Brahma Kumaris Murli Hindi 12 July 2020

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 July 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 July 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 July 2020


    12-07-20 प्रात:मुरलीओम् शान्ति''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 22-02-86 मधुबन

    रूहानी सेवा - नि:स्वार्थ सेवा

    आज सर्व आत्माओं के विश्व कल्याणकारी बाप अपने सेवाधारी सेवा के साथी बच्चों को देख रहे हैं। आदि से बापदादा के साथ-साथ सेवाधारी बच्चे साथी बने और अन्त तक बापदादा ने गुप्त रूप में और प्रत्यक्ष रूप में बच्चों को विश्व सेवा के निमित्त बनाया। आदि में ब्रह्मा बाप और ब्राह्मण बच्चे गुप्त रूप में सेवा के निमित्त बनें। अभी सेवाधारी बच्चे शक्ति सेना और पाण्डव सेना विश्व के आगे प्रत्यक्ष रूप में कार्य कर रहे हैं। सेवा का उमंग-उत्साह मैजारिटी बच्चों में अच्छा दिखाई देता है। सेवा की लगन आदि से रही है और अन्त तक रहेगी। ब्राह्मण जीवन ही सेवा का जीवन है। ब्राह्मण आत्मायें सेवा के बिना जी नहीं सकती। माया से जिन्दा रखने का श्रेष्ठ साधन सेवा ही है। सेवा योगयुक्त भी बनाती है। लेकिन कौन सी सेवा? एक है सिर्फ मुख की सेवा, सुना हुआ सुनाने की सेवा। दूसरी है मन से मुख की सेवा। सुने हुए मधुर बोल का स्वरूप बन, स्वरूप से सेवा, नि:स्वार्थ सेवा। त्याग, तपस्या स्वरूप से सेवा। हद की कामनाओं से परे निष्काम सेवा। इसको कहा जाता है ईश्वरीय सेवा, रूहानी सेवा। जो सिर्फ मुख की सेवा है उसको कहते हैं सिर्फ स्वयं को खुश करने की सेवा। सर्व को खुश करने की सेवा मन और मुख की साथ-साथ होती है। मन से अर्थात् मनमनाभव स्थिति से मुख की सेवा।

    बापदादा आज अपने राइट हैण्डस सेवाधारी और लेफ्ट हैण्ड सेवाधारी दोनों को देख रहे थे। सेवाधारी दोनों ही हैं लेकिन राइट और लेफ्ट में अन्तर तो है ना। राइट हैण्ड सदा निष्काम सेवाधारी है। लेफ्ट हैण्ड कोई न कोई हद की इस जन्म के लिए सेवा का फल खाने की इच्छा से सेवा के निमित्त बनते हैं। वह गुप्त सेवाधारी और वह नामधारी सेवाधारी। अभी-अभी सेवा की अभी-अभी नाम हुआ - बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। लेकिन अभी किया अभी खाया। जमा का खाता नहीं। गुप्त सेवाधारी अर्थात् निष्काम सेवाधारी। तो एक है निष्काम सेवाधारी, दूसरे हैं नामधारी सेवाधारी। तो गुप्त सेवाधारी का चाहे वर्तमान समय नाम गुप्त रहता भी है लेकिन गुप्त सेवाधारी सफलता की खुशी में सदा भरपूर रहता है। कई बच्चों को संकल्प आता है कि हम करते भी हैं लेकिन नाम नहीं होता। और जो बाहर से नामधारी बन सेवा का शो दिखाते हैं, उनका नाम ज्यादा होता है। लेकिन ऐसे नहीं है जो निष्काम अविनाशी नाम कमाने वाले हैं उनके दिल का आवाज दिल तक पहुँचता हैं। छिपा हुआ नहीं रह सकता है। उसकी सूरत में, मूर्त में सच्चे सेवाधारी की झलक अवश्य दिखाई देती है। अगर कोई नामधारी यहाँ नाम कमा लिया तो आगे के लिए किया और खाया और खत्म कर दिया, भविष्य श्रेष्ठ नहीं, अविनाशी नहीं इसलिए बापदादा के पास सभी सेवाधारियों का पूरा रिकार्ड है। सेवा करते चलो, नाम हो यह संकल्प नहीं करो। जमा हो यह सोचो। अविनाशी फल के अधिकारी बनो। अविनाशी वर्से के लिए आये हो। सेवा का फल विनाशी समय के लिए खाया तो अविनाशी वर्से का अधिकार कम हो जायेगा इसलिए सदा विनाशी कामनाओं से मुक्त निष्काम सेवाधारी, राइट हैण्ड बन सेवा में बढ़ते चलो। गुप्त दान का महत्व, गुप्त सेवा का महत्व ज्यादा होता है। वह आत्मा सदा स्वयं में भरपूर होगी। बेपरवाह बादशाह होगी। नाम-शान की परवाह नहीं। इसमें ही बेपरवाह बादशाह होंगे अर्थात् सदा स्वमान के तख्त नशीन होंगे। हद के मान के तख्तनशीन नहीं। स्वमान के तख्तनशीन, अविनाशी तख्तनशीन। अटल अखण्ड प्राप्ति के तख्तनशीन। इसको कहते हैं विश्व कल्याणकारी सेवाधारी। कभी साधारण संकल्पों के कारण विश्व सेवा के कार्य में सफलता प्राप्त करने में पीछे नहीं हटना। त्याग और तपस्या से सदा सफलता को प्राप्त कर आगे बढ़ते रहना। समझा!

