Brahma Kumaris Murli Hindi 1 March 2020

bk murli today

Posted by: BK Prerana

BK Prerana is executive editor at bkmurlis.net and covers daily updates from Brahma Kumaris Spiritual University. Prerana updates murlis in English and Hindi everyday.
Twitter: @bkprerana | Facebook: @bkkumarisprerana
Share:






    Brahma Kumaris Murli Hindi 1 March 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 1 March 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 1 March 2020


    01-03-20 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 02-12-85 मधुबन

    बन्धनोंसेमुक्तहोनेकीयुक्ति - रूहानीशक्ति


    आज बापदादा अपने रूहानी बच्चों की रूहानियत की शक्ति देख रहे थे। हर एक रूहानी बच्चे ने रूहानी बाप से रूहानी शक्ति का सम्पूर्ण अधिकार बच्चे होने के नाते प्राप्त तो किया ही है। लेकिन प्राप्ति स्वरूप कहाँ तक बने हैं, यह देख रहे थे। सभी बच्चे हर रोज़ स्वयं को रूहानी बच्चा कह, रूहानी बाप को यादप्यार का रिटर्न मुख से या मन से यादप्यार वा नमस्ते के रूप में देते हैं। रिटर्न देते हो ना! इसका रहस्य यह हुआ कि रोज़ रूहानी बाप रूहानी बच्चे कह रूहानी शक्ति का वास्तविक स्वरूप याद दिलाते हैं क्योंकि इस ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही है रूहानियत। इस रूहानियत की शक्ति से स्वयं को वा सर्व को परिवर्तन करते हो। मुख्य फाउन्डेशन ही यह रूहानी शक्ति है। इस शक्ति से ही अनेक प्रकार के जिस्मानी बन्धनों से मुक्ति मिलती है। बापदादा देख रहे थे कि अब तक भी कई सूक्ष्म बन्धन जो स्वयं भी अनुभव करते हैं कि इस बन्धन से मुक्ति होनी चाहिए। लेकिन मुक्ति पाने की युक्ति प्रैक्टिकल में ला नहीं सकते। कारण? रूहानी शक्ति हर कर्म में यूज़ करना नहीं आता है। एक ही समय, संकल्प, बोल और कर्म तीनों को साथ-साथ शक्तिशाली बनाना पड़े। लेकिन लूज़ किसमें हो जाते हैं? एक तरफ संकल्प को शक्तिशाली बनाते हैं तो वाणी में कुछ लूज़ हो जाते हैं। कब वाणी को शक्तिशाली बनाते हैं, तो कर्म में लूज़ हो जाते हैं। लेकिन यह तीनों ही रूहानी शक्तिशाली एक ही समय पर बनावें तो यही युक्ति है मुक्ति की। जैसे सृष्टि की रचना में तीन कार्य - स्थापना, पालना और विनाश तीनों ही आवश्यक हैं। ऐसे सर्व बन्धनों से मुक्त होने की युक्ति मन्सा, वाचा, कर्मणा तीनों में रूहानी शक्ति साथ-साथ आवश्यक है। कभी मन्सा को सम्भालते तो वाचा में कमी पड़ जाती। फिर कहते सोचा तो ऐसे नहीं था, पता नहीं यह क्यों हो गया। तीनों तरफ पूरा अटेन्शन चाहिए। क्यों? यह तीनों ही साधन सम्पन्न स्थिति को और बाप को प्रत्यक्ष करने वाले हैं। मुक्ति पाने के लिए तीनों में रूहानियत अनुभव होनी चाहिए। जो तीनों में युक्तियुक्त हैं वो ही जीवनमुक्त हैं। तो बापदादा सूक्ष्म बन्धनों को देख रहे थे। सूक्ष्म बन्धन में भी विशेष इन तीनों का कनेक्शन है। बन्धन की निशानी-

