Brahma Kumaris Murli Hindi 25 January 2020

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 January 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 January 2020

    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 January 2020


    25-01-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन

    “मीठे बच्चे - तुम्हें विकर्मों की सज़ा से मुक्त होने का पुरूषार्थ करना है, इस अन्तिम जन्म में सब हिसाब-किताब चुक्तू कर पावन बनना है''

    प्रश्नः- 

    धोखेबाज माया कौन-सी प्रतिज्ञा तुड़वाने की कोशिश करती है?

    उत्तर:- 

    तुमने प्रतिज्ञा की है - कोई भी देहधारी से हम दिल नहीं लगायेंगे। आत्मा कहती है हम एक बाप को ही याद करेंगे, अपनी देह को भी याद नहीं करेंगे। बाप, देह सहित सबका सन्यास कराते हैं। परन्तु माया यही प्रतिज्ञा तुड़वाती है। देह में लगाव हो जाता है। जो प्रतिज्ञा तोड़ते हैं उन्हें सजायें भी बहुत खानी पड़ती हैं।

    गीत:-

     तुम्हीं हो माता-पिता तुम्हीं हो........ 

    ओम् शान्ति। 

    ऊंच ते ऊंच भगवान की महिमा भी की है और फिर ग्लानि भी की है। अब ऊंच ते ऊंच बाप खुद आकर परिचय देते हैं और फिर जब रावण राज्य शुरू होता है तो अपनी ऊंचाई दिखाते हैं। भक्ति मार्ग में भक्ति का ही राज्य है इसलिए कहा जाता है रावण राज्य। वह राम राज्य, यह रावण राज्य। राम और रावण की ही भेंट की जाती है। बाकी वह राम तो त्रेता का राजा हुआ, उनके लिए नहीं कहा जाता। रावण है आधाकल्प का राजा। ऐसे नहीं कि राम आधाकल्प का राजा है। नहीं, यह डिटेल में समझने की बातें हैं। बाकी वह तो बिल्कुल सहज बात है समझने की। हम सब भाई-भाई हैं। हम सबका वह बाप एक निराकार है। बाप को मालूम है इस समय हमारे सब बच्चे रावण की जेल में हैं। काम चिता पर बैठ सब काले हो गये हैं। यह बाप जानते हैं। आत्मा में ही सारी नॉलेज है ना। इसमें भी सबसे जास्ती महत्व देना होता है आत्मा और परमात्मा को जानने का। छोटी-सी आत्मा में कितना पार्ट नूंधा हुआ है जो बजाती रहती है। देह-अभिमान में आकर पार्ट बजाते हैं तो स्वधर्म को भूल जाते हैं। अब बाप आकर आत्म अभिमानी बनाते हैं क्योंकि आत्मा ही कहती है कि हम पावन बनें। तो बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। आत्मा पुकारती है हे परमपिता, हे पतित-पावन, हम आत्मायें पतित बन गये हैं, आकर हमें पावन बनाओ। संस्कार तो सब आत्मा में हैं ना। आत्मा साफ कहती है हम पतित बने हैं। पतित उनको कहा जाता है जो विकार में जाते हैं। पतित मनुष्य, पावन निर्विकारी देवताओं के आगे जाकर मन्दिर में उनकी महिमा गाते हैं। बाप समझाते हैं बच्चे तुम ही पूज्य देवता थे। 