    सेवाधारी किसको कहा जाता है। तो सभी सेवाधारी हो? सेवा स्थिति को डगमग करे वह सेवा नहीं है। कई सोचते हैं सेवा में नीचे ऊपर भी बहुत होते हैं। विघ्न भी सेवा में आते हैं और निर्विघ्न भी सेवा ही बनाती है। लेकिन जो सेवा विघ्न रूप बने वह सेवा नहीं। उसको सच्ची सेवा नहीं कहेंगे। नामधारी सेवा कहेंगे। सच्ची सेवा सच्चा हीरा है। जैसे सच्चा हीरा कभी चमक से छिप नहीं सकता। ऐसे सच्चा सेवाधारी सच्चा हीरा है। चाहे झूठे हीरे में चमक कितनी भी बढ़िया हो लेकिन मूल्यवान कौन? मूल्य तो सच्चे का होता है ना। झूठे का तो नहीं होता। अमूल्य रत्न सच्चे सेवाधारी हैं। अनेक जन्म का मूल्य सच्चे सेवाधारी का है। अल्पकाल की चमक का शो नामधारी सेवा है इसलिए सदा सेवाधारी बन सेवा से विश्व कल्याण करते चलो। समझा - सेवा का महत्व क्या है। कोई कम नहीं है। हरेक सेवाधारी अपनी-अपनी विशेषता से विशेष सेवाधारी है। अपने को कम भी नहीं समझो और फिर करने से नाम की इच्छा भी नहीं रखो। सेवा को विश्व कल्याण के अर्पण करते चलो। वैसे भी भक्ति में जो गुप्त दानी पुण्य आत्मायें होती हैं वो यही संकल्प करती हैं कि सर्व के भले प्रति हो! मेरे प्रति हो, मुझे फल मिले, नहीं, सर्व को फल मिले। सर्व की सेवा में अर्पण हो। कभी अपनेपन की कामना नहीं रखेंगे। ऐसे ही सर्व प्रति सेवा करो। सर्व के कल्याण की बैंक में जमा करते चलो। तो सभी क्या बन जायेंगे? निष्काम सेवाधारी। अभी कोई ने नहीं पूछा तो 2500 वर्ष आपको पूछेंगे। एक जन्म में कोई पूछे या 2500 वर्ष कोई पूछे, तो ज्यादा क्या हुआ। वह ज्यादा है ना। हद के संकल्प से परे होकर बेहद के सेवाधारी बन बाप के दिलतख्तनशीन बेपरवाह बादशाह बन, संगमयुग की खुशियों को, मौजों को मनाते चलो। कभी भी कोई सेवा उदास करे तो समझो वह सेवा नहीं है। डगमग करे, हलचल में लाये तो वह सेवा नहीं है। सेवा तो उड़ाने वाली है। सेवा बेगमपुर का बादशाह बनाने वाली है। ऐसे सेवाधारी हो ना? बेपरवाह बादशाह, बेगमपुर के बादशाह। जिसके पीछे सफलता स्वयं आती है। सफलता के पीछे वह नहीं भागता। सफलता उसके पीछे-पीछे है। अच्छा - बेहद की सेवा के प्लैन बनाते हो ना। बेहद की स्थिति से बेहद की सेवा के प्लैन सहज सफल होते ही हैं। (डबल विदेशी भाई बहनों ने एक प्लैन बनया है जिसमें सभी आत्माओं से कुछ मिनट शान्ति का दान लेना है।)

