Brahma Kumaris Murli Hindi 9 February 2020

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 9 February 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 9 February 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 9 February 2020


    09-02-20 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 20-11-85 मधुबन

    संगमयुगी ब्राह्मणों का न्यारा, प्यारा श्रेष्ठ संसार

    आज ब्राह्मणों के रचयिता बाप अपने छोटे से अलौकिक सुन्दर संसार को देख रहे हैं। यह ब्राह्मण संसार सतयुगी संसार से भी अति न्यारा और अति प्यारा है। इस अलौकिक संसार की ब्राह्मण आत्मायें कितनी श्रेष्ठ हैं, विशेष हैं। देवता रूप से भी यह ब्राह्मण स्वरूप विशेष है। इस संसार की महिमा है, न्यारापन है। इस संसार की हर आत्मा विशेष है। हर आत्मा ही स्वराज्यधारी राजा है। हर आत्मा स्मृति की तिलकधारी, अविनाशी तिलकधारी, स्वराज्य तिलकधारी, परमात्म दिल तख्तनशीन है। तो सभी आत्मायें इस सुन्दर संसार की ताज, तख्त और तिलकधारी हैं! ऐसा संसार सारे कल्प में कभी सुना वा देखा! जिस संसार की हर ब्राह्मण आत्मा का एक बाप, एक ही परिवार, एक ही भाषा, एक ही नॉलेज अर्थात् ज्ञान, एक ही जीवन का श्रेष्ठ लक्ष्य, एक ही वृत्ति, एक ही दृष्टि, एक ही धर्म और एक ही ईश्वरीय कर्म है। ऐसा संसार जितना छोटा उतना प्यारा है। ऐसे सभी ब्राह्मण आत्मायें मन में गीत गाती हो कि हमारा छोटा-सा यह संसार अति न्यारा, अति प्यारा है। यह गीत गाती हो? यह संगमयुगी संसार देख-देख हर्षित होते हो? कितना न्यारा संसार है! इस संसार की दिनचर्या ही न्यारी है। अपना राज्य, अपने नियम, अपनी रीति-रसम, लेकिन रीति भी न्यारी है प्रीति भी प्यारी है। ऐसे संसार में रहने वाली ब्राह्मण आत्मायें हो ना! इसी संसार में रहते हो ना? कभी अपने संसार को छोड़ पुराने संसार में तो नहीं चले जाते हो! इसलिए पुराने संसार के लोग समझ नहीं सकते कि आखिर भी यह ब्राह्मण हैं क्या! कहते हैं ना - ब्रह्माकुमारियों की चाल ही अपनी है। ज्ञान ही अपना है। जब संसार ही न्यारा है तो सब नया और न्यारा ही होगा ना। सभी अपने आप को देखो कि नये संसार के नये संकल्प, नई भाषा, नये कर्म, ऐसे न्यारे बने हो! कोई भी पुराना-पन रह तो नहीं गया है! जरा भी पुराना-पन होगा तो वह पुरानी दुनिया की तरफ आकर्षित कर देगा और ऊंचे संसार से नीचे के संसार में चले जायेंगे। ऊंचा अर्थात् श्रेष्ठ होने के कारण स्वर्ग को ऊंचा दिखाते हैं और नर्क को नीचे दिखाते हैं। संगमयुगी स्वर्ग सतयुगी स्वर्ग से भी ऊंचा है क्योंकि अभी दोनों संसार के नॉलेजफुल बने हो। यहाँ अभी देखते हुए, जानते हुए न्यारे और प्यारे हो इसलिए मधुबन को स्वर्ग अनुभव करते हो। कहते हो ना स्वर्ग देखना हो तो अभी देखो। वहाँ स्वर्ग का वर्णन नहीं करेंगे। अभी फलक से कहते हो कि हमने स्वर्ग देखा है। चैलेन्ज करते हो कि स्वर्ग देखना हो तो यहाँ आकर देखो। ऐसे वर्णन करते हैं ना। पहले सोचते थे, सुनते थे कि स्वर्ग की परियाँ बहुत सुन्दर होती हैं। लेकिन किसने देखा नहीं। स्वर्ग में यह यह होता, सुना बहुत लेकिन अब स्वयं स्वर्ग के संसार में पहुँच गये। खुद ही स्वर्ग की परियाँ बन गये। श्याम से सुन्दर बन गये ना! पंख मिल गये ना। इतने न्यारे पंख ज्ञान और योग के मिले हैं जिससे तीनों ही लोकों का चक्र लगा सकते हो। साइंस वालों के पास भी ऐसे तीव्रगति का साधन नहीं है। सभी को पंख मिले हैं? कोई रह तो नहीं गया है। इस संसार का ही गायन है - अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के संसार में, इसलिए गायन है एक बाप मिला तो सब कुछ मिला। एक दुनिया नहीं लेकिन तीनों लोकों का मालिक बन जाते। इस संसार का गायन है सदा सभी झूलों में झूलते रहते। झूलों में झूलना भाग्य की निशानी कहा जाता है। इस संसार की विशेषता क्या है? कभी अतीन्द्रिय सुख के झूलों में झूलते, कभी खुशी के झूले में झूलते, कभी शान्ति के झूले में, कभी ज्ञान के झूले में झूलते। परमात्म गोदी के झूले में झूलते। परमात्म गोदी है याद की लवलीन अवस्था में झूलना। जैसे गोदी में समा जाते हैं। ऐसे परमात्म याद में समा जाते, लवलीन हो जाते। यह अलौकिक गोद सेकण्ड में अनेक जन्मों के दु:ख दर्द भुला देती है। ऐसे सभी झूलों में झूलते रहते हो!

