Brahma Kumaris Murli Hindi 24 August 2020

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 24 August 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 24 August 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 24 August 2020


    24-08-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - सदा इसी खुशी में रहो कि हमने 84 का चक्र पूरा किया, अब जाते हैं अपने घर, बाकी थोड़े दिन यह कर्मभोग है''

    प्रश्नः- 

    विकर्माजीत बनने वाले बच्चों को विकर्मों से बचने के लिए किस बात पर बहुत ध्यान देना है?

    उत्तर:- 

     जो सर्व विकर्मों की जड़ देह-अभिमान है, उस देह-अभिमान में कभी न आयें, यह ध्यान रखना है। इसके लिए बार-बार देही-अभिमानी बन बाप को याद करना है। अच्छे और बुरे का फल जरूर मिलता है, अन्त में विवेक खाता है। लेकिन इस जन्म के पापों के बोझ को हल्का करने के लिए बाप को सच-सच सुनाना है।

    ओम् शान्ति।

     बड़े ते बड़ी मंजिल है याद की। बहुतों को सिर्फ सुनने का शौक रहता है। ज्ञान को समझना तो बहुत सहज है। 84 के चक्र को समझना है, स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। जास्ती कुछ नहीं है। तुम बच्चे समझते हो हम सब स्वदर्शन चक्रधारी हैं। स्वदर्शन चक्र से कोई का गला नहीं काटते हैं। जैसे कृष्ण के लिए दिखाया है। अब यह लक्ष्मी-नारायण विष्णु के दो रूप हैं। क्या उनको स्वदर्शन चक्र है? फिर कृष्ण को चक्र क्यों दिखाते हैं? एक मैगज़ीन निकालते हैं, जिसमें कृष्ण के ऐसे बहुत चित्र दिखाते हैं। बाप तो आकर तुम्हें राजयोग सिखाते हैं, न कि चक्र से असुरों का घात करते हैं। असुर उनको कहा जाता, जिनका आसुरी स्वभाव है। बाकी मनुष्य तो मनुष्य हैं ना। ऐसे नहीं स्वदर्शन चक्र से बैठ सबको मारते हैं। भक्ति मार्ग में क्या-क्या चित्र बैठ बनाये हैं। रात-दिन का फ़र्क है। तुम बच्चों को इस सृष्टि चक्र और सारे ड्रामा को जानना है क्योंकि सब एक्टर्स हैं। वह हद के एक्टर्स तो ड्रामा को जानते हैं। यह है बेहद का ड्रामा। इसमें डिटेल में नहीं समझ सकेंगे। वह तो 2 घण्टे का ड्रामा होता है। डीटेल में पार्ट जानते हैं। यह तो 84 जन्मों को जानना होता है।