    यह भी विश्व को महादानी बनाने का अच्छा प्लैन बनाया है ना! थोड़ा समय भी शान्ति के संस्कारों को चाहे मजबूरी से, चाहे स्नेह से इमर्ज तो करेंगे ना। प्रोग्राम प्रमाण भी करें तो भी जब आत्मा में शान्ति के संस्कार इमर्ज होते हैं तो शान्ति स्वधर्म तो है ही ना। शान्ति के सागर के बच्चे तो हैं ही। शान्तिधाम के निवासी भी हैं। तो प्रोग्राम प्रमाण भी वह इमर्ज होने से वह शान्ति की शक्ति उन्हों को आकर्षित करती रहेगी। जैसे कहते हैं ना - एक बारी जिसने मीठा चखकर देखा तो चाहे उसे मीठा मिले न मिले लेकिन वह चखा हुआ रस उसको बार-बार खींचता रहेगा। तो यह भी शान्ति की माखी (शहद) चखना है। तो यह शान्ति के संस्कार स्वत: ही स्मृति दिलाते रहेंगे इसलिए धीरे-धीरे आत्माओं में शान्ति की जागृति आती रहे, यह भी आप सभी शान्ति का दान दे उन्हों को भी दानी बनाते हो। आप लोगों का शुभ संकल्प है कि किसी भी रीति से आत्मायें शान्ति की अनुभूति करें। विश्व शान्ति भी आत्मिक शान्ति के आधार पर होगी ना। प्रकृति भी पुरूष के आधार से चलती है। यह प्रकृति भी तब शान्त होगी जब आत्माओं में शान्ति की स्मृति आये। चाहे किस विधि से भी करें लेकिन अशान्ति से तो परे हो गया ना। और एक मिनट की शान्ति भी उन्हों को अनेक समय के लिए आकर्षित करती रहेगी। तो अच्छा प्लैन बनाया है। यह भी जैसे कोई को थोड़ा-सा आक्सीजन दे करके शान्ति का श्वाँस चलाने का साधन है। शान्ति के श्वाँस से वास्तव में बेहोश पड़े हैं। तो यह साधन जैसे आक्सीजन है। उससे थोड़ा श्वाँस चलना शुरू होगा। कईयों का श्वाँस आक्सीजन से चलते-चलते चल भी पड़ता है। तो सभी उमंग उत्साह से पहले स्वयं पूरा ही समय शान्ति हाउस बन शान्ति की किरणें देना। तब आपके शान्ति की किरणों की मदद से, आपके शान्ति के संकल्प से उन्हों को भी संकल्प उठेगा और किसी भी विधि से करेंगे, लेकिन आप लोगों की शान्ति के वायब्रेशन उनको सच्ची विधि तक खींचकर ले आयेंगे। यह भी किसी को जो नाउम्मीद हैं उनको उम्मीद की झलक दिखाने का साधन है। नाउम्मीद में उम्मीद पैदा करने का साधन है। जहाँ तक हो सके वहाँ तक जो भी सम्पर्क में आये, जिसके भी सम्पर्क में आये तो उनको दो शब्दों में आत्मिक शान्ति, मन की शान्ति का परिचय देने का प्रयत्न जरूर करना क्योंकि हरेक अपना-अपना नाम एड तो करायेंगे ही। चाहे पत्र-व्यहार द्वारा करें लेकिन कनेक्शन में तो आयेंगे ना। लिस्ट में तो आयेगा ना। तो जहाँ तक हो सके शान्ति का अर्थ क्या है, वह दो शब्दों में भी स्पष्ट करने का प्रयत्न करना। एक मिनट में भी आत्मा में जागृति आ सकती है। समझा! प्लैन तो आप सबको भी पसन्द है ना। दूसरे तो काम उतारते हैं, आप काम करते हो। जब हैं ही शान्ति के दूत तो चारों ओर शान्ति दूतों की यह आवाज गूंजेगी और शान्ति के फरिश्ते प्रत्यक्ष होते जायेंगे। सिर्फ आपस में यह राय करना कि पीस के आगे कोई ऐसा शब्द हो जो दुनिया से थोड़ा न्यारा लगे। पीस मार्च या पीस यह शब्द तो दुनिया भी यूज़ करती है। तो पीस शब्द के साथ कोई विशेष शब्द हो जो युनिवर्सल भी हो और सुनने से ही लगे कि यह न्यारे हैं। तो इन्वेन्शन करना। बाकी अच्छी बातें हैं। कम से कम जितना समय यह प्रोग्राम चले उतना समय कुछ भी हो जाए - स्वयं न अशान्त होना है, न अशान्त करना है। शान्ति को नहीं छोड़ना है। पहले तो ब्राह्मण यह कंगन बांधेंगे ना! जब उन्हों को भी कंगन बांधते हो तो पहले ब्राह्मण जब अपने को कंगन बांधेंगे तब ही औरों को भी बांध सकेंगे। जैसे गोल्डन जुबली में सभी ने क्या संकल्प किया? हम समस्या स्वरूप नहीं बनेंगे, यही संकल्प किया ना। इसको ही बार-बार अन्डरलाइन करते रहना। ऐसे नहीं समस्या बनो और कहो कि समस्या स्वरूप नहीं बनेंगे। तो यह कंगन बांधना पसन्द है ना। पहले स्व, पीछे विश्व। स्व का प्रभाव विश्व पर पड़ता है। अच्छा|