    कभी स्वप्न में भी सोचा था कि ऐसे संसार के अधिकारी बन जायेंगे! बापदादा आज अपने प्यारे संसार को देख रहे हैं। यह संसार पसन्द है? प्यारा लगता है? कभी एक पाँव उस संसार में, एक पाँव इस संसार में तो नहीं रखते? 63 जन्म उस संसार को देख लिया, अनुभव कर लिया। क्या मिला? कुछ मिला वा गँवाया? तन भी गँवाया, मन का सुख-शान्ति गँवाया और धन भी गँवाया! सम्बन्ध भी गँवाया। जो बाप ने सुन्दर तन दिया, वह कहाँ गँवाया! अगर धन भी इकट्ठा करते हैं तो काला धन। स्वच्छ धन कहाँ गया? अगर है भी तो काम का नहीं है। कहने में करोड़पति हैं लेकिन दिखा सकते हैं? तो सब कुछ गँवाया फिर भी अगर बुद्धि जाए तो क्या कहेंगे! समझदार? इसलिए अपने इस श्रेष्ठ संसार को सदा स्मृति में रखो। इस संसार के इस जीवन की विशेषताओं को सदा स्मृति में रख समर्थ बनो। स्मृति स्वरूप बनो तो नष्टोमोहा स्वत: ही बन जायेंगे। पुरानी दुनिया की कोई भी चीज़ बुद्धि से स्वीकार नहीं करो। स्वीकार किया अर्थात् धोखा खाया। धोखा खाना अर्थात् दु:ख उठाना। तो कहाँ रहना है? श्रेष्ठ संसार में या पुराने संसार में? सदा अन्तर स्पष्ट इमर्ज रूप में रखो कि वह क्या और यह क्या! अच्छा!