    बाप ने समझाया है - मैं ब्रह्मा के रथ में प्रवेश करता हूँ। ब्रह्मा के भी 84 जन्मों की कहानी चाहिए। मनुष्यों की बुद्धि में यह बातें आ न सकें। यह भी नहीं समझते कि 84 लाख जन्म हैं या 84 जन्म हैं? बाप कहते हैं तुम्हारे 84 जन्मों की कहानी सुनाता हूँ। 84 लाख जन्म हों तो कितने वर्ष सुनाने में लग जायें। तुम तो सेकण्ड में जान जाते हो - यह 84 जन्मों की कहानी है। हमने 84 का चक्र कैसे लगाया है, 84 लाख हो तो सेकण्ड में थोड़ेही समझ सकते। 84 लाख जन्म हैं ही नहीं। तुम बच्चों को भी खुशी होनी चाहिए। हमारा 84 का चक्र पूरा हुआ। अब हम घर जाते हैं। बाकी थोड़े दिन यह कर्मभोग है। विकर्म भस्म हो कर्मातीत अवस्था कैसे हो जाए, इसके लिए यह युक्ति बताई है। बाकी समझाते हैं इस जन्म में जो भी विकर्म किये हुए हैं वह लिखकर दो तो बोझ हल्का हो जाए। जन्म-जन्मान्तर के विकर्म तो कोई लिख न सके। विकर्म तो होते आये हैं। जबसे रावण राज्य शुरू हुआ है तो कर्म विकर्म हो पड़ते हैं। सतयुग में कर्म अकर्म होते हैं। भगवानुवाच - तुमको कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को समझाता हूँ। विकर्माजीत का संवत लक्ष्मी-नारायण से शुरू होता है। सीढ़ी में बड़ा क्लीयर है। शास्त्रों में कोई यह बातें नहीं हैं। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी का राज़ भी तुम बच्चों ने समझा है कि हम ही थे। विराट रूप का चित्र भी बहुत बनाते हैं परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं जानते। बाप बिगर कोई समझा नहीं सकते। इस ब्रह्मा के ऊपर भी कोई है ना, जिसने सिखाया होगा। अगर कोई गुरू ने सिखाया होता तो उस गुरू का सिर्फ एक शिष्य तो नहीं हो सकता। बाप कहते हैं - बच्चे, तुम्हें पतित से पावन, पावन से पतित बनना ही है। यह भी ड्रामा में नूँध है। अनेक बार यह चक्र पास किया है। पास करते ही रहेंगे। तुम हो आलराउन्ड पार्टधारी। आदि से अन्त तक पार्ट और कोई का है नहीं। तुमको ही बाप समझाते हैं। फिर तुम यह भी समझते हो कि दूसरे धर्म वाले फलाने-फलाने समय पर आते हैं। तुम्हारा तो आलराउन्ड पार्ट है। क्रिश्चियन के लिए तो नहीं कहेंगे कि सतयुग में थे। वह तो द्वापर के भी बीच में आते हैं। यह नॉलेज तुम बच्चों की ही बुद्धि में है। किसको समझा भी सकते हो। दूसरा कोई सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते। रचयिता को ही नहीं जानते तो रचना को कैसे जानेंगे। बाबा ने समझाया है जो राइटियस बातें हैं वह छपाकर एरोप्लेन से सब जगह गिरानी है। वह प्वाइंट्स अथवा टॉपिक्स बैठ लिखनी चाहिए। बच्चे कहते हैं काम नहीं है। बाबा कहते हैं यह सर्विस तो बहुत है। यहाँ एकान्त में बैठ यह काम करो। जो भी बड़ी-बड़ी संस्थायें हैं, गीता पाठशालायें आदि हैं, उन सबको जगाना है। सबको सन्देश देना है। यह पुरुषोत्तम संगमयुग है। जो समझदार होंगे वह झट समझेंगे, जरूर संगमयुग पर ही नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश होता है। सतयुग में पुरुषोत्तम मनुष्य होते हैं। यहाँ है आसुरी स्वभाव वाले पतित मनुष्य। यह भी बाबा ने समझाया है, कुम्भ का मेला आदि जो लगता है। बहुत मनुष्य जाते हैं स्नान करने। क्यों स्नान करने जाते हैं? पावन होना चाहते हैं। तो जहाँ-जहाँ मनुष्य स्नान करने जाते हैं वहाँ जाकर सर्विस करनी चाहिए। मनुष्यों को समझाना चाहिए, यह पानी कोई पतित-पावनी नहीं है। तुम्हारे पास चित्र भी हैं। गीता पाठशालाओं में जाकर यह पर्चे बांटने चाहिए। बच्चे सर्विस मांगते हैं। यह बैठकर लिखो - गीता का भगवान परमपिता परमात्मा शिव है, न कि श्रीकृष्ण। फिर उनकी बायोग्राफी की महिमा लिखो। शिवबाबा की बायोग्राफी लिखो। फिर आपेही वह जज करेंगे। यह प्वाइंट्स भी लिखनी है कि पतित-पावन कौन? फिर शिव और शंकर का भेद भी दिखाना है। शिव अलग है, शंकर अलग है। यह भी बाबा ने समझाया है - कल्प 5 हज़ार वर्ष का है। मनुष्य 84 जन्म लेते हैं, न कि 84 लाख। यह मुख्य-मुख्य बातें शॉर्ट में लिखनी चाहिए। जो एरोप्लेन से भी गिरा सकते हैं, समझा भी सकते हैं। यह जैसे गोला है, इसमें क्लीयर है फलाने-फलाने धर्म फलाने-फलाने समय पर स्थापन होते हैं। तो यह गोला भी होना चाहिए इसलिए मुख्य 12 चित्रों के कैलेन्डर्स भी छपवा सकते हो जिसमें सारा ज्ञान आ जाए और सर्विस सहज हो सके। यह चित्र बिल्कुल ज़रूरी है। कौन-से चित्र बनाने हैं, क्या-क्या प्वाइंट लिखनी चाहिए। वह बैठ लिखो।