    बन्धन वाला सदा ही परवश होता है। बन्धन वाला अपने को आन्तरिक खुशी वा सुख में सदा अनुभव नहीं करेगा। जैसे लौकिक दुनिया में अल्पकाल के साधन अल्पकाल की खुशी वा सुख की अनुभूति कराते हैं लेकिन आन्तरिक वा अविनाशी अनुभूति नहीं होती। ऐसे सूक्ष्म बन्धन में बंधी हुई आत्मा इस ब्राह्मण जीवन में भी थोड़े समय के लिए सेवा का साधन, संगठन की शक्ति का साधन, कोई न कोई प्राप्ति के साधन, श्रेष्ठ संग का साधन इन साधनों के आधार से चलते हैं, जब तक साधन हैं तब तक खुशी और सुख की अनुभूति करते हैं। लेकिन साधन समाप्त हुआ तो खुशी भी समाप्त। सदा एकरस नहीं रहते। कभी खुशी में ऐसा नाचता रहेगा, उस समय जैसेकि उन जैसा कोई है ही नहीं। लेकिन रूकेगा फिर ऐसा जो छोटा-सा पत्थर भी पहाड़ समान अनुभव करेगा क्योंकि ओरीज्नल शक्ति न होने के कारण साधन के आधार पर खुशी में नाचते। साधन निकल गया तो कहाँ नाचेगा? इसलिए आन्तरिक रूहानी शक्ति तीनों रूपों में सदा साथ-साथ आवश्यक है। मुख्य बन्धन है - मन्सा संकल्प की कन्ट्रोलिंग पावर नहीं। अपने ही संकल्पों के वश होने के कारण परवश का अनुभव करते हैं। जो स्वयं के संकल्पों के बन्धनों में है वह बहुत समय इसी में बिजी रहता है। जैसे आप लोग भी कहते हो ना कि हवाई किले बनाते हैं। किले बनाते और बिगाड़ते हैं। बहुत लम्बी दीवार खड़ी करते हैं। इसीलिए हवाई किला कहा जाता है। जैसे भक्ति में पूजा कर, सजा-धजा करके फिर डुबो देते हैं ना, ऐसे संकल्प के बन्धन में बंधी हुई आत्मा बहुत कुछ बनाती और बहुत कुछ बिगाड़ती है। स्वयं ही इस व्यर्थ कार्य से थक भी जाते हैं, दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। और कभी अभिमान में आकर अपनी गलती दूसरे पर भी लगाते रहते। फिर भी समय बीतने पर अन्दर समझते हैं, सोचते हैं कि यह ठीक नहीं किया। लेकिन अभिमान के परवश होने के कारण, अपने बचाव के कारण, दूसरे का ही दोष सोचते रहते हैं। सबसे बड़ा बन्धन यह मन्सा का बन्धन है, जो बुद्धि को ताला लग जाता है इसलिए कितनी भी समझाने की कोशिश करो लेकिन उनको समझ में नहीं आयेगा। मन्सा बन्धन की विशेष निशानी है, महसूसता शक्ति समाप्त हो जाती है इसलिए इस सूक्ष्म बन्धन को समाप्त करने के बिना कभी भी आन्तरिक खुशी, सदा के लिए अतीन्द्रिय सुख अनुभव नहीं कर सकेंगे।

    संगमयुग की विशेषता ही है - अतीन्द्रिय सुख में झूलना, सदा खुशी में नाचना। तो संगमयुगी बनकर अगर इस विशेषता का अनुभव नहीं किया तो क्या कहेंगे? इसलिए स्वयं को चेक करो कि किसी भी प्रकार के संकल्पों के बन्धन में तो नहीं हैं? चाहे व्यर्थ संकल्पों का बन्धन, चाहे ईर्ष्या द्वेष के संकल्प, चाहे अलबेलेपन के संकल्प, चाहे आलस्य के संकल्प, किसी भी प्रकार के संकल्प मन्सा बन्धन की निशानी हैं। तो आज बापदादा बन्धनों को देख रहे थे। मुक्त आत्मायें कितनी हैं?

    मोटी-मोटी रस्सियाँ तो खत्म हो गई हैं। अभी यह महीन धागे हैं। हैं पतले लेकिन बन्धन में बांधनें में होशियार हैं। पता ही नहीं पड़ता कि हम बन्धन में बंध रहे हैं क्योंकि यह बन्धन अल्पकाल का नशा भी चढ़ाता है। जैसे विनाशी नशे वाले कभी अपने को नीचा नहीं समझते। होगा नाली में समझेगा महल में। होगा खाली हाथ, अपने को समझेगा राजा हैं। ऐसे इस नशे वाला भी कभी अपने को रांग नहीं समझेगा। सदा अपने को या तो राइट सिद्ध करेगा वा अलबेलापन दिखायेगा। यह तो होता ही है, ऐसे तो चलता ही है इसलिए आज सिर्फ मन्सा बन्धन बताया। फिर वाचा और कर्म का भी सुनायेंगे। समझा!

