Brahma Kumaris Murli Hindi 30 July 2019

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Posted by: BK Prerana

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    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 July 2019


    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 July 2019
    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 July 2019


    30-07-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन 

    “मीठे बच्चे - तुम्हें साहेबजादे सो शहजादे बनना है, इसलिए याद की यात्रा से अपने विकर्मों को भस्म करोˮ 

    प्रश्न 


    किस एक विधि से तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जाते हैं? 

    उत्तर 


    जब तुम अपनी नज़र बाप की नज़र से मिलाते हो तो नज़र मिलने से तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जाते हैं क्योंकि अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करने से सब पाप कट जाते हैं। यही है तुम्हारी याद की यात्रा। तुम देह के सब धर्म छोड़ बाप को याद करते हो, जिससे आत्मा सतोप्रधान बन जाती है, तुम सुखधाम के मालिक बन जाते हो। 

    ओम् शान्ति। 


    शिव भगवानुवाच, अपने को आत्मा समझकर बैठो। बाप फ़रमाते हैं शिव भगवानुवाच माना ही शिवबाबा समझाते हैं बच्चे अपने को आत्मा समझकर बैठो क्योंकि तुम सब ब्रदर्स हो। एक ही बाप के बच्चे हो। एक ही बाप से वर्सा लेना है, हूबहू जैसे 5 हज़ार वर्ष पहले बाप से वर्सा लिया था। आदि सनातन देवी-देवताओं की राजधानी में थे। बाप बैठ समझाते हैं तुम सूर्यवंशी अर्थात् विश्व के मालिक कैसे बन सकते हो। मुझ अपने बाप को याद करो। तुम सब आत्मायें भाई-भाई हो। ऊंच ते ऊंच भगवान् एक ही है। उस सच्चे साहेब के बच्चे साहेबजादे हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं, उनकी श्रीमत पर बुद्धि का योग लगायेंगे तो तुम्हारे पाप सब कट जायेंगे। सब दु:ख दूर हो जायेंगे। बाप से जब हमारी आंखें मिलती हैं तो सब दु:ख दूर हो जाते हैं। आंखे मिलाने का भी अर्थ समझाते हैं। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, यह है याद की यात्रा। इसको योग अग्नि भी कहा जाता है। इस योग अग्नि से तुम्हारे जो जन्म-जन्मान्तर के पाप हैं, वह भस्म हो जायेंगे। यह है ही दु:खधाम। सभी नर्कवासी हैं। तुमने बहुत पाप किये हैं, इसको कहा जाता है रावण राज्य। सतयुग को कहा जाता है रामराज्य। तुम ऐसे समझा सकते हो। भल कितनी भी बड़ी सभा बैठी हो, भाषण करने में हर्जा थोड़ेही है। तुम तो भगवानुवाच कहते रहते हो। शिव भगवानुवाच - हम सब आत्मायें उनकी सन्तान हैं, ब्रदर्स हैं। बाकी श्रीकृष्ण की कोई सन्तान थे, ऐसे नहीं कहेंगे। न इतनी रानियां ही थी। कृष्ण का तो जब स्वयंवर होता है, नाम ही बदल जाता है। हाँ, ऐसे कहेंगे लक्ष्मी-नारायण के बच्चे थे। राधे-कृष्ण ही स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं तब एक बच्चा होता है। फिर उनकी डिनायस्टी चलती है। तुम बच्चों को अब मामेकम् याद करना है। देह के सब धर्म छोड़ो, बाप को याद करो तो तुम्हारे सब पाप कट जायेंगे। सतोप्रधान बन स्वर्ग में जायेंगे। स्वर्ग में कोई दु:ख होता नहीं। नर्क में अथाह दु:ख है। सुख का नाम-निशान नहीं। ऐसे युक्ति से बतलाना चाहिए। शिव भगवानुवाच - हे बच्चों, इस समय तुम आत्माएं पतित हो, अब पावन कैसे बनो? मुझे बुलाया ही है - हे पतित-पावन आओ। पावन होते ही हैं सतयुग में, पतित होते हैं कलियुग में। कलियुग के बाद फिर सतयुग जरूर बनना है। नई दुनिया की स्थापना, पुरानी दुनिया का विनाश होता है। 

