Brahma Kumaris Murli Hindi 15 February 2022
Brahma Kumaris Murli Hindi 15 February 2022 |
15-02-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन
“मीठे बच्चे - आत्मा रूपी दीपक में योग रूपी घृत डालो तो आत्मा शक्तिशाली हो जायेगी।''
प्रश्नः-
आत्मा रूपी बैटरी में पावर भरने का आधार क्या है?
उत्तर:-
आत्मा रूपी बैटरी में पावर भरने के लिए बुद्धियोग का बल चाहिए। जब बुद्धियोग बल से सर्वशक्तिमान् बाप को याद करेंगे तब बैटरी भरेगी। जब तक बैटरी में पावर नहीं तब तक ज्ञान की धारणा भी नहीं हो सकती है। आत्मा में कम्पलीट रोशनी आने में टाइम लगता है। याद करते-करते फुल रोशनी आ जाती है।
गीत:-
रात के राही थक मत जाना...
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत का अर्थ तो सुना कि तुम बच्चे अब दिन में जाने के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। नई दुनिया में तो रोशनी ही रोशनी है। पुरानी दुनिया में अन्धियारा ही अन्धियारा है। यह है ब्रह्मा की घोर अन्धियारी रात। तुम अभी दिन में जा रहे हो। बाप बच्चों को कहते हैं यह बुद्धि का योग लगाते-लगाते थक नहीं जाना। जितना तुम योग लगाते हो उतना सोझरा होता है। आत्मा रूपी दीपक की ज्योत जो उझाई हुई है, वह आती जाती है। उस बिजली में तो फट से करेन्ट आ जाती है। परन्तु आत्मा में कम्पलीट रोशनी आने में टाइम लगता है। अन्त तक फुल आ जायेगी। योग लगाते रहना है, मोटर की बैटरी भी सारी रात भरती रहती है। वैसे यह भी मोटर है। इनसे अब घृत खत्म हो गया है अथवा पावर कम हो गई है। बाबा को तो पावरफुल सर्वशक्तिमान् कहा जाता है ना। इस बैटरी में सिवाए बुद्धि योगबल के पावर आ नहीं सकती। सर्वशक्तिमान् बाप से ही योग लगाने से सारी बैटरी भरती है। बैटरी भरने के सिवाए नॉलेज भी धारण नहीं हो सकती। घड़ी-घड़ी बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्सा ले लो। मनमनाभव, कितनी सहज बात है। मनुष्य तो राम-राम का जाप करते रहते हैं और चाहते हैं रामराज्य हो। परन्तु ऐसे राम-राम जपने से रामराज्य थोड़ेही होगा। ऐसा राम-राम तो जन्म-जन्मान्तर बहुत करते आये, गंगा के कण्ठे पर बैठकर। यह तो कोई को पता ही नहीं तो रामराज्य किसको कहा जाता है। जरूर राम ही रामराज्य बनायेंगे। उन्हों की बुद्धि में सीता-राम वाला राज्य आ गया है। अब उस रामराज्य में तो राम को ही आराम नहीं था। राम राजा की ही स्त्री चोरी हो गई तो प्रजा का क्या हाल होगा। यहाँ भी राजाओं की स्त्री कभी थोड़ेही चोरी होती है, यह लोग फिर राम सीता के लिए कह देते। यह बड़ी समझने की बातें हैं। वास्तव में राम तो परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। गाते भी हैं तुम मात पिता... अब मात-पिता कौन सा जिसके लिए यह गाते हैं? एक तो है लौकिक मात-पिता। उनकी तो यह महिमा नहीं करेंगे। जरूर दूसरा कोई परमपिता है तो जरूर माता भी होनी चाहिए। तो गायन है पारलौकिक मात-पिता का। पूछते हैं हू इज क्रियेटर? तो झट कहेंगे गॉड फादर। तो सिद्ध है ना - मात-पिता है। इस समय ही दो मात-पिता होते हैं। सतयुग में सिर्फ एक ही मात-पिता होता है। लौकिक मात-पिता होते भी यहाँ गाते हैं तुम मात-पिता... इस समय हम बच्चों को बाप द्वारा सुख घनेरे मिल जाते हैं फिर एक माता-पिता हो जाता है। पारलौकिक मात-पिता द्वारा सतयुग की प्रालब्ध में सुख घनेरे मिलते हैं, उस मात-पिता का ही गायन है। फिर भी ऐसे बाप को बच्चे याद करना भूल जाते हैं। तुम बच्चों को तो सबको बाप का परिचय देना है कि बाबा आया है। हमेशा शिवबाबा और ब्रह्मा बाबा कहते हैं। प्रजापिता का तो नाम बाला है। शिवबाबा, ब्रह्मा बाबा। लौकिक बाबा वह पारलौकिक परमपिता, वह फिर