुरू रहता होगा, उनको ही याद करते होंगे। निराकार परमपिता परमात्मा को तुम्हारे सिवाए कोई भी याद नहीं करते होंगे। इस संगम समय पर ही पारलौकिक बाप आते हैं, बच्चों को बैठ परिचय देते हैं और बच्चे निश्चयबुद्धि हो उसी धुन में रहते हैं। परमपिता परमात्मा इस समय ही मुरली चलाते हैं। शास्त्रों में भी है कि कृष्ण मधुबन में मुरली बजाते हैं। मधुबन तो मुख्य है एक, बाकी सब जगह मुरली जाती है। मनुष्यों की बुद्धि में तो है कृष्ण मुरली बजाते हैं। शिवबाबा मुरली चलाते हैं - यह किसकी बुद्धि में कभी आ न सके। यह किसको पता नहीं है। जहाँ-जहाँ तुम्हारे सेन्टर्स खुलते हैं, सभी यह समझते हैं शिवबाबा की मुरली बजती है ब्रह्मा द्वारा। जो फिर सब ज्ञान गंगायें सुनकर औरों को सुनाती हैं। बुद्धि में तो शिवबाबा याद है ना। शिवबाबा जिसको भगवान कहा जाता है। शिवबाबा मुरली सुनाते हैं, यह कोई भी शास्त्रों में नहीं है। तुम बच्चे कहाँ भी हो समझते हो यह मुरली जो छपकर आई है, शिवबाबा की ही आई है। शिवबाबा बिगर कोई सिखला नहीं सकते। बाप ही कहते हैं मुझे याद करो तो मैं वर्सा दूँगा। बाबा बच्चों को समझाते रहते हैं कि मामेकम् याद करो और कोई भी नाम-रूप को याद नहीं करो। साकार मनुष्यों के फोटो आदि तो जन्म-जन्मान्तर इकट्ठे करते आये हो, उपासना करते आये हो। देवताओं आदि के चित्र रखना यह सब तुम्हारा छूट जाता है। भक्तिमार्ग में आत्मायें बाप को याद करती हैं। शरीर को तो तब याद करते जब देह-अभिमानी बनते हैं। बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो। आत्मा ही पतित दु:खी बनी है। आत्मा कहती है मैं महाराजा था, अब रंक बन गया हूँ। तुमको अब स्मृति आई है, हम बाबा के बच्चे हैं। बाप से हमने वर्सा पाया था। अब बाप कहते हैं सबको बाप का परिचय दो। इन जैसा शुभ कार्य होता नहीं। इस शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए। शरीर पर तो भरोसा नहीं है। न जवान पर न बूढ़े पर इसलिए जो कुछ करना है सो आज करना चाहिए। आजकल करते-करते काल खा जायेगा। बाप ने कितनी बड़ी हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोली है, जिससे हेल्थ वेल्थ हैपीनेस मिलती है। हेल्थ वेल्थ है तो हैपी है ही है। निरोगी काया है, धन है तो मनुष्य सुखी हैं। तो बाप कहते हैं जिसको शुभ कार्य करना है, कर लो। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी लेकर यह हॉस्पिटल खोलो। सबको बाप का परिचय दो। बाप स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। भारतवासियों को वर्सा था ना। इन बातों को भारतवासी सहज समझ सकेंगे। भगवान को ढूँढने के लिए मन्दिर हैं। आर्यसमाजी लोग तो देवताओं को मानते ही नहीं इसलिए समझते हैं यह चित्र आदि जो बनाये हैं यह सब पाखण्ड हैं। विघ्न तो बहुत पड़ते रहेंगे। समझाना तो बड़ा सहज है। बाप का फरमान है - जल्दी मेरे साथ सगाई तो कर दो, सगाई करने से ही वर्से के हकदार बन सकते हैं।