84 जन्म लेते-लेते नीचे जरूर उतरना पड़े। यह खेल ही पतित से पावन, पावन से पतित होने का है। सारा ज्ञान बाप आकर इशारे में समझाते हैं। अभी सबका अन्तिम जन्म है। सबको हिसाब-किताब चुक्तू कर जाना है। बाबा साक्षात्कार कराते हैं। पतित को अपने विकर्मों का दण्ड जरूर भोगना पड़ता है। पिछाड़ी का कोई जन्म देकर ही सजा देंगे। मनुष्य तन में ही सजा खायेंगे इसलिए शरीर जरूर धारण करना पड़ता है। आत्मा फील करती है, हम सजा भोग रहे हैं। जैसे काशी कलवट खाने समय दण्ड भोगते हैं, किये हुए पापों का साक्षात्कार होता है। तब तो कहते हैं क्षमा करो भगवान, हम फिर ऐसा नहीं करेंगे। यह सब साक्षात्कार में ही क्षमा मांगते हैं। फील करते हैं, दु:ख भोगते हैं। सबसे जास्ती महत्व है आत्मा और परमात्मा का। आत्मा ही 84 जन्मों का पार्ट बजाती है। तो आत्मा सबसे पावरफुल हुई ना। सारे ड्रामा में महत्व है आत्मा और परमात्मा का। जिसको और कोई भी नहीं जानते। एक भी मनुष्य नहीं जानता कि आत्मा क्या, परमात्मा क्या है? ड्रामा अनुसार यह भी होना है। तुम बच्चों को भी ज्ञान है कि यह कोई नई बात नहीं, कल्प पहले भी यह चला था। कहते भी हैं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य। परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं। बाबा ने इन साधुओं आदि का संग बहुत किया हुआ है, सिर्फ नाम ले लेते हैं। अभी तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो कि हम पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाते हैं तो पुरानी दुनिया से जरूर वैराग्य करना पड़े। इनसे क्या दिल लगानी है। तुमने प्रतिज्ञा की है - कोई भी देहधारी से दिल नही लगायेंगे। आत्मा कहती है हम एक बाप को ही याद करेंगे। अपनी देह को भी याद नहीं करेंगे। बाप देह सहित सबका सन्यास कराते हैं। फिर औरों की देह से हम लगाव क्यों रखें। कोई से लगाव होगा तो उनकी याद आती रहेगी। फिर ईश्वर याद आ न सके। प्रतिज्ञा तोड़ते हैं तो सज़ा भी बहुत खानी पड़ती है, पद भी भ्रष्ट हो जाता है इसलिए जितना हो सके बाप को ही याद करना है। माया तो बड़ी धोखेबाज है। कोई भी हालत में माया से अपने को बचाना है। देह-अभिमान की बहुत कड़ी बीमारी है। बाप कहते हैं अब देही-अभिमानी बनो। बाप को याद करो तो देह-अभिमान की बीमारी छूट जाए। सारा दिन देह-अभिमान में रहते हैं। बाप को याद बड़ा मुश्किल करते हैं। बाबा ने समझाया है हथ कार डे दिल यार डे। जैसे आशिक माशूक धन्धा आदि करते भी अपने माशूक को ही याद करते रहते। अब तुम आत्माओं को परमात्मा से प्रीत रखनी है तो उनको ही याद करना चाहिए ना। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है कि हमको देवी-देवता बनना है, उसके लिए पुरूषार्थ करना है। माया धोखा तो जरूर देगी, अपने को उनसे छुड़ाना है। नहीं तो फँस मरेंगे फिर ग्लानि भी होगी, नुकसान भी बहुत होगा।