    गायन भी है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां एडाप्टेड चिल्ड्रेन हैं। हम हैं ब्राह्मण चोटी। विराट रूप भी है ना। पहले ब्राह्मण जरूर बनना पड़े। ब्रह्मा भी ब्राह्मण है। देवतायें हैं ही सतयुग में। सतयुग में सदा सुख है। दु:ख का नाम नहीं। कलियुग में अपरमअपार दु:ख हैं, सब दु:खी हैं। ऐसा कोई नहीं होगा जिसको दु:ख न हो। यह है रावण राज्य। यह रावण भारत का नम्बरवन दुश्मन है। हर एक में 5 विकार हैं। सतयुग में कोई विकार नहीं होते। वह है पवित्र गृहस्थ धर्म। अभी तो दु:ख के पहाड़ गिरे हुए हैं, और भी गिरने हैं। यह इतने बॉम्ब्स आदि बनाते रहते हैं, रखने लिए थोड़ेही हैं। बहुत रिफाइन कर रहे हैं फिर रिहर्सल होगी, फिर फाइनल होगा। अभी समय बहुत थोड़ा है, ड्रामा तो अपने समय पर पूरा होगा ना। पहले-पहले शिव बाबा का ज्ञान होना चाहिए। कुछ भी भाषण आदि शुरू करते हो तो हमेशा पहले-पहले कहना है - शिवाए नम:... क्योंकि शिवबाबा की जो महिमा है वह और कोई की नहीं हो सकती। शिव जयन्ती ही हीरे तुल्य है। कृष्ण के चरित्र आदि कुछ हैं नहीं। सतयुग में तो छोटे बच्चे भी सतोप्रधान ही होते हैं। बच्चों में कोई चंचलता आदि नहीं होती। कृष्ण के लिए दिखाते हैं - मक्खन खाते थे, यह करते थे, यह तो महिमा के बदले और ही ग्लानि करते हैं। कितना खुशी में आकर कहते ईश्वर सर्वव्यापी है। तेरे में भी है, मेरे में भी है। यह बड़ी भारी ग्लानि है परन्तु तमोप्रधान मनुष्य इन बातों को समझ नहीं सकते। तो पहले-पहले बाप का परिचय देना चाहिए - वह निराकार बाप है, जिनका नाम ही है कल्याणकारी शिव, सर्व का सद्गति दाता। वह निराकार बाप सुख का सागर, शान्ति का सागर है। अब इतना दु:ख क्यों हुआ है? क्योंकि रावण राज्य है। रावण है सबका दुश्मन, उसको मारते भी हैं, परन्तु मरता नहीं। यहाँ कोई एक दु:ख नहीं है, अपरमअपार दु:ख हैं। सतयुग में है अपरमअपार सुख। 