    ऐसे छोटे से प्यारे संसार में रहने वाली विशेष ब्राह्मण आत्माओं को, सदा तख्तनशीन आत्माओं को, सदा झूलों में झूलने वाली आत्माओं को, सदा न्यारे और परमात्म प्यारे बच्चों को परमात्म याद, परमात्म प्यार और नमस्ते।

    सेवाधारी (टीचर्स) बहिनों से:- 

    सेवाधारी अर्थात् त्यागी तपस्वी आत्मायें। सेवा का फल तो सदा मिलता ही है लेकिन त्याग और तपस्या से सदा ही आगे बढ़ती रहेंगी। सदा अपने को विशेष आत्मायें समझ कर विशेष सेवा का सबूत देना है। यही लक्ष्य रखो जितना लक्ष्य मजबूत होगा उतनी बिल्डिंग भी अच्छी बनेगी। तो सदा सेवाधारी समझ आगे बढ़ो। जैसे बाप ने आपको चुना वैसे आप फिर प्रजा को चुनो। स्वयं सदा निर्विघ्न बन सेवा को भी निर्विघ्न बनाते चलो। सेवा तो सभी करते हैं लेकिन निर्विघ्न सेवा हो, इसी में नम्बर मिलते हैं। जहाँ भी रहते हो वहाँ हर स्टूडेन्ट निर्विघ्न हो, विघ्नों की लहर न हो। शक्तिशाली वातावरण हो। इसको कहते हैं निर्विघ्न आत्मा। यही लक्ष्य रखो - ऐसा याद का वातावरण हो जो विघ्न आ न सके। किला होता है तो दुश्मन आ नहीं सकता। तो निर्विघ्न बन निर्विघ्न सेवाधारी बनो। अच्छा!

    अलग-अलग ग्रुप से:-


    1. सेवा करो और सन्तुष्टता लो। सिर्फ सेवा नहीं करना लेकिन ऐसी सेवा करो जिसमें सन्तुष्टता हो। सभी की दुआयें मिलें। दुआओं वाली सेवा सहज सफलता दिलाती है। सेवा तो प्लैन प्रमाण करनी ही है और खूब करो। खुशी उमंग से करो लेकिन यह ध्यान जरूर रखो - जो सेवा की उसमें दुआयें प्राप्त हुई? या सिर्फ मेहनत की? जहाँ दुआयें होगी वहाँ मेहनत नहीं होगी। तो अभी यही लक्ष्य रखो कि जिससे भी सम्पर्क में आयें उसकी दुआयें लेते जाएं। जब सबकी दुआयें लेंगे तब आधाकल्प आपके चित्र दुआयें देते रहेंगे। आपके चित्र से दुआयें लेने आते हैं ना। देवी या देवता के पास दुआयें लेने जाते हैं ना। तो अभी सर्व की दुआयें जमा करते हो तब चित्रों द्वारा भी देते रहते हो। फंक्शन करो, रैली करो.. वी. आई. पीज, आई पीज की सर्विस करो, सब कुछ करो लेकिन दुआओं वाली सेवा करो। (दुआयें लेने का साधन क्या है?) हाँ जी का पाठ पक्का हो। कभी भी किसी को ना ना करके हिम्मतहीन नहीं बनाओ। मानो अगर कोई रांग भी हो तो उसको सीधा रांग नहीं कहो। पहले उसे दिलासा दो, हिम्मत दिलाओ। उसको हाँ करके पीछे समझाओ तो वह समझ जायेगा। पहले से ही ना ना कहेंगे तो उसकी जो थोड़ी भी हिम्मत होगी वह खत्म हो जायेगी। रांग तो हो भी सकता है लेकिन रांग को रांग कहेंगे तो वह अपने को रांग कभी नहीं समझेगा, इसलिए पहले उसे हाँ कहो, हिम्मत बढ़ाओ फिर वह स्वयं जजमेन्ट कर लेगा। रिगार्ड दो। यह विधि सिर्फ अपना लो। रांग भी हो तो पहले अच्छा कहो, पहले उसको हिम्मत आये। कोई गिरा हुआ हो तो क्या उसको और धक्का देंगे या उठायेंगे? ... उसे सहारा देकर पहले खड़ा करो। इसको कहते हैं उदारता। सहयोगी बनने वालों को सहयोगी बनाते चलो। तुम भी आगे मैं भी आगे। साथ-साथ चलते चलो। हाथ मिलाकर चलो तो सफलता होगी और सन्तुष्टता की दुआयें मिलेंगी। ऐसी दुआयें लेने में महान बनो तो सेवा में स्वत: महान हो जायेंगे।