    तुम गुप्तवेष में इस पुरानी दुनिया का परिवर्तन कर रहे हो। अननोन वारियर्स हो। तुमको कोई नहीं जानते। बाबा भी गुप्त, नॉलेज भी गुप्त। इनका कोई शास्त्र आदि बनता नहीं, और धर्म स्थापक के बाइबिल आदि छपते हैं जो पढ़ते आते हैं। हर एक के छपते हैं। तुम्हारा फिर भक्ति मार्ग में छपता है। अभी नहीं छपना है क्योंकि अभी तो यह शास्त्र आदि सब खत्म हो जाने हैं। अभी तुमको बुद्धि में सिर्फ याद करना है। बाप के पास भी बुद्धि में ज्ञान है। कोई शास्त्र आदि थोड़ेही पढ़ते। वह तो नॉलेजफुल है। नॉलेजफुल का अर्थ फिर मनुष्य समझते हैं सबके दिलों को जानने वाला है। भगवान देखते हैं तब तो कर्मों का फल देते हैं। बाप कहते हैं यह ड्रामा में नूँध है। ड्रामा में जो विकर्म करते हैं तो उनकी सज़ा होती जाती है। अच्छे वा बुरे कर्मों का फल मिलता है। उसकी लिखत तो कोई है नहीं। मनुष्य समझ सकते हैं ज़रूर कर्मों का फल दूसरे जन्म में मिलता है। अन्त घड़ी विवेक फिर बहुत खाता है। हमने यह-यह पाप किये हैं। सब याद आता है। जैसा कर्म वैसा जन्म मिलेगा। अभी तुम विकर्माजीत बनते हो तो कोई भी ऐसा विकर्म नहीं करना चाहिए। बड़े ते बड़ा विकर्म है देह-अभिमानी बनना। बाबा बार-बार कहते हैं देही-अभिमानी बन बाप को याद करो, पवित्र तो रहना ही है। सबसे बड़ा पाप है काम कटारी चलाना। यही आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है इसलिए संन्यासी भी कहते यह काग विष्टा समान सुख है। वहाँ दु:ख का नाम नहीं होता। यहाँ दु:ख ही दु:ख है, इसलिए संन्यासियों को वैराग्य आता है। परन्तु वह जंगल में चले जाते हैं। उन्हों का है हद का वैराग्य, तुम्हारा है बेहद का वैराग्य। यह दुनिया ही छी-छी है। सब कहते हैं बाबा आकर हमारे दु:ख हरकर सुख दो। बाप ही दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। तुम बच्चे ही समझते हो कि नई दुनिया में इन देवताओं का राज्य था। वहाँ किसी भी प्रकार का दु:ख नहीं था। जब कोई शरीर छोड़ता है तो मनुष्य कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। परन्तु यह थोड़ेही समझते कि हम नर्क में हैं। हम जब मरें तब स्वर्ग में जायें। परन्तु वह भी स्वर्ग में गया वा यहाँ नर्क में आया? कुछ भी समझते नहीं। तुम बच्चे 3 बाप का राज़ भी सबको समझा सकते हो। दो बाप तो सब समझते हैं लौकिक और पारलौकिक और यह अलौकिक प्रजापिता ब्रह्मा फिर है यहाँ संगमयुग पर। ब्राह्मण भी चाहिए ना। वह ब्राह्मण कोई ब्रह्मा के मुख वंशावली थोड़ेही हैं। जानते हैं ब्रह्मा था इसलिए ब्राह्मण देवी-देवता नम: कहते हैं। यह नहीं जानते कि किसको कहते हैं, कौन से ब्राह्मण? तुम हो पुरुषोत्तम संगमयुगी ब्राह्मण। वह हैं कलियुगी। यह है पुरुषोत्तम संगमयुग, जब तुम मनुष्य से देवता बनते हो। देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। तो बच्चों को सब प्वाइंट्स धारण करनी है और फिर सर्विस करनी है। पूजा करने वा श्राद्ध खाने पर ब्राह्मण लोग आते हैं। उनसे भी तुम चिटचैट कर सकते हो। तुमको सच्चा ब्राह्मण बना सकते हैं। अभी भादों का मास आता है, सभी पित्रों को खिलाते हैं। वह भी युक्ति से करना चाहिए, नहीं तो कहेंगे कि ब्रह्माकुमारियों के पास जाकर सब कुछ छोड़ दिया है। ऐसा कुछ नहीं करना है, जिसमें नाराज हों। युक्ति से तुम ज्ञान दे सकते हो। ज़रूर ब्राह्मण लोग आयेंगे, तब तो ज्ञान देंगे ना। इस मास में तुम ब्राह्मणों की बहुत सर्विस कर सकते हो। तुम ब्राह्मण तो प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद हो। बताओ ब्राह्मण धर्म किसने स्थापन किया? तुम उन्हों का भी कल्याण कर सकते हो घर बैठे। जैसे अमरनाथ की यात्रा पर जाते हैं तो वे सिर्फ लिखत से इतना नहीं समझेंगे। वहाँ बैठ समझाना चाहिए। हम तुमको सच्ची अमरनाथ की कथा सुनायें। अमरनाथ तो एक को ही कहा जाता है। अमरनाथ अर्थात् जो अमरपुरी स्थापन करे। वह है सतयुग। ऐसे सर्विस करनी पड़े। वहाँ पैदल जाना पड़ता है। जो अच्छे-अच्छे बड़े-बड़े आदमी हों उनको जाकर समझाना चाहिए। संन्यासियों को भी तुम ज्ञान दे सकते हो। तुम सारी सृष्टि के कल्याणकारी हो। श्रीमत पर हम विश्व का कल्याण कर रहे हैं - बुद्धि में यह नशा रहना चाहिए। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-