    5 हज़ार वर्ष पहले बेहद के बाप के बच्चे बने थे और यह वर्सा बाप से लिया था। शिवबाबा आते हैं जरूर, कुछ तो आकर करते हैं ना। एक्यूरेट करते हैं तब तो महिमा गाई जाती है। शिव रात्रि भी कहते हैं फिर है कृष्ण की रात्रि। अब शिवरात्रि और कृष्ण की रात्रि को भी समझना चाहिए। शिव तो आते ही हैं बेहद की रात में। कृष्ण का जन्म अमृतवेले होता है, न कि रात्रि को। शिव की रात्रि मनाते हैं परन्तु उनकी कोई तिथि तारीख नहीं। कृष्ण का जन्म होता है अमृतवेले। अमृतवेला सबसे शुभ मुहूर्त्त माना जाता है। वो लोग कृष्ण का जन्म 12 बजे मनाते हैं परन्तु वह प्रभात तो हुई नहीं। प्रभात सवेरे 2-3 बजे को कहा जाता है जबकि सिमरण भी कर सके। ऐसे थोड़ेही 12 बजे विकार से उठकर कोई भगवान का नाम भी लेते होंगे, बिल्कुल नहीं। अमृतवेला 12 बजे को नहीं कहा जाता। उस समय तो मनुष्य पतित गंदे होते हैं। वायुमण्डल ही सारा खराब होता है। अढ़ाई बजे थोड़ेही कोई उठता है। 3-4 बजे का समय अमृतवेला है। उस समय उठकर मनुष्य भक्ति करते हैं, यह टाइम तो मनुष्यों ने बनाये हैं, परन्तु वह कोई समय है नहीं। तो तुम कृष्ण की वेला निकाल सकते हो। शिव की वेला कुछ भी नहीं निकाल सकते। यह तो खुद ही आकर समझाते हैं। तो पहले-पहले महिमा बतानी है शिवबाबा की। गीत पिछाड़ी में नहीं, पहले बजाना चाहिए। शिवबाबा सबसे मीठा बाबा है, उनसे बेहद का वर्सा मिलता है। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले यह श्रीकृष्ण सतयुग का पहला प्रिन्स था। वहाँ अपरमअपार सुख थे। अभी भी स्वर्ग का गायन करते रहते हैं। कोई मरता है तो कहेंगे फलाना स्वर्ग गया। अरे, अभी तो नर्क है। स्वर्ग हो तो स्वर्ग में पुनर्जन्म ले सकें। समझाना चाहिए हमारे पास तो इतने वर्षो का अनुभव है, वह सिर्फ 15 मिनट में तो नहीं समझा सकते, इसमें तो टाइम चाहिए। पहले-पहले तो एक सेकण्ड की बात सुनाते हैं, बेहद का बाप जो दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, उनका परिचय देते हैं। वह हम सब आत्माओं का बाप है। हम बी.के. सब शिवबाबा की श्रीमत पर चलते हैं। बाप कहते हैं तुम सब भाई-भाई हो, मैं तुम्हारा बाप हूँ। मैं 5 हज़ार वर्ष पहले आया था, तब तो शिव जयन्ती मनाते हो। स्वर्ग में कुछ मनाया नहीं जाता। शिवजयन्ती होती है, जिसका फिर भक्ति मार्ग में यादगार मनाया जाता है। यह गीता एपीसोड चल रहा है। नई दुनिया की स्थापना ब्रह्मा द्वारा, पुरानी दुनिया का विनाश शंकर द्वारा। अब इस पुरानी दुनिया का वायुमण्डल तो तुम देख रहे हो, इस पतित दुनिया का विनाश जरूर होना है इसलिए कहते हैं पावन दुनिया में ले चलो। अथाह दु:ख हैं - लड़ाई, मौत, विधवापना, जीवघात करना........। 