    तुम बच्चे जानते हो कि हम आत्मा बिन्दी हैं, हमारा बाप भी बीजरूप नॉलेजफुल है। यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। आत्मा क्या है, उसमें कैसे अविनाशी पार्ट भरा हुआ है-इन गुह्य बातों को अच्छे-अच्छे बच्चे भी पूरी तरह नहीं समझते हैं। अपने को यथार्थ रीति आत्मा समझें और बाप को भी बिन्दी मिसल समझ याद करें, वह ज्ञान का सागर है, बीजरूप है..... ऐसा समझ बड़ा मुश्किल याद करते हैं। मोटे ख्यालात से नहीं, इसमें महीन बुद्धि से काम लेना होता है-हम आत्मा हैं, हमारा बाप आया हुआ है, वह बीजरूप नॉलेजफुल है। हमको नॉलेज सुना रहे हैं। धारणा भी मुझ छोटी-सी आत्मा में होती है। ऐसे बहुत हैं जो मोटी रीति सिर्फ कह देते हैं-आत्मा और परमात्मा..... लेकिन यथार्थ रीति बुद्धि में आता नहीं है। ना से तो मोटी रीति याद करना भी ठीक है। परन्तु वह यथार्थ याद जास्ती फलदायक है। वह इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। इसमें बड़ी मेहनत है। मैं आत्मा छोटी-सी बिन्दु हूँ, बाबा भी इतनी छोटी-सी बिन्दु है, उनमें सारा ज्ञान है, यह भी यहाँ तुम बैठे हो तो कुछ बुद्धि में आता है लेकिन चलते-फिरते वह चिंतन रहे, सो नहीं। भूल जाते हैं। सारा दिन वही चिंतन रहे-यह है सच्ची-सच्ची याद। कोई सच बताते नहीं हैं कि हम कैसे याद करते हैं। चार्ट भल भेजते हैं परन्तु यह नहीं लिखते कि ऐसे अपने को बिन्दी समझ और बाप को भी बिन्दी समझ याद करता हूँ। सच्चाई से पूरा लिखते नहीं हैं। भल बहुत अच्छी-अच्छी मुरली चलाते हैं परन्तु योग बहुत कम है। देह-अभिमान बहुत है, इस गुप्त बात को पूरा समझते नहीं, सिमरण नहीं करते हैं। याद से ही पावन बनना है। पहले तो कर्मातीत अवस्था चाहिए ना। वही ऊंच पद पा सकेंगे। बाकी मुरली बजाने वाले तो ढेर हैं। लेकिन बाबा जानते हैं योग में रह नहीं सकते। विश्व का मालिक बनना कोई मासी का घर थोड़ेही है। वह अल्पकाल के मर्तबे पाने के लिए भी कितना पढ़ते हैं। सोर्स ऑफ इनकम अब हुई है। आगे थोड़ेही बैरिस्टर आदि इतना कमाते थे। अभी कितनी कमाई हो गई है।

    बच्चों को अपने कल्याण के लिए एक तो अपने को आत्मा समझ यथार्थ रीति बाप को याद करना है और त्रिमूर्ति शिव का परिचय औरों को भी देना है। सिर्फ शिव कहने से समझेंगे नहीं। त्रिमूर्ति तो जरूर चाहिए। मुख्य हैं ही दो चित्र त्रिमूर्ति और झाड़। सीढ़ी से भी झाड़ में जास्ती नॉलेज है। यह चित्र तो सबके पास होने चाहिए। एक तरफ त्रिमूर्ति गोला, दूसरे तरफ झाड़। यह पाण्डव सेना का फ्लैग (झण्डा) होना चाहिए। ड्रामा और झाड़ की नॉलेज भी बाप देते हैं। लक्ष्मी-नारायण, विष्णु आदि कौन हैं? यह कोई समझते नहीं। महालक्ष्मी की पूजा करते हैं, समझते हैं लक्ष्मी आयेगी। अब लक्ष्मी को धन कहाँ से आयेगा? 4 भुजा वाले, 8 भुजा वाले कितने चित्र बना दिये हैं। समझते कुछ भी नहीं। 8-10 भुजा वाला कोई मनुष्य तो होता नहीं। जिसको जो आया सो बनाया, बस चल पड़ा। कोई ने मत दी कि हनुमान की पूजा करो बस चल पड़ा। दिखाते हैं संजीवनी बूटी ले आया... उसका भी अर्थ तुम बच्चे समझते हो। संजीवनी बूटी तो है मन्मनाभव! विचार किया जाता है जब तक ब्राह्मण न बनें, बाप का परिचय न मिले तब तक वर्थ नाट ए पेनी है। मर्तबे का मनुष्यों को कितना अभिमान है। उन्हों को तो समझाने में बड़ी मुश्किलात है। राजाई स्थापन करने में कितनी मेहनत लगती है। वह है बाहुबल, यह है योगबल। यह बातें शास्त्रों में तो हैं नहीं। वास्तव में तुम कोई शास्त्र आदि रेफर नहीं कर सकते हो। अगर तुमको कहते हैं - तुम शास्त्रों को मानते हो? बोलो हाँ यह तो सब भक्ति मार्ग के हैं। अभी हम ज्ञान मार्ग पर चल रहे हैं। ज्ञान देने वाला ज्ञान का सागर एक ही बाप है, इनको रूहानी ज्ञान कहा जाता है। रूह बैठ रूहों को ज्ञान देते हैं। वह मनुष्य, मनुष्य को देते हैं। मनुष्य कभी प्रीचुअल नॉलेज दे न सकें। ज्ञान का सागर पतित-पावन, लिबरेटर, सद्गति दाता एक ही बाप है।