    रूहानी शक्ति द्वारा मुक्ति प्राप्त करते चलो। संगमयुग पर जीवनमुक्ति का अनुभव करना ही भविष्य जीवनमुक्त प्रालब्ध पाना है। गोल्डन जुबली में तो जीवनमुक्त बनना है ना कि सर्फ गोल्डन जुबली मनानी है। बनना ही मनाना है। दुनिया वाले सिर्फ मनाते हैं, यहाँ बनाते हैं। अभी जल्दी-जल्दी तैयार हो तब सभी आपकी मुक्ति से मुक्त बन जायेंगे। साइन्स वाले भी अपने बनाये हुए साधनों के बन्धन में बंध गये हैं। नेतायें भी देखो बचने चाहते हैं लेकिन कितने बंधे हुए हैं। सोचते हुए भी कर नहीं पाते तो बन्धन हुआ ना। सभी आत्माओं को भिन्न-भिन्न बन्धनों से मुक्त कराने वाले स्वयं मुक्त बन सभी को मुक्त बनाओ। सभी मुक्ति, मुक्ति कह चिल्ला रहे हैं। कोई गरीबी से मुक्ति चाहते हैं। कोई गृहस्थी से मुक्ति चाहते हैं। लेकिन सभी का आवाज एक ही मुक्ति का है। तो अभी मुक्ति दाता बन मुक्ति का रास्ता बताओ वा मुक्ति का वर्सा दो। आवाज तो पहुँचता है ना कि समझते हो यह तो बाप का काम है। हमारा क्या है। प्रालब्ध आपको पानी है, बाप को नहीं पानी है। प्रजा वा भक्त भी आपको चाहिए। बाप को नहीं चाहिए। जो आपके भक्त होंगे वह बाप के स्वत: ही बन जायेंगे क्योंकि द्वापर में आप लोग ही पहले भक्त बनेंगे। पहले बाप की पूजा शुरू करेंगे। तो आप लोगों को सभी फॉलो अभी करेंगे इसलिए अभी क्या करना है? पुकार सुनो। मुक्ति दाता बनो। अच्छा!

    सदा रूहानी शक्ति की युक्ति से मुक्ति प्राप्त करने वाले, सदा स्वयं को सूक्ष्म बन्धनों से मुक्त कर मुक्ति दाता बनने वाले, सदा स्वयं को आन्तरिक खुशी, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति में आगे से आगे बढ़ाने वाले, सदा सर्व प्रति मुक्त आत्मा बनाने की शुभ भावना वाले, ऐसे रूहानी शक्तिशाली बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

    पार्टियोंसे:-

     सुनने के साथ-साथ स्वरूप बनने में भी शक्तिशाली आत्मायें हो ना। सदैव अपने संकल्पों में हर रोज़ कोई न कोई स्व के प्रति औरों के प्रति उमंग-उत्साह का संकल्प रखो। जैसे आजकल के समय में अखबार में या कई स्थानों पर “आज का विचार'' विशेष लिखते हैं ना। ऐसे रोज़ मन का संकल्प कोई न कोई उमंग-उत्साह का इमर्ज रूप में लाओ। और उसी संकल्प से स्वयं में भी स्वरूप बनाओ और दूसरों की सेवा में भी लगाओ तो क्या होगा? सदा ही नया उमंग-उत्साह रहेगा। आज यह करेंगे, आज यह करेंगे। जैसे कोई विशेष प्रोग्राम होता है तो उमंग-उत्साह क्यों आता है? प्लैन बनाते हैं ना - यह करेंगे फिर यह करेंगे। इससे विशेष उमंग-उत्साह आता है। ऐसे रोज़ अमृतवेले विशेष उमंग-उत्साह का संकल्प करो और फिर चेक भी करो तो अपनी भी सदा के लिए उत्साह वाली जीवन होगी और उत्साह दिलाने वाले भी बन जायेंगे। समझा - जैसे मनोरंजन प्रोग्राम होते हैं ऐसे यह रोज़ का मन का मनोरंजन प्रोग्राम हो। अच्छा!

    2. सदा शक्तिशाली याद में आगे बढ़ने वाली आत्मायें हो ना? शक्तिशाली याद के बिना कोई भी अनुभव हो नहीं सकता। तो सदा शक्तिशाली बन आगे बढ़ते चलो। सदा अपनी शक्ति अनुसार ईश्वरीय सेवा में लग जाओ और सेवा का फल पाओ। जितनी शक्ति है, उतना सेवा में लगाते चलो। चाहे तन से, चाहे मन से, चाहे धन से। एक का पदमगुणा मिलना ही है। अपने लिए जमा करते हो। अनेक जन्मों के लिए जमा करना है। एक जन्म में जमा करने से 21 जन्म के लिए मेहनत से छूट जाते हो। इस राज़ को जानते हो ना? तो सदा अपने भविष्य को श्रेष्ठ बनाते चलो। खुशी-खुशी से अपने को सेवा में आगे बढ़ाते चलो। सदा याद द्वारा एकरस स्थिति से आगे बढ़ो।