    आज यूरोप का टर्न है। यूरोप भी बहुत बड़ा है ना। जितना बड़ा यूरोप है उतनी बड़ी दिल वाले हो ना। जैसे यूरोप का विस्तार है, जितना विस्तार है उतना ही सेवा में सार है। विनाश की चिनगारी कहाँ से निकली? यूरोप से निकली ना! तो जैसे विनाश का साधन यूरोप से निकला तो स्थापना के कार्य में विशेष यूरोप से आत्मायें प्रख्यात होनी ही है। जैसे पहले बाम्बस अन्डरग्राउण्ड बने, पीछे कार्य में लाये गये। ऐसे ऐसी आत्मायें भी तैयार हो रही हैं, अभी गुप्त हैं, अन्डरग्राउण्ड हैं लेकिन प्रख्यात हो भी रही हैं और होती भी रहेंगी। जैसे हर देश की अपनी-अपनी विशेषता होती है ना, तो यहाँ भी हर स्थान की अपनी विशेषता है। नाम बाला करने के लिए यूरोप का यंत्र काम में आयेगा। जैसे साइन्स के यंत्र कार्य में आये, ऐसे आवाज बुलन्द करने के लिए यूरोप से यंत्र निमित्त बनेंगे। नई विश्व तैयार करने के लिए यूरोप ही आपका मददगार बनेगा। यूरोप की चीज़ सदा मजबूत होती है। जर्मनी की चीज़ को सब महत्व देते हैं। तो ऐसे ही सेवा के निमित्त महत्व वाली आत्मायें प्रत्यक्ष होती रहेंगी। समझा। यूरोप भी कम नहीं है। अभी प्रत्यक्षता का पर्दा खुलने शुरू हो रहा है। समय पर बाहर आ जायेगा। अच्छा है, थोड़े समय में चारों ओर विस्तार अच्छा किया है, रचना अच्छी रची है। अभी इस रचना को पालना का पानी दे मजबूत बना रहे हैं। जैसे यूरोप की स्थूल चीजें मजबूत होती है वैसे आत्मायें भी विशेष अचल अडोल मजबूत होंगी। मेहनत मुहब्बत से कर रहे हो इसलिए मेहनत, मेहनत नहीं है लेकिन सेवा की लगन अच्छी है। जहाँ लगन है वहाँ विघ्न आते भी समाप्त हो, सफलता मिलती रहती है। वैसे टोटल यूरोप की अगर क्वालिटी देखो तो बहुत अच्छी है। ब्राह्मण भी आई. पी. हैं। वैसे भी आई.पी. हैं इसलिए यूरोप के निमित्त सेवाधारियों को और भी स्नेह भरी श्रेष्ठ पालना से मजबूत कर विशेष सेवा के मैदान में लाते रहो। वैसे धरनी फल देने वाली है। अच्छा यह तो विशेषता है जो बाप का बनते ही दूसरों को बनाने में लग जाते हैं। हिम्मत अच्छी रखते हैं और हिम्मत के कारण ही यह गिफ्ट है, जो सेवाकेन्द्र वृद्धि को पाते रहते हैं। क्वालिटी भी बढ़ाओ और क्वान्टिटी भी बढ़ाओ। दोनों का बेलेन्स हो। क्वालिटी की शोभा अपनी है और क्वान्टिटी की शोभा फिर अपनी है। दोनों ही चाहिए। सिर्फ क्वालिटी हो क्वान्टिटी न हो तो भी सेवा करने वाले थक जाते हैं इसलिए दोनों ही अपनी-अपनी विशेषता के काम के हैं। दोनों की सेवा जरूरी है क्योंकि 9 लाख तो बनाना है ना। 9 लाख में विदेश से कितने हुए हैं? (5 हजार) अच्छा- एक कल्प का चक्र तो पूरा किया। विदेश को लास्ट सो फास्ट का वरदान है तो भारत से फास्ट जाना है क्योंकि भारत वालों को धरनी बनाने में मेहनत होती है। विदेश में कलराठी जमीन नहीं है। यहाँ पहले बुरे को अच्छा बनाना पड़ता है। वहाँ बुरा सुना ही नहीं है तो बुरी बातें उल्टी बातें सुनी ही नहीं इसलिए साफ है। और भारत वालों को पहले स्लेट साफ करनी पड़ती है फिर लिखना पड़ता है। विदेश को समय प्रमाण वरदान है लास्ट सो फास्ट का इसलिए यूरोप कितने लाख तैयार करेगा? जैसे यह मिलियन मिनट का प्रोग्राम बनाया है, ऐसे ही प्रजा का बनाओ। प्रजा तो बन सकती हैं ना। मिलियन मिनट बना सकते हो तो मिलियन प्रजा नहीं बना सकते हो। और ही एक लाख कम 9 लाख ही कहते हैं! समझा- यूरोप वालों को क्या करना है। जोर शोर से तैयारी करो। अच्छा- डबल विदेशियों का डबल लक है, वैसे सभी को दो मुरलियाँ सुनने को मिलती आपको डबल मिलीं। कानफ्रेंस भी देखी, गोल्डन जुबली भी देखी। बड़ी-बड़ी दादियाँ भी देखी। गंगा, जमुना, गोदावरी, ब्रह्मापुत्रा सब देखी। सब बड़ी-बड़ी दादियाँ देखी ना! एक-एक दादी की एक-एक विशेषता सौगात में लेकर जाना तो सभी की विशेषता काम में आ जायेगी। विशेषताओं के सौगात की झोली भर करके जाना। इसमें कस्टम वाले नहीं रोकेंगे। अच्छा!