    सेवाधारियों से:-

     सेवा करते हुए सदा अपने को कर्मयोगी स्थिति में स्थित रहने का अनुभव करते हो कि कर्म करते हुए याद कम हो जाती है और कर्म में बुद्धि ज्यादा रहती है! क्योंकि याद में रहकर कर्म करने से कर्म में कभी थकावट नहीं होती। याद में रहकर कर्म करने वाले कर्म करते सदा खुशी का अनुभव करेंगे। कर्मयोगी बन कर्म अर्थात् सेवा करते हो ना! कर्मयोगी के अभ्यासी सदा ही हर कदम में वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बनाते हैं। भविष्य खाता सदा भरपूर और वर्तमान भी सदा श्रेष्ठ। ऐसे कर्मयोगी बन सेवा का पार्ट बजाते हो, भूल तो नहीं जाता? मधुबन में सेवाधारी हैं तो मधुबन स्वत: ही बाप की याद दिलाता है। सर्व शक्तियों का खजाना जमा किया है ना! इतना जमा किया है जो सदा भरपूर रहेंगे। संगमयुग पर बैटरी सदा चार्ज है। द्वापर से बैटरी ढीली होती। संगम पर सदा भरपूर, सदा चार्ज है। तो मधुबन में बैटरी भरने नहीं आते हो, स्वहेज मनाने आते हो। बाप और बच्चों का स्नेह है इसलिए मिलना, सुनना, यही संगमयुग के स्वहेज हैं। अच्छा

    यूथ रैली की सफलता के प्रति बापदादा के वरदानी महावाक्य


    यूथ विंग भले बनाओ। जो भी करो - सन्तुष्टता हो, सफलता हो। बाकी तो सेवा के लिए ही जीवन है। अपने उमंग से अगर कोई कार्य करते हैं तो उसमें कोई हर्जा नहीं। प्रोग्राम है, करना है तो वह दूसरा रूप हो जाता है। लेकिन अपने उमंग उत्साह से करने चाहते हैं तो कोई हर्जा नहीं। जहाँ भी जायेंगे वहाँ जो भी मिलेंगे जो भी देखेंगे तो सेवा है ही। सिफ बोलना ही सर्विस नहीं होती लेकिन अपना चेहरा सदा हर्षित हो। रूहानी चेहरा भी सेवा करता है। लक्ष्य रखें उमंग-उत्साह से खुशी-खुशी से रूहानी खुशी की झलक दिखाते हुए आगे बढ़ें। सिर्फ जबरदस्ती कोई को नहीं करना है। प्रोग्राम बना है तो करना ही है, ऐसी कोई बात नहीं है, अपना उमंग-उत्साह है तो करे, अच्छा है।

    अगर कोई में उमंग नहीं है तो बंधे हुए नहीं हैं। हर्जा नहीं है। वैसे जो लक्ष्य था इस गोल्डन जुबली तक सब एरिया को कवर करने का तो जैसे वह पैदल चलने वाले अपने ग्रुप में आयेंगे वैसे बस द्वारा आने वाले भी हों। हर जोन वा हर एरिया में बस द्वारा सर्विस करते हुए दिल्ली पहुँच सकते हैं। दो प्रकार के ग्रुप बना दो। एक बस द्वारा आते रहें और सेवा करते आवें और एक पैदल द्वारा। डबल हो जायेगा। कर सकते हैं, यूथ हैं ना। उनको कहाँ न कहाँ शक्ति तो लगानी ही है। सेवा में शक्ति लगेगी तो अच्छा है। इसमें दोनों ही भाव सिद्ध हो जाएं - सेवा भी सिद्ध हो और नाम भी रखा है पदयात्रा तो वह भी सिद्ध हो जाए। हर स्टेट वाले अगर उनका (पद-यात्रियों का) इन्टरव्यू लेने का पहले से ही प्रबन्ध रखेंगे तो ऑटोमेटिकली आवाज फैलेगा। लेकिन सिर्फ यह जरूर होना चाहिए कि रूहानी यात्रा दिखाई दे, पदयात्रा सिर्फ नहीं दिखाई दे, रूहानियत और खुशी की झलक हो। तो नवीनता दिखाई देगी। साधारण जैसे औरों की यात्रा निकलती है, वैसे नहीं लगे लेकिन ऐसे लगे यह डबल यात्री हैं, एक यात्रा नहीं करते हैं। याद की यात्रा वाले भी हैं, पद यात्रा वाले भी हैं। डबल यात्रा का प्रभाव चेहरे से दिखाई दे, तो अच्छा है।