    बाप समझाते रहते हैं यह-यह करो। अब देखें शिवजयन्ती पर कितना धमपा मचाते हैं। ट्रांसलाइट के चित्र छोटे भी हों जो सबको मिल जाएं। तुम्हारी तो है बिल्कुल नई बात। कोई समझ न सके। खूब अखबारों में डालना चाहिए। आवाज़ करना चाहिए। सेन्टर्स खोलने वाले भी ऐसे चाहिए। अभी तुम बच्चों को ही इतना नशा नहीं चढ़ा हुआ है। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार समझाते हैं। इतने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं। अच्छा, ब्रह्मा का नाम निकाल कोई का भी नाम डालो। राधे कृष्ण का नाम डालो। अच्छा फिर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ कहाँ से आयेंगे? कोई तो ब्रह्मा चाहिए ना, जो मुख वंशावली बी.के. हों। बच्चे आगे चलकर बहुत समझेंगे। खर्चा तो करना ही पड़ता है। चित्र तो बड़े क्लीयर हैं। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है। अच्छा!

    मीठे-मीठे सिकीलधे सर्विसएबुल, आज्ञाकारी, फरमानबरदार, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

    धारणा के लिए मुख्य सार:-


    1) कर्मातीत बनने के लिए बाप को महीन बुद्धि से पहचान कर यथार्थ याद करना है। पढ़ाई के साथ-साथ योग पर पूरा अटेन्शन देना है।

    2) स्वयं को माया के धोखे से बचाना है। कोई की भी देह में लगाव नहीं रखना है। सच्ची प्रीत एक बाप से रखनी है। देह-अभिमान में नहीं आना है।

    वरदान:- 

    समय के महत्व को जान स्वयं को सम्पन्न बनाने वाले विश्व के आधारमूर्त भव

    सारे कल्प की कमाई का, श्रेष्ठ कर्म रूपी बीज बोने का, 5 हजार वर्ष के संस्कारों का रिकार्ड भरने का, विश्व कल्याण वा विश्व परिवर्तन का यह समय चल रहा है। यदि समय के ज्ञान वाले भी वर्तमान समय को गंवाते हैं या आने वाले समय पर छोड़ देते हैं तो समय के आधार पर स्वयं का पुरूषार्थ हुआ। लेकिन विश्व की आधारमूर्त आत्मायें किसी भी प्रकार के आधार पर नहीं चलती। वे एक अविनाशी सहारे के आधार पर कलियुगी पतित दुनिया से किनारा कर स्वयं को सम्पन्न बनाने का पुरूषार्थ करती हैं।

    स्लोगन:- 

    स्वयं को सम्पन्न बना लो तो विशाल कार्य में स्वत:सहयोगी बन जायेंगे।

    ***Om Shanti***

    Brahma Kumaris Murli Hindi 25 January 2020

    अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए विशेष होमवर्क


    सम्पूर्ण फरिश्ता वा अव्यक्त फरिश्ता की डिग्री लेने के लिए सर्व गुणों में फुल बनो। नॉलेजफुल के साथ-साथ फेथ-फुल, पावरफुल, सक्सेसफुल बनो। अभी नाज़ुक समय में नाज़ों से चलना छोड़ विकर्मो और व्यर्थ कर्मो को अपने विकराल रूप (शक्ति रूप) से समाप्त करो।

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