    बाप रूहानी सर्जन है, तुम उनके बच्चे कहलाते हो; तो तुम भी सर्जन ठहरे। जरूर आत्माओं को ज्ञान इन्जेक्शन लगाना पड़े। मनमनाभव। यह बड़े ते बड़ा इन्जेक्शन है। बाबा की याद से ही सब दु:ख दूर हो जाते हैं। योग से पुण्य आत्मा बन जाते हो। यह एक ही दवाई है योग की। बच्चा जन्मता है, बाप की गोद में जाता है और वर्से का मालिक बन जाता है। तुमको अभी पता है कि हम बेहद के बाप से वर्सा लेते हैं याद से। याद में ही अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं, इसलिए याद को पक्का करते जाओ। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी के लेकर यह हॉस्पिटल खोलो। यह 3 पैर हैं ना! नहीं तो ऐसी ऊंच कॉलेज के लिए तो 50-60 एकड़ जमीन होनी चाहिए, जहाँ बहुत मनुष्य आकर पढ़े। ज्ञान इन्जेक्शन लगाते जायें। गायन भी है कि 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिले थे और फिर विश्व के मालिक बन गये। तुम विश्व के मालिक बनते हो ना। 3 पैर पृथ्वी के कोई बड़ी बात नहीं, फिर आहिस्ते-आहिस्ते बढ़ता जायेगा। फाउन्डेशन लगाया तो कितने सेन्टर्स खुल गये। कितने कौड़ी जैसे से हीरे जैसा बनते हैं। करने वाले को ही बहुत फायदा है। बहुतों के कल्याण के लिए ही हॉस्पिटल अथवा कॉलेज खोले जाते हैं। यह भी ऐसे हैं, बाहर में बोर्ड लगा दो। क्लीनिक फार हेल्थ वेल्थ 21 जन्मों के लिए। हिन्दी में कहेंगे 100 प्रतिशत पवित्रता, सुख-शान्ति का चिकित्सालय। परन्तु बच्चों में सर्विस करने का शौक नहीं। कुटुम्ब आदि के जाल को मकड़ी की जाल कहा जाता है, जाल में खुद फँस जाते हैं। बाप आकर रावण रूपी मकड़ी की जाल से निकालते हैं। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। यहाँ भी आपेही अपनी जाल में फँस मरते हैं। यह है ही रावण का राज्य। कितनी बड़ी-बड़ी रावण की जाल है - सारी सृष्टि पर। सभी शोक वाटिका में बैठे हैं। इस रावण की जाल में सब साधू-सन्त आदि फँसे हुए हैं। अब बाप कहते हैं इन सबको भूल अपने को आत्मा निश्चय करो और सबको यही रास्ता बताते रहो। यह सृष्टि चक्र का राज़ दूसरा कोई बता नहीं सकते। बाप कहते हैं इन सबको छोड़ मामेकम् याद करो। याद से ही तुम्हारे सब पाप मिट जायेंगे। शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए। मिसाल भी देते, देरी करते-करते मर जाते हैं। फिर भोग पर जब वह आत्मा आती है तो फिर बहुत रोती है। फिर बोला जाता है देखो तुमने देरी की। आजकल करते-करते काल खा गया। अब ज्ञान तो उठा नहीं सकते हो। ऐसे-ऐसे उल्हना दिया जाता है। बहुत बच्चे ख्याल करते हैं अच्छा कल यह करेंगे, फिर मर जाते हैं इसलिए समझाया जाता है ममत्व छोड़ दो। लौकिक सम्बन्धी तुम्हारा कोई कल्याण करने वाले नहीं हैं। यह शिवबाबा अब तुम्हारा बच्चा बनते हैं। कहते हैं तुम मुझे वारिस बनाओ तो मैं तुम्हारी बहुत सेवा करूँगा इसलिए बाबा पूछते भी हैं - आपको कितने बच्चे हैं? मुझ शिव को अपना बच्चा बनाया तो मालामाल हो जायेंगे, 21 जन्मों के लिए। कन्या तो अपने घर जाती है। बच्चे के लिए कितना हैरान होते हैं। बच्चा नहीं होता है तो दूसरी, तीसरी शादी भी करते हैं। बाप कहते हैं वह लौकिक बच्चे तो तुम्हारी कुछ भी सेवा नहीं करेंगे। यही एक सबका बच्चा बनता है, एकदम सबका खाना आबाद करने। परन्तु कई डरते हैं कि सब कुछ देना पड़ेगा! क्या होगा! बाप कहते हैं अपने बच्चों आदि की पालना तो करनी ही है। परन्तु याद इस बच्चे को करो। यह तो तुमको लाल कर देगा। काशी के मन्दिर में जाकर बलि चढ़ते हैं। समझते हैं शिव पर बलि चढ़ने से जीवनमुक्ति मिलनी है। वास्तव में बात यहाँ की है। कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं। अगर तुम इस बच्चे पर बलि चढ़े तो यह तुम्हारी बहुत सेवा करेंगे, स्वर्ग में महल दे देंगे। वह बच्चा तो कुछ भी नहीं करेगा, करके ब्राह्मण आदि खिलायेंगे। मनुष्य दान-पुण्य आदि जो करते हैं सो अपने लिए ही करते हैं। तो यह हॉस्पिटल खोलना कितना पुण्य है। साहूकार लोग तो 10-15 हॉस्पिटल खोल सकते हैं। यह पैसे आदि तो सब खत्म हो जायेंगे। तुम किराये पर मकान लेकर 50 हजार में 50 हॉस्पिटल खोल दो। फिर वह आपेही अपने पैर पर खड़े हो जायेंगे। बाप कितनी सहज युक्तियां सर्विस की बताते हैं। गंगा के कण्ठे पर जाकर सर्विस करो। अपनी पीठ पर यह बाबा का परिचय लगा दो। आपेही पढ़ते रहेंगे। देह-अभिमान छोड़ना है। कोई साहूकार ऐसे करे तो सब कहेंगे वाह! इनको तो देह-अभिमान बिल्कुल नहीं है। बाप का परिचय देना है। बाप स्वर्ग का रचयिता है फिर हम नर्क में क्यों पड़े हैं! अभी बाप आये हैं - कहते हैं देह के सब सम्बन्ध छोड़ मुझे याद करो। भारत स्वर्ग से नर्क कैसे बना? लक्ष्मी-नारायण ने 84 जन्म कैसे लिए, आओ तो हम कथा सुनायें। ढेर इकट्ठे हो जायें। पतित-पावनी गंगा को भी कहते हैं तो जमुना को भी कहते हैं। अच्छा गंगा पतित-पावनी है तो एक को पकड़ो ना।