मात-पिता कैसे बनते हैं - यह बड़ी गुह्य बातें हैं। कोई भी आते हैं पहले यह पूछो कि परमपिता परमात्मा आपका क्या लगता है? प्रजापिता आपका क्या लगता है? जब अम्बा भी गुप्त तो यह ब्रह्मा भी गुप्त। यह ब्रह्मा है बड़ी माँ। लौकिक बाप का तो नाम रूप देश काल सब जानते हैं। अब तुम उनको पारलौकिक मात-पिता का नाम रूप देश काल आक्यूपेशन बताओ। मम्मा की भी यह बड़ी मम्मा। बड़ी मम्मा द्वारा बच्चों को एडाप्ट करते हैं तो मात-पिता कम्बाइन्ड हो जाते हैं। इनको मात-पिता अथवा बापदादा भी कहते हैं। किसको समझाने की बड़ी युक्तियां चाहिए। बड़े बोर्ड पर लिखना चाहिए निराकार परमपिता परमात्मा को सब याद भी करते हैं परन्तु यह नहीं जानते तो वह मात-पिता कैसे हैं। इतनी भी मनुष्यों की बुद्धि नहीं चलती क्योंकि बातें हैं बहुत विचित्र, जो बाप ही आकर सुनाते हैं। आत्मा कहती है - ओ परमपिता परमात्मा, वह भी है आत्मा परन्तु सुप्रीम है। सुप्रीम माना परम। वह परमधाम में रहने वाला है। वह खुद तो जन्म-मरण में नहीं आते, आकरके हम बच्चों को पतित जन्म-मरण से छुड़ाते हैं। पावन जन्म-मरण से नहीं छुड़ाते हैं। पतित आत्मा को ही पावन आत्मा बनाते हैं इसलिए उनको पतित-पावन कहा जाता है। मनुष्य तो राम-सीता का भी अर्थ नहीं समझते। वास्तव में सब भक्तियां सीतायें हैं। याद करती हैं एक साजन परमात्मा को।
बाप कहते हैं - बच्चे, इस समय सारी दुनिया में रावण राज्य है। सिर्फ लंका में नहीं। रावण को जलाते भी यहाँ हैं। लंका, हिन्दुस्तान में नहीं। वह तो बौद्धियों का अलग खण्ड है। तो इस समय सारी दुनिया रावण के बंधन में है। सारी दुनिया में रावण का राज्य है। आधाकल्प है रामराज्य, आधकल्प है रावण राज्य। आधकल्प दिन, आधाकल्प रात। यह सब बातें बुद्धि में रखने की हैं। इस समय तुम रावण पर विजय पा रहे हो। जो पूरी विजय पायेंगे वही मालिक बनेंगे। सतयुग आदि में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उन्होंने यह स्वर्ग की प्रालब्ध कहाँ से और कैसे पाई। सतयुग में मनुष्य बहुत थोड़े होंगे। लाखों की अन्दाज में होंगे। जमुना के कण्ठे पर राजधानी होगी। वहाँ कोई विकार होता ही नहीं। कहा ही जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी। बच्चे भी योगबल से ही पैदा होते हैं। वहाँ रोना, पीटना कुछ नहीं होता। परन्तु पहले यह बातें नहीं निकालनी हैं। पहली बात ही यह उठाओ कि निराकार परमपिता परमात्मा और हम आत्मायें भी परलोक से आते हैं तो तुम्हारा पारलौकिक परमपिता से क्या सम्बन्ध है? नम्बरवन बात है यह। पहले यह बाप का सम्बन्ध निकालो तो माँ का और वर्से का सम्बन्ध निकलेगा। एक अल्फ को भूलने से ही सब कुछ भूले हैं। रावण ने पहले-पहले अल्फ से ही भुलाया है फिर अल्फ की मदद से हम रावण पर जीत पाते हैं। समझाने की प्वाइंट्स तो बहुत हैं। प्रदर्शनी में मुख्य बात अल्फ की समझानी है। अल्फ के बाद ही बे ते आता है। अल्फ को नहीं समझा तो कुछ नहीं समझेंगे। कितना भी भल माथा मारो। परमपिता है तो पिता से वर्सा मिलता है। बाबा का वर्सा मिला तो वर्से के हकदार बन ही जाते हैं। त्रिमूर्ति पर समझाना कितना सहज है। ऊपर में बाप खड़ा है नीचे लक्ष्मी-नारायण वर्सा, यह विष्णु खड़ा है। बाबा कहते हैं मुझे याद करो तो यह वर्सा पायेंगे। बच्चे कहते बाबा आप तो निराकार हो, आप कैसे वर्सा देंगे। बच्चे, मैं इन ब्रह्मा द्वारा देता हूँ। जो आये उनको इस बात पर ही समझाओ। मूल बात ही त्रिमूर्ति की है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा का तो कोई अर्थ ही नहीं। समझाना है - यह निराकार शिवबाबा, उनको ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। फिर यह वर्सा है। अब बाप तो है