    1) जब एकान्त वा फुर्सत मिलती है तो ज्ञान की अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स पर विचार सागर मंथन कर लिखना है। सबको सन्देश पहुँचाने वा सबका कल्याण करने की युक्ति रचनी है।

    2) विकर्मो से बचने के लिए देही-अभिमानी बन बाप को याद करना है। अभी कोई भी विकर्म नहीं करना है, इस जन्म के किये हुए विकर्म बापदादा को सच-सच सुनाने हैं।

    वरदान:- 

    सम्पन्नता द्वारा सन्तुष्टता का अनुभव करने वाले सदा हर्षित, विजयी भव

    जो सर्व खजानों से सम्पन्न है वही सदा सन्तुष्ट है। सन्तुष्टता अर्थात् सम्पन्नता। जैसे बाप सम्पन्न है इसलिए महिमा में सागर शब्द कहते हैं, ऐसे आप बच्चे भी मास्टर सागर अर्थात् सम्पन्न बनो तो सदा खुशी में नाचते रहेंगे। अन्दर खुशी के सिवाए और कुछ आ नहीं सकता। स्वयं सम्पन्न होने के कारण किसी से भी तंग नहीं होंगे। किसी भी प्रकार की उलझन या विघ्न एक खेल अनुभव होगा, समस्या मनोरंजन का साधन बन जायेगी। निश्चयबुद्धि होने के कारण सदा हर्षित और विजयी होंगे।

    स्लोगन:-

     नाज़ुक परिस्थितियों से घबराओ नहीं, उनसे पाठ पढ़कर स्वयं को परिपक्व बनाओ।

    ***Om Shanti***

    Brahma Kumaris Murli Hindi 24 August 2020


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