    सदा विश्व कल्याणकारी बन विश्व सेवा के निमित्त सच्चे सेवाधारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा सफलता के जन्म सिद्ध अधिकार को प्राप्त करने वाली विशेष आत्मायें, सदा स्व के स्वरूप द्वारा सर्व को स्वरूप की समृति दिलाने वाली समीप आत्मायें, सदा बेहद के निष्काम सेवाधारी बन उड़ती कला में उड़ने वाले, डबल लाइट बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

    वरदान:- 

    अपने फरिश्ते रूप द्वारा गति-सद्गति का प्रसाद बांटने वाले मास्टर गति-सद्गति दाता भव 

    वर्तमान समय विश्व की अनेक आत्मायें परिस्थितियों के वश चिल्ला रही हैं, कोई मंहगाई से, कोई भूख से, कोई तन के रोग से, कोई मन की अशान्ति से .... सबकी नजर टॉवर ऑफ पीस की तरफ जा रही है। सब देख रहे हैं हा-हाकार के बाद जय-जयकार कब होती है। तो अब अपने साकारी फरिश्ते रूप द्वारा विश्व के दु:ख दूर करो, मास्टर गति सद्गति दाता बन भक्तों को गति और सद्गति का प्रसाद बांटो।

    स्लोगन:-

    बापदादा के हर आदेश को प्रैक्टिकल में लाने वाले ही आदर्शमूर्त बनते हैं।

    ***Om Shanti***


    Brahma Kumaris Murli Hindi 12 July 2020


    No comments

    Note: Only a member of this blog may post a comment.