    सतयुग में तो अपार सुखों का राज्य था। यह एम ऑबजेक्ट का चित्र तो जरूर वहाँ ले जाना चाहिए। यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे। 5 हज़ार वर्ष की बात सुनाते हैं - इन्होंने कैसे यह जन्म पाया? कौन से कर्म किये जो यह बनें? कर्म-अकर्म-विकर्म की गति बाप ही समझाते हैं। सतयुग में कर्म, अकर्म हो जाते हैं। यहाँ तो रावण राज्य होने कारण कर्म, विकर्म बन जाते हैं इसलिए इसको पाप आत्माओं की दुनिया कहा जाता है। लेन-देन भी पाप आत्माओं से ही है। पेट में ही बच्चा होता है तो सगाई कर देते हैं। कितनी क्रिमिनल दृष्टि है। यहाँ है ही क्रिमिनल आइज्ड। सतयुग को कहा जाता है सिविलाइज्ड। यहाँ आंखें बहुत पाप करती हैं। वहाँ कोई पाप नहीं करते। सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। यह तो जानना चाहिए ना। दु:खधाम सुखधाम क्यों कहा जाता है? सारा मदार है पतित और पावन होने पर इसलिए बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, इसको जीतने से तुम जगतजीत बनेंगे। आधाकल्प पवित्र दुनिया थी, जिसमें श्रेष्ठ देवता थे। अब तो भ्रष्टाचारी हैं। एक तरफ कहते भी हैं यह भ्रष्टाचारी दुनिया है फिर सबको श्री श्री कहते रहते, जो आता है वह बोल देते हैं। यह सब समझना है। अब तो मौत सामने खड़ा है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो पाप कट जायेंगे। तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। सुखधाम के मालिक बनेंगे। अभी तो है ही दु:ख। कितना भी वे लोग कान्फ्रेन्स करें, संगठन करें परन्तु इनसे कुछ होना नहीं है। सीढ़ी नीचे उतरते ही जाते हैं। बाप अपना कार्य अपने बच्चों द्वारा कर रहे हैं। तुमने पुकारा है पतित-पावन आओ, तो मैं अपने समय पर आया हुआ हूँ। यदा यदाहि धर्मस्य........ इसका अर्थ भी नहीं जानते। बुलाते हैं तो जरूर खुद पतित हैं। बाप कहते हैं रावण ने तुमको पतित बनाया है, अब मैं पावन बनाने आया हूँ। वह पावन दुनिया थी। अब पतित दुनिया है। 5 विकार सबमें हैं, अपरमअपार दु:ख हैं। सब तरफ अशान्ति ही अशान्ति है। जब तुम बिल्कुल तमोप्रधान, पाप आत्मा बन जाते हो तब मैं आता हूँ। जो मुझे सर्वव्यापी कह मेरा अपकार करते हैं, ऐसे-ऐसे का भी मैं उपकार करने आता हूँ। मुझे तुम निमंत्रण देते हो कि इस पतित रावण की दुनिया में आओ। पतित शरीर में आओ। मुझे भी रथ तो चाहिए ना। पावन रथ तो चाहिए नहीं। रावण राज्य में हैं ही पतित। पावन कोई है नहीं। सब विकार से ही पैदा होते हैं। यह विशश वर्ल्ड है, वह है वाइसलेस वर्ल्ड। अब तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनेंगे? पतित-पावन तो मैं ही हूँ। मेरे साथ योग लगाओ, भारत का प्राचीन राजयोग यह है। आयेंगे भी जरूर गृहस्थ मार्ग में। कैसे वण्डरफुल रीति आते हैं, यह पिता भी है तो माँ भी है क्योंकि गऊ मुख चाहिए, जिससे अमृत निकले। तो यह मात-पिता है, फिर माताओं को सम्भालने के लिए सरस्वती को हेड रखा है, उनको कहा जाता है जगत अम्बा। काली माता कहते हैं। ऐसे काले कोई शरीर होते हैं क्या! कृष्ण को काला कर दिया है क्योंकि काम चिता पर चढ़ काले बन गये हैं। कृष्ण ही सांवरा फिर गोरा बनता है। इन सब बातों को समझने लिए भी टाइम चाहिए। कोटों में कोई, कोई में भी कोई की बुद्धि में बैठता होगा क्योंकि सभी में 5 विकार प्रवेश हैं। तुम यह बात सभा में भी समझा सकते हो क्योंकि कोई को भी बोलने का हक है, ऐसा मौका लेना चाहिए। ऑफीशियल सभा में कोई बीच में प्रश्न आदि नहीं करते हैं। नहीं सुनना है तो शान्ति से चले जाओ, आवाज़ न करो। ऐसे-ऐसे बैठ समझाओ। अभी तो अपार दु:ख हैं। दु:ख के पहाड़ गिरने हैं। हम बाप को, रचना को जानते हैं। 

    तुम तो किसका भी आक्यूपेशन नहीं जानते हो, बाप ने भारत को पैराडाइज़ कब और कैसे बनाया था - यह तुम नहीं जानते हो, आओ तो समझायें। 84 जन्म कैसे लेते हैं? 7 दिन का कोर्स लो तो तुमको 21 जन्म के लिये पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बना देंगे। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। 

    धारणा के लिए मुख्य सार 


    1. कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति जो बाप ने समझाई है, वह बुद्धि में रख पाप आत्माओं से अब लेन-देन नहीं करनी है। 

    2. श्रीमत पर अपना बुद्धियोग एक बाप से लगाना है। सतोप्रधान बनने का पुरूषार्थ करना है। दु:खधाम को सुखधाम बनाने के लिए पतित से पावन बनने का पुरूषार्थ करना है। क्रिमिनल दृष्टि को बदलना है। 

    वरदान 


    सर्व खजानों से सम्पन्न बन निरन्तर सेवा करने वाले अखुट, अखण्ड महादानी भव 

    बापदादा ने संगमयुग पर सभी बच्चों को “अटल-अखण्डˮ का वरदान दिया है। जो इस वरदान को जीवन में धारण कर अखण्ड महादानी अर्थात् निरन्तर सहज सेवाधारी बनते हैं वह नम्बरवन बन जाते हैं। द्वापर से भक्त आत्मायें भी दानी बनती हैं लेकिन अखुट खजानों के दानी नहीं बन सकती। विनाशी खजाने या वस्तु के दानी बनते हैं, लेकिन आप दाता के बच्चे जो सर्व खजानों से सम्पन्न हो वह एक सेकण्ड भी दान देने के बिना रह नहीं सकते। 

    स्लोगन


    अन्दर की सच्चाई सफाई प्रत्यक्ष तब होती है जब स्वभाव में सरलता हो। 


    ***OM SHANTI***

    Brahma Kumaris Murli Hindi 30 July 2019

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