    3. याद की खुशी से अनेक आत्माओं को खुशी देने वाले सेवाधारी हो ना। सच्चे सेवाधारी अर्थात् सदा स्वयं भी लगन में मगन रहें और दूसरों को भी लगन में मगन करने वाले। हर स्थान की सेवा अपनी-अपनी है। फिर भी अगर स्वयं लक्ष्य रख आगे बढ़ते हैं तो यह आगे बढ़ना सबसे खुशी की बात है। वास्तव में यह लौकिक स्टडी आदि सब विनाशी हैं, अविनाशी प्राप्ति का साधन सिर्फ यह नॉलेज है। ऐसे अनुभव करते हो ना। देखो, आप सेवाधारियों को ड्रामा में कितना गोल्डन चान्स मिला हुआ है। इसी गोल्डन चांस को जितना आगे बढ़ाओ उतना आपके हाथ में है। ऐसा गोल्डन चांस सभी को नहीं मिलता है। कोटों में कोई को ही मिलता है। आपको तो मिल गया। इतनी खुशी रहती है? दुनिया में जो किसी के पास नहीं वह हमारे पास है। ऐसे खुशी में सदा स्वयं भी रहो और दूसरों को भी लाओ। जितना स्वयं आगे बढ़ेंगे उतना औरों को बढ़ायेंगे। सदा आगे बढ़ने वाली, यहाँ वहाँ देखकर रुकने वाली नहीं। सदा बाप और सेवा सामने हो, बस। फिर सदा उन्नति को पाती रहेंगी। सदा अपने को बाप के सिकीलधे हैं, ऐसा समझकर चलो।

    नौकरीकरनेवालीकुमारियोंसे


    1. सभी का लक्ष्य तो श्रेष्ठ है ना। ऐसे तो नहीं समझती हो कि दोनों तरफ चलती रहेंगी क्योंकि जब कोई बन्धन होता तो दोनों तरफ चलना दूसरी बात है। लेकिन निर्बन्धन आत्माओं का दोनों तरफ रहना अर्थात् लटकना है। कोई-कोई के सरकमस्टांस होते हैं तो बापदादा भी छुट्टी देते हैं लेकिन मन का बन्धन है तो फिर यह लटकना हुआ। एक पांव यहाँ हुआ, एक पांव वहाँ हुआ तो क्या होगा? अगर एक नांव में एक पांव रखो, दूसरी नांव में दूसरा पांव रखो तो क्या हालत होगी? परेशान होंगे ना इसलिए दोनों पांव एक नांव में। सदा अपनी हिम्मत रखो। हिम्मत रखने से सहज ही पार हो जायेंगी, सदा यह याद रखो कि मेरे साथ बाबा है। अकेले नहीं हैं, तो जो भी कार्य करने चाहो कर सकती हो।

    2. कुमारियों का संगमयुग पर विशेष पार्ट है, ऐसी विशेष पार्टधारी अपने को बनाया है? या अभी तक साधारण हो? आपकी विशेषता क्या है? विशेषता है सेवाधारी बनना। जो सेवाधारी है, वह विशेष हैं। सेवाधारी नहीं हो तो साधारण हो गई। क्या लक्ष्य रखा है? संगमयुग पर ही यह चांस मिलता है। अगर अभी यह चांस नहीं लिया तो सारे कल्प में नहीं मिलेगा। संगमयुग को ही विशेष वरदान है। लौकिक पढ़ाई पढ़ते भी लगन इस पढ़ाई में हो। तो वह पढ़ाई विघ्न रूप नहीं बनेगी। तो सभी अपना भाग्य बनाते आगे बढ़ो। जितना अपने भाग्य का नशा होगा, उतना सहज माया-जीत बन जायेंगे। यह रूहानी नशा है। सदा अपने भाग्य के गीत गाती रहो तो गीत गाते-गाते अपने राज्य में पहुँच जायेंगी।

    वरदान:-  स्वयंकीसर्वकमजोरियोंकोदानकीविधिसेसमाप्तकरनेवालेदाता, विधाताभव

    भक्ति में यह नियम होता है कि जब कोई वस्तु की कमी होती है तो कहते हैं दान करो। दान करने से देना-लेना हो जाता है। तो किसी भी कमजोरी को समाप्त करने के लिए दाता और विधाता बनो। यदि आप औरों को बाप का खजाना देने के निमित्त सहारा बनेंगे तो कमजोरियों का किनारा स्वत: हो जायेगा। अपने दाता-विधातापन के शक्तिशाली संस्कार को इमर्ज करो तो कमजोर संस्कार स्वत:समाप्त हो जायेगा।

    स्लोगन:- 

    अपने श्रेष्ठ भाग्य के गुण गाते रहो-कमजोरियों के नहीं।


    ***Om Shanti***

    Brahma Kumaris Murli Hindi 1 March 2020


    No comments

    Note: Only a member of this blog may post a comment.