    विश्व के राजनेताओं के प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश

    विश्व के हर एक राज्य नेता अपने देश को वा देशवाशियों को प्रगति की ओर ले जाने की शुभ भावना, शुभकामना से अपने-अपने कार्य में लगे हुए हैं। लेकिन भावना बहुत श्रेष्ठ है, प्रत्यक्ष प्रमाण जितना चाहते हैं उतना नहीं होता - यह क्यों? क्योंकि आज की जनता वा बहुत से नेताओं के मन की भावनायें सेवा भाव, प्रेम भाव के बजाए स्वार्थ भाव, ईर्ष्या भाव में बदल गई है, इसलिए इस फाउण्डेशन को समाप्त करने के लिए प्राकृतिक शक्ति, वैज्ञानिक शक्ति वर्ल्डली नॉलेज की शक्ति, राज्य के अथॉरिटी की शक्ति द्वारा तो अपने प्रयत्न किये हैं लेकिन वास्तविक साधन स्प्रीचुअल पावर है, जिससे ही मन की भावना सहज बदल सकती है, उस तरफ अटेन्शन कम है, इसलिए बदली हुई भावनाओं का बीज नहीं समाप्त होता। थोड़े समय के लिए दब जाता है। लेकिन समय प्रमाण और ही उग्र रूप में प्रत्यक्ष हो जाता है। इसलिए स्प्रीचुअल बाप का स्प्रीचुअल बच्चों, आत्माओं प्रति सन्देश है कि सदा अपने को प्रिट (सोल) समझ स्प्रीचुअल बाप से सम्बन्ध जोड़ स्प्रीचुअल शक्ति ले अपने मन के नेता बनो तब राज्य नेता बन औरों के भी मन की भावनाओं को बदल सकेंगे। आपके मन का संकल्प और जनता का प्रैक्टिकल कर्म एक हो जायेगा। दोनों के सहयोग से सफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण अनुभव होगा। याद रहे कि सेल्फ रूल अधिकारी ही सदा योग्य राजनेता के रूल अधिकारी बन सकते हैं। और स्वराज्य आपका स्प्रीचुअल फादरली बर्थ राइट है। इस बर्थ राइट की शक्ति से सदा राइटियस की शक्ति भी अनुभव करेंगे और सफल रहेंगे।

    वरदान:- 

    संगठन में रहते लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले सदा शक्तिशाली आत्मा भव

    संगठन में एक दो को देखकर उमंग उत्साह भी आता है तो अलबेलापन भी आता है। सोचते हैं यह भी करते हैं, हमने भी किया तो क्या हुआ, इसलिए संगठन से श्रेष्ठ बनने का सहयोग लो। हर कर्म करने के पहले यह विशेष अटेन्शन वा लक्ष्य हो कि मुझे स्वयं को सम्पन्न बनाकर सैम्पुल बनना है। मुझे करके औरों को कराना है। फिर बार-बार इस लक्ष्य को इमर्ज करो। लक्ष्य और लक्षण को मिलाते चलो तो शक्तिशाली हो जायेंगे।

    स्लोगन:- 

    लास्ट में फास्ट जाना है तो साधारण और व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं गंवाओ।


    ***Om Shanti***

    Brahma Kumaris Murli Hindi 9 February 2020

    No comments

    Note: Only a member of this blog may post a comment.