    अब तुम बच्चों ने ड्रामा को जाना है तो फिर समझाना है। अगर औरों को रोशनी नहीं देंगे तो कौन कहेंगे कि इनकी बुद्धि में रोशनी है। सर्जन इन्जेक्शन लगा न सके तो उनको सर्जन कौन कहेगा? तुम बच्चों को सारी रोशनी मिली है। 84 जन्मों का राज़ बुद्धि में है। तुम इस ड्रामा को और एक्टर्स की एक्ट को जानते हो। ऊंचे ते ऊंच एक्ट है बाप की। बच्चों के साथ पार्ट बजाते हैं। तुम भारत को स्वर्ग बनाते हो। परन्तु हो गुप्त, इनकागनीटो, नानवायोलेन्स, शिवशक्ति सेना। उनकी सब बातें जिस्मानी हैं। कितने कुम्भ के मेले में जाते हैं। यहाँ जिस्मानी कोई बात नहीं। तुम उठते-बैठते, चलते यात्रा पर हो, याद से तुम पावन बनते हो। बाबा कहते हैं तुम कर्म करते समय भी शिवबाबा को याद करो। वह फिर कह देते सबमें परमात्मा है। फर्क हो गया ना! बाप कहते हैं जहाँ भी बैठो मुझे याद करो। फिर सर्विस भी करनी चाहिए। मन्दिरों में बहुत भक्त जाते हैं। बस यह चित्र पीठ पर लगा दो, बाप का परिचय देते रहो। युक्तियां तो बहुत बतलाते हैं। शमशान में जाकर समझाओ। निराकार बाप की महिमा और श्रीकृष्ण की महिमा। अब बताओ गीता का भगवान कौन? साथ में चित्र भी हो। सर्विस तुम बहुत कर सकते हो। फीमेल करे वा कोई कुमारी करे तो अहो सौभाग्य। कन्या तो सबसे अच्छी। कन्याओं का कन्हैया बाप है निराकार। कन्हैया कृष्ण नहीं था, यह है बाप। बाप को ख्याल आता है कि बच्चों को कैसे सिखलाऊं! कल्प पहले भी ड्रामा अनुसार ऐसे ही समझाया था फिर आज समझाता हूँ। तो तुमको भी अन्धों की लाठी बनना चाहिए। जिन बच्चों को परिचय मिलता है वह फिर औरों को ले आते हैं। उसका भी पुण्य होता है। अपने पास हिसाब रखो। जितना करेंगे फल तो मिलेगा ना। कोई को ले आते हैं तो उनका भी बहुत कल्याण हो जाता है। इस धन्धे में बच्चों का बहुत अटेन्शन चाहिए। सर्विस नहीं करेंगे तो मिलेगा क्या? सर्विस, सर्विस और सर्विस। तुम कहते भी हो - हम गॉड की सर्विस पर हैं। घर की सर्विस भी भल करो।