निराकार। फिर इन लक्ष्मी-नारायण को वर्सा कैसे मिला, कहाँ से आया? तुम यहाँ अपने को विष्णु कुमार नहीं कहलाते हो। तुम तो हो ही बी. के.। ब्रह्मापुरी मनुष्यों की ही कही जाती है। जहाँ खास ब्राह्मण रचते हैं। सिन्ध में भी ब्रह्मापुरी थी, यह किसने समझाया? (शिवबाबा ने) हमेशा बापदादा कम्बाइन्ड कहना है। कभी बाबा, कभी दादा बोलेंगे। दोनों आत्माओं का मुख तो एक ही है ना। जब जिसको चाहे वह यूज़ करेंगे। बंधन थोड़ेही है। तो पहले है यह बात कि ज्ञान सागर गीता का भगवान बाप है, वह कहते हैं - यह ब्रह्मा विष्णु शंकर तो सूक्ष्मवतन वासी हैं देवतायें। यह ब्रह्मा तो मनुष्य है जब सम्पूर्ण बनेंगे तो देवता कहलायेंगे। यह तपस्या कर फिर देवता बनते हैं। इन ब्रह्माकुमार कुमारियों को भगवान सिखलाते हैं ब्रह्मा द्वारा। चित्रों पर अच्छी रीति समझाना है। समझानी बहुत सहज है। यह शिवबाबा, यह वर्सा। यह शिव तो निराकार है इसलिए ब्रह्मा द्वारा देते हैं। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना। जरूर अभी ही राजयोग सीखते हैं - यह बनने के लिए। यह शिवपुरी, यह विष्णुपुरी है।अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अल्फ की याद से रावण माया पर जीत पानी है। सबको अल्फ का परिचय देना है।
2) याद की यात्रा में थकना नहीं है। अपनी बैटरी को चार्ज करने के लिए सर्वशक्तिमान् बाप को याद करना है।
वरदान:-
एक बाप की याद द्वारा एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले सार स्वरूप भव
एकरस स्थिति में रहने की सहज विधि है एक की याद। एक बाबा दूसरा न कोई। जैसे बीज में सब कुछ समाया हुआ होता है। ऐसे बाप भी बीज है, जिसमें सर्व सम्बन्धों का, सर्व प्राप्तियों का सार समाया हुआ है। एक बाप को याद करना अर्थात् सार स्वरूप बनना। तो एक बाप, दूसरा न कोई - यह एक की याद एकरस स्थिति बनाती है। जो एक सुखदाता बाप की याद में रहते हैं उनके पास दु:ख की लहर कभी आ नहीं सकती। उन्हें स्वप्न भी सुख के, खुशी के, सेवा के और मिलन मनाने के आते हैं।
स्लोगन:-
श्रेष्ठ आशाओं का दीपक जगाने वाले ही सच्चे कुल दीपक हैं।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य - “परमात्मा द्वारा फर्स्ट लॉटरी क्यों न विन करें''
देखो बहुत मनुष्य ऐसे समझते हैं थोड़ा-सा भी पुरुषार्थ करने से हम भी वैकुण्ठ में तो आ जायेंगे ना, परन्तु उन्हों को यह सोचना चाहिए कि परमात्मा बाप आया है तो कम्पलीट वर्सा लेने के लिये तो स्टूडेन्ट का काम है सम्पूर्ण पुरुषार्थ कर स्कॉलरशिप लेना, तो पहला नम्बर लॉटरी क्यों न विन करें! वह है विजय माला में पिरोया जाना। बाकी दो लड्डू पकड़कर बैठे हैं यहाँ का भी हद का सुख लूँ और वहाँ भी वैकुण्ठ में कुछ-न-कुछ सुख ले लेंगे, ऐसे विचारवान को मध्यम और कनिष्ठ पुरुषार्थी कहेंगे न कि सर्वोत्तम पुरुषार्थी। जब बाप देने में आनाकानी नहीं करता तो लेने वाले क्यों कतराते हो? तब गुरुनानक ने कहा परमात्मा तो दाता है, समर्थ है मगर आत्माओं को लेने की भी ताकत नहीं, देंदा दे, लेंदा थक पाये, (देने वाला देता है लेकिन लेने वाला थक जाता है) आपके दिल में आता होगा हम क्यों न चाहेंगे कि हम भी यह पद पायें, परन्तु देखो बाबा कितनी मेहनत करता है, फिर भी माया कितना विघ्न डालती है, क्यों? अब माया का राज्य समाप्त होने वाला है। अब माया ने सारा सार निकाल दिया है, तब ही परमात्मा आते हैं, जिसमें सब रस समाया हुआ है, जिससे सभी सम्बन्ध की रसना मिलती है तब ही त्वमेव माता च पिता... आदि आदि यह महिमा उस परमात्मा की है, तो बलिहारी इसी समय की है जो ऐसा सम्बन्ध हुआ है। अच्छा - ओम् शान्ति।
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