    बाप शिक्षा देते हैं बच्चों को कभी विकार में नहीं जाने देना। अगर वह तुम्हारी आज्ञा नहीं मानते हैं तो जैसे नाफरमानबरदार ठहरे। अगर उसको धन दिया, उसने उससे पाप कर लिया तो उसका दण्ड तुम्हारे सिर पर आ जायेगा। बाबा तो राय देते हैं ना। परन्तु बहुत हैं जो करके पीछे बताते हैं। तो बच्चों को सर्विस के लिए अनेक प्रकार की युक्तियां बताते हैं। तुम बच्चों को यही धन्धा करना है। ट्रेन में भी यही सर्विस करते रहो तो बाप भी खुश होगा और भविष्य 21 जन्मों के लिए सदा सुख का वर्सा मिल जायेगा। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-

    1) माया ने जो बहुत बड़ी जाल बिछाई है, अब बाप की याद से उस जाल से निकलना है। शुभ कार्य में लग जाना है। किसी देहधारी की जाल में नहीं फॅसना है, सबसे ममत्व निकाल देना है।

    2) ज्ञान की जो रोशनी मिली है वह सबको देनी है। देह-अभिमान को छोड़ भिन्न-भिन्न युक्तियों से सर्विस करनी है। अन्धों की लाठी बनना है।

    वरदान:-

    अनेक प्रकार के भावों को समाप्त कर आत्मिक भाव को धारण करने वाले सर्व के स्नेही भव

    देह-भान में रहने से अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं। कभी कोई अच्छा लगेगा तो कभी कोई बुरा लगेगा। आत्मा रूप में देखने से रूहानी प्यार पैदा होगा। आत्मिक भाव, आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति में रहने से हर एक के सम्बन्ध में आते हुए अति न्यारे और प्यारे रहेंगे। तो चलते फिरते अभ्यास करो - “मैं आत्मा हूँ'' इससे अनेक प्रकार के भाव-स्वभाव समाप्त हो जायेंगे और सबके स्नेही स्वत: बन जायेंगे।

    स्लोगन:-

    जिसके पास उमंग-उत्साह के पंख है उसे सफलता सहज प्राप्त होती है।

    Brahma Kumaris Murli Hindi 3 September 2022

    ***OM SHANTI***

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